हिंदी सेवी सम्मान...
दो दिन पहले ही फोन आया। अनजान नम्बर था। सामने से आवाज आई, 'अशोक जी नमस्कार। आपके लिए खुशखबरी है। इस वर्ष आपको हिंदी सेवी सम्मान से सम्मानित किया जा रहा है।'
एक पल के लिए तो मुझे कुछ नहीं सूझा। खैर जो कुछ मैंने सुना वो सच था। मुंबई प्रांतीय राष्ट्रभाषा प्रचार सभा ने हिंदी के प्रचार-प्रसार हेतु किए गए मेरे कार्य के आधार पर ही इस सम्मान हेतु चयन किया था।
फोन पर सामने संस्था के महामंत्री व सचिव ब्रजेश तिवारी जी थे। उन्होंने फरमाया, "निमंत्रण पत्रिका व्हाट्सएप पर भेज दिया गया है। रविवार दिनांक 17 जनवरी 2021 को शाम 4 बजे दुर्गादेवी सराफ हॉल में कार्यक्रम का आयोजन किया गया है और आप सादर आमंत्रित हैं।"
मुझे भी सुनकर अच्छा लगा। सुबह में केश कर्तन कराना उचित समझा।कोरोना काल में काफी दिनों से केश कर्तन का कार्य रुका हुआ था। सो तैयार होकर गंतव्य स्थान पर पहुंच गया। उससे पहले चार घंटे का समय हाउसिंग सोसायटी मीटिंग में बीत गया था।
हॉल सजा हुआ था। आगन्तुकों का जमावड़ा था। पालकमंत्री को मुख्य अतिथि के रूप में बुलाया गया था। पत्रकार दीनानाथ तिवारी व समूह, समाजसेवी और फ़िल्म निर्माता प्रदीप जैन भी आए हुए थे। वैसे तो निर्धारित समय साढ़े चार बजे का था। पर कार्यक्रम शुरू होते-होते पाँच बज गए।
कार्यक्रम के आगाज से पूर्व राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचारिणी सभा वर्धा के प्रधानमंत्री स्व. अनन्तराम त्रिपाठी के प्रति श्रद्धासुमन अर्पित किया गया और दो मिनिट का शोक मनाया गया। 10 जनवरी 2021 की सुबह त्रिपाठी जी का स्वर्गवास हो गया था।
तदोपरांत कार्यक्रम की शुरुवात स्वागत वचन व पुष्पगुच्छ के साथ हुई। आए हुए सम्मान मूर्तियों व गणमान्य अतिथियों का गर्मजोशी के साथ भव्य स्वागत किया गया।
संस्था का सर्वश्रेष्ठ सम्मान कांतिलाल जोशी सम्मान से श्री लालबहादुर यादव जी को उनके उत्कृष्ट सेवा व प्रदर्शन के आधार पर सम्मानित किया गया। जिन्होंने लगभग 25 वर्ष का समय संस्था के लिए न्योछावर कर दिया था। इस सम्मान को प्राप्त करना अपने आप में गौरव की बात है।
हिंदी सेवी सम्मान से श्री अशोक सिंह 'अक्स' और श्रीमती हेमलता सिंह को सम्मानित किया गया। डॉ. पूनम पटवा, डॉ. वंदना पावसकर, प्रा. माधवी मिश्रा, डॉ. गोविंद निर्मल आदि को भी स्मृति चिन्ह प्रदान कर सम्मानित किया गया। सभी ने राष्ट्रभाषा हिंदी के प्रचार-प्रसार में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया और अहम भूमिका निभाई। आज के इस विषम परिस्थिति कोरोना काल में विशेष रूप से यह उपलब्धि व सफलता और खास हो जाती है। काबिलेतारीफ व सराहनीय बात यह भी है कि पूरे देश से इस मुहिम को अच्छा प्रतिसाद मिला।
कोरोना काल में मुंबई प्रांतीय राष्ट्रभाषा प्रचार सभा और केंद्रीय हिंदी निदेशालय नई दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित कार्यक्रम का संक्षिप्त विवरण कुछ इस प्रकार था। राष्ट्रभाषा के प्रचार-प्रसार हेतु विश्व हिंदी दिवस के अवसर पर निर्दिष्ट चार समूहों के अंतर्गत कार्यक्रम को नियोजित किया गया था। जिसमें चार समूह इस प्रकार थे- भक़्त प्रहलाद समूह (तीसरी से छठवीं तक के छात्रों के लिए), स्वामी विवेकानंद समूह (सातवीं से दसवीं तक के छात्रों के लिए), अब्दुल कलाम समूह (ग्यारहवीं व बारहवीं के छात्रों के लिए) और गुरूदेव समूह (सभी शिक्षकों व राष्ट्रभाषा हिंदी प्रेमियों के लिए)। सभी समूह के लिए प्रभारी व सहायक निर्णायक समूह नियोजित किया गया था। सभी ने प्रस्तावित व संकल्पित कार्य का संपादन व निष्पादन बहुत ही अच्छे से किया। बेशक सभी ने सराहनीय कार्य किए। इसमें सभी बधाई व सम्मान के पात्र हैं।
