वक्त अच्छा हो तो….
कोरोना काल में अंतर्मन ने पूछा -
इस दुनिया में तुम्हारा अपना कौन है..?
सवाल सुनते ही
एक विचार मन में कौंधा
माँ-बाप, भाई-बहन, पत्नी…
बेटा - बेटी या फिर मित्र..
किसे कहूँ अपना..?
यदि वक़्त अच्छा हो तो
जो अदृश्य है
सर्वशक्तिमान है
सर्वव्यापी है
वो भी अपना है
तब सब कुछ ठीक है।
वक़्त अच्छा हो तो
माँ-बाप, भाई-बहन, पत्नी
बेटा-बेटी या फिर मित्र
सब अपने होते हैं
अपना - अपना होता है
पराया भी अपना होता है।
वक़्त अच्छा हो तो
राजा भी सम्मान देता है
रंक भी सलामी ठोकता है
हर सपना पूरा होता है
कामियाबी को भी
कदम चूमना पड़ता है।
वक़्त अच्छा हो तो
हाथ की मिट्टी भी सोना बन जाती है
मोमबत्ती भी मशाल बन जाती है
बंदर भी लंगूर बन जाता है
कोयला भी कोहिनूर बन जाता है।
वक़्त अच्छा हो तो
गद्दार भी वफादार बन जाता है
सूबेदार भी सरदार बन जाता है
चंदा भी मामा बन के आता है
दूध पिलाकर फौरन चला जाता है।
वक़्त अच्छा हो तो
भाग्य सँवर जाता है
दुर्भाग्य भी सौभाग्य में बदल जाता है
सद्गुरु का साथ भी मिल जाता है
भवसागर से बेड़ा पार भी लग जाता है।
वक़्त अच्छा हो तो
मौत भी लौटकर चली जाती है
गोली कान को छूकर निकल जाती है
दुःख भी इंद्रधनुष सा लगता है
सुख भी खुश नसीब सा लगता है।
वक़्त अच्छा हो तो
गधा भी पहलवान होता है
अंधों के बीच काना महान होता है
मददगार परवरदिगार होता है
भले ही वह निर्गुण निराकार होता है।
➖ प्रा. अशोक सिंह...🖋️