जननायक बिरसा मुंडा
वैसे तो हम हजारों समाजसुधारकों और स्वतंत्रता सेनानियों को याद करते हैं, उनका जन्मदिन मनाते हैं। पर कुछ ऐसे होते हैं जो अल्पायु जीवनकाल में ही महान कार्य कर जाते हैं पर उनको स्मरण करना सिर्फ औपचारिकता रह जाती है या फिर क्षेत्रीय स्तर पर ही उनकी पहचान सिमटकर रह जाती है। आज मैं बात कर रहा हूँ एक ऐसे समाजसुधारक व स्वतंत्रता सेनानी का जो शहादत देकर अमर हो गया, जिसका नाम 'बिरसा मुंडा था।
बिरसा मुंडा ने सिर्फ 25 वर्ष की अल्पायु जीवनकाल में अंग्रेजों के नाक में ऐसा दम कर दिया कि उन्होंने जेल में ही विष अर्थात जहर देकर बिरसा मुंडा की जीवनलीला समाप्त कर डाली। आओ हम सब बिरसा मुंडा के बारे में थोड़ा विस्तार से जानते हैं।
बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर, 1875 को एक गरीब किसान परिवार में हुआ था। पिता का नाम सुगना पूर्ति (मुंडा) और माता का नाम करमी पूर्ति (मुंडाइन) था। जो राँची के पास उलिहातू गाँव के थे। अपने समाज की दुर्दशा से आहत रहा। वे हमेशा शासकों द्वारा की गई सौतेलेपन व शोषण के व्यवहार व बुरी दशा पर सोचते रहते थे। इसी सिलसिले में 1 अक्टूबर 1894 को मात्र 19 वर्ष की आयु में सभी मुंडाओं को इकठ्ठा करके अंग्रेज़ों के खिलाफ लगान मॉफी के लिए जनांदोलन छेड़ दिया। 1895 में गिरफ्तार कर लिए गए। दो साल की सजा हो गई। उसी दौरान भीषण अकाल पड़ा और क्षेत्र की जनता की सहायता का संकल्प लिए हुए मुंडा व उनके अनुयायियों ने सहायता की। उसी दौरान उन्हें एक महापुरुष होने का दर्जा प्राप्त हुआ। उन्हें इलाके के लोग धरती पुत्र के नाम से जानते और पूजते हैं।
भारतीय इतिहास में बिरसा मुंडा एक ऐसे आदिवासी नेता और लोकनायक थे जिन्होंने भारत के झारखंड में अपने क्रांतिकारी चिंतन से उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में आदिवासी समाज की दशा और दिशा बदलकर नवीन सामाजिक और राजनीतिक युग का सूत्रपात किया। काले कानूनों को चुनौती देकर बर्बर ब्रिटिश साम्राज्य को चुनौती ही नहीं दी बल्कि उसे सांसत में डाल दिया। उन्होंने आदिवासी लोगों को अपने मूल पारंपरिक आदिवासी धार्मिक व्यवस्था, संस्कृति एवं परम्परा को जीवंत रखने की प्रेरणा दी। आज आदिवासी समाज का जो अस्तित्व एवं अस्मिता बची हुई है तो उनमें उनका ही योगदान है। बिरसा मुंडा सही मायने में पराक्रम और सामाजिक जागरण के धरातल पर तत्कालीन युग के एकलव्य और स्वामी विवेकानंद थे।
बिरसा के जीवन में एक नया मोड़ आया। उनका स्वामी आनन्द पाण्डे से सम्पर्क हो गया और उन्हें हिन्दू धर्म तथा महाभारत के पात्रों का परिचय मिला। यह कहा जाता है कि 1895 में कुछ ऐसी आलौकिक घटनाएँ घटीं, जिनके कारण लोग बिरसा को भगवान का अवतार मानने लगे। लोगों में यह विश्वास दृढ़ हो गया कि बिरसा के स्पर्श मात्र से ही रोग दूर हो जाते हैं। वर्तमान भारत में रांची और सिंहभूमि के आदिवासी बिरसा मुंडा को अब ‘बिरसा भगवान’ कहकर याद करते हैं। मुंडा आदिवासियों को अंग्रेजों के दमन के विरुद्ध खड़ा करके बिरसा मुंडा ने यह सम्मान अर्जित किया था। 19वीं सदी में बिरसा भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में एक मुख्य कड़ी साबित हुए थे।
जन-सामान्य का बिरसा में काफी दृढ़ विश्वास हो चुका था, इससे बिरसा को अपने प्रभाव में वृद्धि करने में मदद मिली। लोग उनकी बातें सुनने के लिए बड़ी संख्या में एकत्र होने लगे। बिरसा ने पुराने रूढ़ियों, आडम्बरों एवं अंधविश्वासों का खंडन किया। लोगों को हिंसा और मादक पदार्थों से दूर रहने की सलाह दी। उनकी बातों का प्रभाव यह पड़ा कि ईसाई धर्म स्वीकार करने वालों की संख्या तेजी से घटने लगी और जो मुंडा ईसाई बन गये थे, वे फिर से अपने पुराने धर्म में लौटने लगे। उन्होंने न केवल आदिवासी संस्कृति को बल्कि भारतीय संस्कृति को मजबूत करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
बिरसा के नेतृत्व में 1897 से 1900 के बीच मुंडाओं ने अंग्रेज सिपाहियों की नाक में दम कर दिया था। 1897 में ही खूँटी थाने पर हमला किया गया। 1898 में तांगा नदी के किनारे मुंडाओं ने अंग्रेजों को परास्त कर दिया था। जनवरी 1900 में बिरसा डोम्बरी पहाड़ पर एक जनसभा को संबोधित कर रहे थे तभी अंग्रेजों ने हमला किया और उस संघर्ष में बहुत सी औरतें और बच्चे मारे गए। दरअसल जनसभा पर ही सिपाहियों ने गोलीबारी करना शुरू कर दिया था। उस दौरान बहुत सारे क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें कारावास की सजा दी गई। किसी गद्दार की मिलीभगत से 3 फरवरी 1900 को बिरसा को भी चक्रधर से गिरफ्तार कर लिया गया। 9 जून 1900 को अंग्रेजों ने बिरसा को खाने में विष मिलाकर दे दिया और बिरसा की जीवनलीला समाप्त हो गई। दरअसल बिरसा शहीद हो गए। बिरसा मुंडा इतिहास के पन्नों में अमर हो गया। आज भी बिरसा मुंडा लोंगों की विचारधारा के रूप में जीवित हैं।
बिरसा कहते थे - 'आदमी को मारा जा सकता है, उसके विचारों को नहीं, बिरसा के विचार मुंडाओं और पूरे आदिवासी कौम को संघर्ष की राह दिखाते रहे। आजभी आदिवासी बिरसा को भगवान मानकर पूजते हैं। अनेक समाधियाँ इस बात की प्रमाणिकता को सिद्ध करती हैं।
➖ अशोक सिंह 'अक्स'
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