पैसा बहुत कुछ तो है पर सबकुछ नहीं है…..
मनुष्य स्वभाव से ही बहुत लालची और महत्त्वाकांक्षी होता है। अर्थ, काम, क्रोध, लोभ और माया के बीच इस तरह फँसता है कि बचकर निकलना मुश्किल हो जाता है। यह उस दलदल के समान है जिसमें से जितना ही बाहर निकलने का प्रयास किया जाता इंसान उस दलदल में और फँसता जाता है। इस संसार में ऐसे बिरले लोग ही होते हैं कि जो इस मायाजाल में नहीं फँसते हैं। उनका तो जिक्र करना भी उचित नहीं है। वे तो ऐसे जितेंद्रिय पुरुष हैं जिन्होंने समझो अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण पा लिया हो। यदि अप्सरा मेनिका भी आ जाए तो भी शायद इनका इरादा बिचलित न हो। ऐसे लोंगों का जीवन सदा अनुकरणीय रहता है। ये दूसरों के लिए सदा आदर्श बन जाते हैं। बेशक इनके जीवन में भी उतार-चढ़ाव व उथल-पथल होता है पर उस पर इनका नियंत्रण होता है। ये परिस्थितियों के साथ तालमेल बैठाने व सामंजस्य स्थापित करने में कुशल होते हैं। ये भी पैसे को महत्त्व देते हैं पर एक सीमित मर्यादा में रहते हुए।
हम बात करने जा रहे हैं उन विशेष प्रकार व प्रजाति के इंसानों की जो अपने जीवनकाल में सिर्फ पैसे को ही महत्त्व देते हैं। इनके लिए कोई रिश्ता या मानवीय संवेदना मायने नहीं रखता है। इनकी सोच ऐसी होती है कि पैसा है तो सबकुछ संभव है अर्थात ये पैसे के जोर से हर नामुमकिन कार्य को मुमकिन करने के फिराक में होते हैं। कालांतर में भले ही सबकुछ खत्म हो जाए पर इनकी अकड़ और हेकड़ी कम नहीं होती है। वैसे तो राजनीति के गलियारे में तो आप एक ढूंढेंगे तो आपको हजारों मिल जाएंगे। जिनमें ये खूबियाँ कूट-कूटकर भरी होती हैं। जितने भी स्कैंडल व घोटाले होते हैं उसके पीछे ऐसे ही महत्त्वाकांक्षी लोग होते हैं। जिसमें बड़े से बड़े मंत्री से लेकर IAS और IPS रैंक के अधिकारी भी मुँह काला करते हैं पर जीते हैं शान से…. जैसे आम चीज हो। कुछ फर्क नहीं पड़ता है...। नहीं जी फर्क पड़ता है… फर्क उनको पड़ता है जिनमें थोड़ी सी शर्म और हया होती है। बेशरम लोग तो शान से जेल भी जाते हैं। कोर्ट के चक्कर भी लगाते हैं। लानत है ऐसे लोंगों पर...। खैर चिंता का विषय यह नहीं है कि ऐसी अराजकता फैली है। चिंता का विषय यह है कि अनपढ़ और अशिक्षित व्यक्ति या राजनेता इसमें संलिप्त हो तो ठीक है पर पढ़े लिखे व सुशिक्षित पदाधिकारियों की संलिप्तता सोचनीय है।
मैं आपको इस आलेख में दो ऐसे व्यक्तियों की घटनाओं से अवगत कराऊँगा जिन्होनें जीवनकाल में सिर्फ और सिर्फ पैसे को ही महत्त्व दिया था, वे पैसे को ही सबकुछ समझते थे पर अंत में उनकी स्थिति इतनी दयनीय और उपेक्षित हो गई जिससे अंतरात्मा भी काँप उठे। चलिए सबसे पहले मैं आपको एक सुशिक्षित प्रतिष्ठित व्यक्ति डॉ. जगदीश के कारनामों से रूबरू करवाते हैं। महाशय बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर थे। सुशिक्षित होते हुए भी पैसे के अत्यंत लोभी। जिसके कारण नीति अनीति न देखते हुए अपनी महत्त्वाकांक्षाओं को पूरा करने में जुटे रहे। जबकि इनका सुखद संपन्न परिवार था। सुंदर सुशील सुशिक्षित पत्नी और चार बच्चे थे- दो लड़के और दो लड़कियाँ। सबसे पहले प्रोफेसर साहब ने कूटनीति का प्रयोग करते हुए बनारस के उस मकान को हथिया लिए जिसमें वे लगभग 15 वर्ष तक किराएदार बनकर रहते थे। मकान मालिक पैसे से कमजोर था। थकहार कर बैठ गया पर उसकी आह जरूर लगी होगी। सम्पन्नता के साथ-साथ मनुष्य में कई व्यसन व अवगुण भी आ जाते हैं। जिसके बाद पतन होना तय हो जाता है।