*परमपिता परमात्मा द्वारा बनाई गई इस सृष्टि में चौरासी लाख योनियाँ भ्रमण करती हैं , इन चौरासी लाख योनियों में सर्वश्रेष्ठ कही गई है मानवयोनि | अनेक जन्मों की संचित पुण्य जब उदय होते हैं तो जीव को मनुष्य का जीवन मिलता है | गोस्वामी तुलसीदास जी मनुष्य जीवन को दुर्लभ बताते हुए अपने मानस में लिखते हैं :-- "बड़े भाग मानुष तन पावा ! सुर दुर्लभ सद्ग्रंथहिं गावा !!" तुलसीदास जी ने इस मानव शरीर को देवताओं के लिए भी दुर्लभ बताया है | इस दुर्लभ शरीर को पाकर म्नुष्य की प्रथम प्राथमिकता होती है अपने प्राणों की रक्षा करना | अपने प्राणों की रक्षा - सुरक्षा के लिए मनुष्य अनेकानेक उपाय किया करता है | अपने एवं अपने समाज के प्राणों की रक्षा करने की सुदृढ़ व्यवस्था कैसे की जाती है इसका उदाहरण हमें रामायण से देखने को मिलता है | लंकापति रावण की लंका स्वयं में एक दुर्ग थी जिसके चारों विशाल गहरी खाई तो थी ही साथ ही लंका के चारो दिशा में चार विशाल दरवाजे लगे हुए थे | कोई भी लंका में प्रवेश नहीं कर सकता था | यह भी देखने को मिलता है कि लंका के वे दरवाजे आवश्यक आवश्यकता पर ही खुला करते थे | जिस समय रामा दल लंका की किनारे गर्जना कर रहा था उस समय भी लंका की सुदृढ़ द्वार नहीं खुला और इतिहास साक्षी है कि दुश्मन की ललकार पर इस द्वार को खोल कर जब जब राक्षस सैनिक बाहर निकले तब तक उनका विनाश ही हुआ है | एक महाविनाश के बाद सायंकाल के समय लंका के दरवाजे पुनः बंद हो जाया करते थे | विभीषण , मंदोदरी , माल्यवंत आदि के समझाने पर भी रावण नहीं माना और अपनी नगरी के द्वार बार-बार खोलकर शत्रु से सामना करने के प्रयास में अन्ततोगत्वा पूरे कुल सहित विनाश को प्राप्त हुआ | इस प्रत्यक्ष उदाहरण को देखकर हमें शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए कि यदि बलवान दुशमन ललकार रहा हो और हममें उससे लड़कर जीतने की सामर्थ्य न हो तो अपने घर के दरवाजों को कदापि नहीं खोलना चाहिए अन्यथा लंका की ही भाँति सर्वनाश सम्भव है |*
*आज मनुष्य ने बहुत प्रगति कर ली है ! आज मनुष्य स्वयं को अजेय समझने लगा है परंतु यह अजेय मनुष्य आज पराजित सा होता दिख रहा है | जिस प्रकार स्वर्ग में निवास करने वाले देवता अमर होते हुए भी किसी विशेष वरदान प्राप्त असुर से पराजित होकर स्वर्ग को छोड़ने पर विवश हो जाया करते थे और अपने प्राणों की रक्षा करने के लिए पर्वत की गुफाओं एवं कन्दराओं में छुपकर उचित अवसर की प्रतीक्षा किया करते थे और उचित अवसर आने पर ही बाहर निकलते थे | जब देवता छुपकर अपने प्राणों की सुरक्षा करते थे तो हम क्यों नहीं कर पा रहे हैं | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" मानता हूँ कि आज मनुष्य विज्ञान के बल पर अजेय हो गया है परंतु विशेष वरदान प्राप्त करके समस्त मानव जाति पर आक्रामक "कोरोना संक्रमण" के समक्ष विवश होकर नित्य प्राण गंवा रहा है | सबसे बुद्धिमान होने का पदक लेने वाला मनुष्य आज इतिहास से शिर्षा नहीं ले पा रहा है ! लंकानगरी की ही भाँति बार बार अपने घरों के दरवाजे खोलकर बाहर निकलने वाले अपनी मृत्यु को निमंत्रण दे रहे हैं | जब अमर देवता कुअवसर जानकर छुपकर अपनी रक्षा करते थे तो हम क्यों नहीं समझना चाहते कि आज कोरोना को विशेष वरदान प्राप्त है उसे परास्त करने का कोई उपाय नहीं है | आज अपने प्राणों को बचाने का एक ही उपाय है कि मनुष्य अपने घर में छुपा रहे | जो इस गम्भीरता को समझकर घर में बन्द है वह तो सुरक्षित है और जो रावण की भाँति बार बार अपना द्वार खोलकर बाहर निकल रहा है वह पूरे समाज को मृत्यु के मुंह में झोंक रहा है | आज मनुष्य को इतिहास से शिक्षा ग्रहण करते हुए अपने एवं अपने समाज के प्पाणों की रक्षा करने के उपाय अवश्य अपनाने चाहिए |*
*यद्यपि घरों में बन्द रहना दुष्कर कार्य है परंतु यदि अपने प्राणों को बचाने का यही एकमात्र उपाय है तो विवशता में यह करना ही होगा क्योंकि अन्य कोई अस्त्र है ही नहीं जो कोरोना सदृश दानव से बचा सके ! अत: घर पर रहें ! सुरक्षित रहें !!*