मेहतर….
साहब
अक्सर मैंने देखा है
अपने आस-पास
बिल्डिंग परिसर व कालोनियों में
काम करते मेहतर पर
डाँट फटकार सुनाते
लोंगों को
जिलालत करते
मारते भर नहीं
पार कर देते हैं सारी हदें
थप्पड़ रसीद करने में भी नहीं हिचकते।
सच साहब
किसी और पर नहीं
बस उसी मेहतर पर
जो साफ करता है
उनकी गंदगी
बीड़ी सिगरेट की ठुंठें
बियर शराब की खाली बोतलें
प्लास्टिक फाइबर की गिलासें
अधखाया तंदूर
दबे कुचले अंगूर
सब्जी फलों के छिलकें
बदबूदार बिरयानी के डिब्बे।
और क्या साहब
गरीबों का मुँह चिढ़ाता
फटा पुराना मुँह बाया जूता
चमरौधा सैंडिल और चप्पल
मिठाइयों के डिब्बे और पत्तल
पूरे तन मन से सफाई करता
सुबह शाम मिलते सलामी देता
सम्मान का पूरा हकदार होता
पर हिस्से में क्या मिलता..?
तानें और झिड़कियाँ
पगार न देने की धमकियाँ।
तंग हो चुका हूँ ...साहब
सुन सुनकर तानें और फटकार
पगार न देनें की धमकी सरकार
आखिर क्यों…?
पापी पेट का सवाल है..
वे नाक बंद कर के निकालते हैं
घर से बाहर
हम सिर पर उठाकर ले जाते हैं
बस्साते कूड़े कचरे को
कोई गंदगी फैलाता है
पर मेहतर ही साफ करता है...।
खैर छोड़ो साहब..
मानवता खो गई है
चंद पैसों की चकाचौंध में
शूट बूट और टाई की रौब में
अहंकार में सब अंधे हैं…
नहीं दिखता…
भूखे पेट दोपहर तक का काम
न चाय-पानी
न तेल-साबुन का दाम
हमारे लिए बदबू ही खुशबू है
दो वक्त की रोटी ही ऐशोआराम
बिना मेहनत के खाना है हराम।
साहब…
सम्मान है सबसे बड़ा ईनाम
पर यहाँ लगते हैं इल्जाम
चप्पल जूते की चोरी का
मेहनत के बदले कामचोरी का
बुरा नहीं मानियेगा साहब
दरअसल
महल में रहने वाले का दिल
है झोपड़ा सा…
झोपड़े में रहनेवाले का दिल
है महल सा…
ये सच है साहब
हम भेंट के नहीं
दरअसल पेट से भूखे हैं
भूख मिट जाए तो
हम गाली भी हँस के सुन लेते हैं।
➖ प्रा. अशोक सिंह..🖋️