संस्था के अध्यक्ष डॉ. बिपिन मेहताजी, उपाध्यक्ष हेलेमनीजी, महामंत्री व सचिव ब्रजेश तिवारीजी, समाजसेवक श्री सत्येंद्र श्रीवास्तवजी, कोषाध्यक्ष डॉ. महेंद्र मिश्र आदि ने भूरि-भूरि प्रशंसा किए। इस संस्था की स्थापना 1935 में की गई थी और तभी से संस्था लगातार राष्ट्रभाषा के प्रचार-प्रसार हेतु प्रयासरत है। इसमें हिंदीभाषी व अहिंदी भाषी सभी जुड़े हुए हैं और तन-मन से प्रचार-प्रसार का कार्य करते हैं। हालाँकि पहले 'हिंदी दिवस -14 सितंबर' के समारोह का आयोजन किया जाता था जिसकी शुरुआत 1949 में हिंदी को राजभाषा बनाने के बाद से ही शुरू हुआ। संविधान में निहित विवरण के आधार पर अगले 15 वर्ष में हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलाने का प्रावधान दिया गया था पर प्रयास सफल नहीं हो पाया। अतः राजनीति हावी होने की स्थिति में आपसी विवाद व विरोध के कारण ये नेक व गौरवमयी कार्य नहीं हो पाया। जबकि सच्चाई यह है कि हिंदी भाषा विश्व में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा के आधार पर तीसरे क्रमांक पर है। लगभग 75 करोड़ आबादी हिंदी भाषा का प्रयोग धड़ल्ले से कर रही है। इसमें संदेह नहीं है कि अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा की बदौलत हिंदी की शुध्दता प्रभावित हुई है। पर एकतरफ हमारे देश के लोग जहाँ अंग्रेजी के दीवाने बनते दिखाई दे रहे हैं वहीं हिंदी की पैठ विश्वस्तर पर बढ़ी है। संयुक्त राष्ट्र तक पहुँच चुकी है। भूमंडलीकरण के दौर में जो भी भारतीय विश्व के कोने-कोने में जा रहा है वहाँ पर हिंदी की सोंधी महक को फैला रहा है। वहाँ पर अपनी संस्कृति व भाषा की अमिट छाप छोड़कर आ रहा है। दूसरी तरफ जो भी विदेशी भारत देश में आ रहे हैं वे भी अपने साथ हिंदी की खुशबू व इत्र को सहेजकर ले जाते हैं। इसीलिए तो 2010 से '10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस' मनाया जाने लगा। आज हिंदी भाषा का दायरा और बढ़ा है। भविष्य में हिंदी भाषा बोलने वालों की संख्या बहुत तेजी से बढ़ने के आसार स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहे हैं। यदि ईश्वर ने चाहा तो भविष्य में संयुक्त राष्ट्र में भी हिंदी का बोलबाला होगा। इसका स्पष्ट संकेत मिल रहा है। संयुक्त राष्ट्र के दरवाजे पर दस्तक देकर हिंदी प्रवेश कर गई है और सिर्फ प्रभुत्व स्थापित करनी है।
यदि मैं ये कहूँ कि पूरे विश्व में हिंदी का साम्राज्य होगा तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी....
"एक दिन ऐसा आएगा, चहु ओर राम राज्य होगा,
संयुक्त राष्ट्र अमेरिका में भी, हिंदी का साम्राज्य होगा।"
"हिंदी हम वतन हैं, गुलिस्तां हमारा,
हिंदी की जय बोल, गौरव बढ़ता हमारा।"
"हिंदी हमारी शान है, हिंदी हमारी पहचान है
हिंदी अपनाएं तो जिंदगी भी आलीशान है।"
सभी हिंदी स्नेहीजनों को हिंदी के प्रचार-प्रसार हेतु हार्दिक शुभकामनाएं।
➖ अशोक सिंह 'अक्स'
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