श्मशान घाट पर भीषण हादसा...20 की मौत..क्या कहेंगे आप..?
उत्तर प्रदेश के जिला गाजियाबाद स्थित मुरादनगर श्मशान घाट में लोग दाहसंस्कार के लिए आये हुए थे। सभी लोग छत के नीचे खड़े थे। छत गिर गई और देखते-देखते बीस लोग काल के ग्रास में समा गए। जबकि और लोंगों के दबे होने की आशंका जताई गयी है। हालांकि राहत कार्य शुरू कर दिया गया है और चालीस लोंगों को मलबे में से बाहर निकाला जा चुका है।
पुलिस का कहना है कि गाजियाबाद के थाना मुरादनगर क्षेत्र के उखलारसी गांव में एक व्यक्ति की मृत्यु हो जाने पर परिजन और सगे संबंधी मृत व्यक्ति को दाह संस्कार के लिए श्मशान घाट लेकर पहुंचे थे। परिजन मृत व्यक्ति का अंतिम संस्कार कर ही रहे थे तभी श्मशान घाट का लैंटर भरभरा कर गिर पड़ा। इसकी चपेट में आकर लगभग दो दर्जन से ज्यादा लोग दबे गये अब तक बीस लोगों की मौत हो चुकी है।
हादसे वाले दिन को सुबह साढ़े तीन बजे से सुबह आठ बजे तक बारिश हुई। बारिश का सिलसिला रुक रुककर जारी था। बताया जा रहा है कि जो भवन गिरा है, वह सिर्फ और सिर्फ दस साल पुराना था। जिसका निर्माण नगरपालिका ने किया था। तो क्या सरकारी विभाग द्वारा कराए गए निर्माण कार्य इसी तरह के होते हैं...! कहने के लिए सीमेंट की लाइफ सौ वर्ष होती है। फिर ये लिंटर दस वर्ष में धराशायी हो गया और नगरपालिका के कार्यशैली का पोल खोल गया। आखिर इसके लिए कौन जिम्मेदार है..?
सोचिए जरा हो रहे मरम्मत निर्माण कार्य के दौरान तेज बारिश होने से लिंटर गिर जाता है। बताया जा रहा है कि इस हादसे में बीस लोगों की मौत हो गई है। सीएम योगी आदित्यनाथ ने मृतकों के परिवारों को दो-दो लाख रुपये की आर्थिक सहायता का ऐलान किया है। कई घायलों को अस्पताल में भर्ती कराया गया है।
मामला बहुत गम्भीर है। एक परिवार पहले से ही शोकाकुल है। परिजन व चिरपरिचित दाहसंस्कार के लिए श्मशान घाट पर हों और ऐसी अनहोनी घटना घट जाए तो उनके परिजनों पर क्या बीती होगी...? हम और आप सिर्फ कल्पना करके कांप उठते हैं। पर उनकी क्या स्थिति होगी जिनको इसका सामना करना पड़ा है। सरकार ने तो दो - दो लाख रुपए मृतकों के परिजनों को देने का ऐलान करके जैसे जिम्मेदारी से मुक्त हो गए। पर परिजनों को तो ऐसा घाव मिला जिसकी कोई दवा नहीं है कोई मरहम नहीं। जबतक जियेंगे तबतक कोसेंगे। बीतते वक़्त के साथ भले ही कसक कम हो। इतना ही नहीं कोसने वाले तो उस मृतक को भी कोसेंगे कि कैसे मुहूर्त में मरा कि अपने साथ बीस को और ले गया। ये बातें हैं और ये इसी तरह से बनती हैं। फिर जहाँ चार लोग जमा हो जाते हैं तो ऐसी ही बतरस व बतकही होती है।
आप किसी भी नज़रिए से देखिए, बहुत ही दर्दनाक हादसा है। पूरा का पूरा इलाका शोकजदा हो गया होगा। रुदन क्रंदन के कारण कोहराम मच गया होगा। मन के किसी न किसी कोने में ये बात घर कर जाती है कि नहीं गए होते तो ये सब न हुआ होता। इसी सोच के कारण परिजन और दुःखी होंगे। ये तो लाज़मी है। मनुष्य का स्वभाव है। इससे इनकार नहीं किया जा सकता है। दुःख के समय ज्ञान भी काम नहीं आता।
फिर कौन सा व्यक्ति ऐसे मौके पर दुस्साहस करेगा समझाने की कि मौत आ गयी थी। या फिर जीवन नश्वर है। जीवन क्षणिक है। मौत का कोई भरोसा नहीं है। सभी की मौत एक साथ। कोई बड़ी बात नहीं है हो भी सकता है। पर मानव मन तो इस कटु सत्य को मानता ही नहीं है। उस समय इन दलीलों को स्वीकार करने की मनोस्थिति नहीं होती है।
फिर किसी एक परिवार को शोक सांत्वना देना कुछ हद तक चल जाता है और संभव भी होता है। पर ऐसी घटनाओं में तो परिवार के परिवार समझो साफ हो गए होंगें। जो करीबी परिजन होंगें लगभग सभी वहाँ रहे होंगें। अब ऐसे में उनके लिए कौन खड़ा होगा। कौन सा व्यक्ति पूरे गाँव को सांत्वना देगा। क्या कहेगा..? क्या उसके गले से आवाज निकलेगी....? बिल्कुल संभव नहीं है।
ऐसे में तो मनुष्य लाचार हो जाता है। उसे कोई राह नहीं सूझता है। तब वह ईश्वर की शरण लेता है। हम भी ईश्वर से बस यही प्रार्थना कर सकते हैं कि हे ईश्वर दिवंगतों के परिजनों को इस विकट और असह्य पीड़ा को सहने के लिए संबल और हिम्मत प्रदान करें।
"सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामयाः
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु माँ कश्चिद्य दुःख भाग भवेत।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।"
➖ अशोक सिंह 'अक्स'
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