बेटियों की शादी हो चुकी थी। एकदिन किसी बात को लेकर अनबन हुआ जिसके कारण बड़े बेटे ने जहर खाकर आत्महत्या कर लिया। इतना ही नहीं अय्याशियों से तंग आकर एक साल के भीतर ही धर्मपत्नी ने भी उसी अंदाज में जहर का सेवन करके आत्महत्या कर ली। छह महीनें बीतते-बीतते छोटा बेटा भी कार को लेकर नाराज़ हुआ और आत्महत्या कर लिया। लेकिन प्रोफेसर साहब की रंगरंगेलियाँ कम नहीं हुई। 55 वर्ष की आयु में 25 वर्ष की लड़की के साथ दूसरी शादी कर लिए। जबकि उनकी लड़कियों ने भी बहुत समझाया पर नहीं मानें। गाँववालों की भी बातें नहीं माने फिर क्या…? होना वही था जिसकी किसी ने कल्पना नहीं किया था। रिटायरमेंट के बाद नई बीबी पिला-पिलाकर बीमार कर डाली और दो वर्ष बीतते - बीतते दम तोड़ दिए। एक सुशिक्षित व्यक्ति की ऐसी दुर्दशा किस कारण से हुई, सिर्फ और सिर्फ पैसे को आवश्यकता से अधिक महत्त्व देने से। दूसरे की करोड़ो की संपत्ति हड़पना और तमाम बुराइयों में संलिप्त होना ही पतन का कारण बना। न परिवार रहा और न संपत्ति का सुख भोगने के लिए स्वयं रहे। अत्यंत दयनीय तरीके से अंत, संपत्ति का सुख बेटियों को भी नहीं मिला, उसकी मालकिन कोई और बन गई जो एक वर्ष के बाद दूसरी शादी कर ली।
मैं आपको दूसरी कहानी से भी अवगत कराता हूँ जिससे शायद आपलोग परिचित होंगें। वैसे ये कहानी भी थोड़ी पुरानी है... IAS सजल चक्रवर्ती झारखंड के मुख्यसचिव थे। 2018 में लालू के चारा घोटाले में दोषी सिद्ध हुए चक्रवर्ती के न जाने कितने IAS / IPS पैर छूते रहे होंगे, पर उस समय इनकी बेबसी देखकर मन बहुत विचलित हुआ । उस समय इनका वजन 150 kg के आस पास था ये कई बिमारियों से ग्रसित हो चुके थे और ठीक से चल भी नही पाते थे…...
रांची कोर्ट की पहली मंज़िल में पेशी थी, एक सीढ़ी घसीट कर उतरे । फिर दूसरी सीढ़ी पहुँचने के लिए खुद को घसीट रहे थे। यह दृश्य जीवन का यथार्थबोध कराने वाला था। माता-पिता नही रहे,भाई सेना में बड़े अफसर थे,अब वे भी नही रहे। जिसको गोद लिए, उसकी शादी हो गई । अब उसे भी इनसे मतलब नहीं है । अपने घर मे कुछ बन्दर और कुत्ते पाल रखे थे, ये शानो शौकत, पैसे सब बेकार सिद्ध हुए......अब बस मृत्यु ही शायद इनका कष्ट दूर कर सकती है। जरा सोचिये ! कल तक बड़े-बड़े अधिकारी / कर्मचारी जिनकी गाड़ी का दरवाज़ा खोलने के लिए आतुर रहते थे, वही व्यक्ति दुनिया के सामने जमीन पर असहाय पड़ा था । उसने दो शादी की, मगर दोनों बीबियों ने तलाक दे दिया । कोर्ट में सबका कोई न कोई आया था, लेकिन वे बिल्कुल अकेले …… इसकी वजह बिल्कुल स्पष्ट है कि जब वह पद पर रहे होंगे, सिर्फ धन अर्थात रुपए को ही अपना सब कुछ मान लिए होंगे । किसी की दिल से मदद नहींं की होगी । अगर की होती तो शायद आज कोई न कोई उनके लिये जरूर खड़ा रहता...........! एक बात तय मानिए, भ्रष्टाचार यानी लूट-खसोट की कमाई सिर चढ़कर अपना असर जरूर दिखाती है। इसलिए जब हम सामर्थ्यवान हों तो हमें दूसरे की मदद जरूर करनी चाहिए, जिससे की लोग बाद में आपको भी याद करें और मुसीबत के समय में आपके साथ खड़े रहें।
इसलिए जीवन को जीवन्त बनायें । लोगों की मदद करते हुए अपना जीवन जीना चाहिए। सही अर्थों में तो वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए जिए…..
पाप की कमाई आखिर किसके लिए …… अब तो आपको समझ में आ गया होगा कि मैं किनकी बात अर्थात किस तरह के लोगों की बात कर रहा था। ये हैं सुशिक्षित और उच्च पदाधिकारी ……
जरा सोचिए तो सही कि... पैसा बहुत कुछ तो है....पर सब कुछ नहीं….
अंत में बस इतना ही कहूँगा कि "जैसी करनी वैसा फल मिलता है… भले ही आज नहींं…. तो निश्चित कल.....।"
प्रा. अशोक सिंह….✒️