तनाव मुक्त जीवन ही श्रेष्ठ है……
आए दिन हमें लोंगों की शिकायतें सुनने को मिलती है….... लोग प्रायः दुःखी होते हैं। वे उन चीजों के लिए दुःखी होते हैं जो कभी उनकी थी ही नहीं या यूँ कहें कि जिस पर उसका अधिकार नहीं है, जो उसके वश में नहीं है। कहने का मतलब यह है कि मनुष्य की आवश्यकतायें असीम हैं….… क्योंकि उसका मन पर नियंत्रण नहीं है। जबकि इस दुनिया में जीते जी हमारा मन ही जीवन की सफलता को तय करता है। इसीलिए तो कहा जाता है कि मन के हारे हार है और मन के जीते जीत।
जो इंसान अपने मन को नियंत्रित कर लेता है, उसकी आवश्यकताएँ सिमट जाती हैं। जो मन को नियंत्रित नहीं कर पाता है उसकी अवस्था ठीक इसके विपरीत होती है। उसकी आवश्यकताएँ निरंतर जारी रहती हैं अर्थात कभी पूरी नहीं होती है। कहने का तात्पर्य यह है कि मन को वश में कर लेने से ही सुखद अनुभूति होती है। किसी भी तरह का तनाव नहीं रहता है। उदाहरण के लिए कोई इंसान बेहद गरीबी में भी पूरा जीवन स्वस्थ शरीर के साथ गहरे आनंद में डूबे रहकर गुजार लेता है, तो गरीबी बुरी नहीं कहलाएगी। दरअसल उसने अपने मन को नियंत्रित कर लिया और सीमित संसाधनों से ही संतुष्ट रहा और जीवन के आनंद का अनुभव तनावमुक्त रहकर कर पाया।
आप मेरी बात से पूरी तरह सहमत नहीं होंगें, मुझे पता है। चलिए और अच्छी तरह से समझने के लिए सिक्के के दूसरे पहलू को भी देखते हैं अर्थात एक दूसरा उदाहरण लेते हैं जिससे कि दूध का दूध और पानी का पानी हो सके। एक दूसरा व्यक्ति भरपूर पैसा होते हुए अर्थात खरबपति होते हुए भी अस्वस्थ शरीर के साथ तनावपूर्ण जीवन जिए तो इसमें किसका दोष है। खरबों रुपये किस काम के जब इंसान स्वेच्छा से भोजन न करसके, उसका स्वाद न ले सके। उसके पैसे तो व्यर्थ ही होंगें जब वह एक गिलास दूध भी नहीं पी सकता। ऐसे में उसके पास संसाधनों की कमी नहीं होती है। सुख सुविधा के सारे उपकरण उपलब्ध होते हैं पर जीवन को आनंद की अनुभूति कराने वाला मन अशांत और तनावग्रस्त होता है। अतः अस्वस्थ और तनावग्रस्त होने के कारण ही जीवन में आनंद नहीं होता है।
इंसान का मन ही उसका स्वास्थ्य तय करता है, वही इंसान को तनावों से मुक्त जीवन देता है। इसलिए इंसान को पैसे के पीछे या भौतिक सुख प्रदान करने वाले संसाधनों व उपकरणों के पीछे नहीं भागना चाहिए। उसे तो बस अपने मन को अच्छा रखने पर विशेष ध्यान देना चाहिए जिससे कि वह स्वस्थ और तनावमुक्त श्रेष्ठ जीवन का आनंद ले सके।
➖ प्रा. अशोक सिंह