मस्त हवाओं का ये झोंका, बेमौसम ही प्यार करे…
प्रियतम पास नहीं हैं फिर भी मिलन को बेकरार करे
जीवन में बहार नहीं फिर भी प्रणय गीत स्वर नाद करे
सजना की कोई खबर नहीं फिर जीना क्यों दुस्वार करे
बिन तेरे सजना जीना मुश्किल रग - रग में है ज्वार उठे
तेरे ही नाम से मेरी सुबह हुई है तेरे ही नाम से शाम ढले।
मस्त हवाओं का ये झोंका, बेमौसम ही प्यार करे……
बिन सावन के जियरा हुलसै प्यार बिना मौसम के उमड़े
बाई आँख जो फरकनी लागे पिय आगमन के आस जागे
अंबर से अवनी तक जग में अपना ही तो प्यार पले
प्यार के खातिर ही तो सूरज-चाँद भी दिन-रात चलें
चाँदनी रात सुहाना मौसम प्रियतम के बिनु आग लगे।
मस्त हवाओं का ये झोंका, बेमौसम ही प्यार करे…..
मलय पवन को संगि ले घूमे मंद-मंद मुस्कान भरे
कामदेव भी प्रमुदित होकर पवन देव के साथ चले
प्रिया की छवि को देखिके कामुक हो धरि संग चले
प्रेमरति अग्निहोत्री ने तो रग रग को अपने वश में धरे
विरिहिणी बनि प्रियतम के बिनु अंतरंग में स्वयं जले।
मस्त हवाओं का ये झोंका, बेमौसम ही प्यार करे….
कोरोना काल में प्रिय के बिनु जीना अब दुस्वार करे
आखिर कब तक मन को मारे सभाले अब नाहीं संभरे
कामदेव तो पीछे लगि गये प्रेमरति की ओर हैं खींचें
तुम बिनु दिनरात न बीते कब तक रहूँ मैं बहियां भींचे
अब तो यहि तन बैरन लागे बिनु माली कौन सींचे।
मस्त हवाओं का ये झोंका, बेमौसम ही प्यार करे….
प्रीति बिना जीवन सूना लागे सूने हैं बाग-बगीचे
भइ दशा जसि जल बिनु मछली कोई आगे न पीछे
का वर्षा जब कृषि सुखाने समय गये कोई ना पूछे
समय समय पर करे जुताई और बीज बुआई पीछे
खेती उत्तम वहीं होत है जहां देखि भालि के सींचे।
➖ अशोक सिंह.....✒️