गुम हूँ उसके याद में....
गुम हूँ उसके याद में, जिसे चाहा था कभी
गोदी में सुलाकर जिसने, दुलारा था कभी
प्रसव-वेदना की पीड़ा से, जाया था कभी
दुःख सहकर उसने, पाला-पोसा था कभी
रात-रात भर जागकर, सुलाया था कभी।
गुम हूँ उसके याद में, जिसने दुनिया में लाया था कभी
अपने सपनों को तोड़-तोड़कर, जिलाया था कभी
खुद भूखी रह-रहकर के, मुझे खिलाया था कभी
मोह माया में फँसकर के, मुझे भुला दिया तभी
बातों से मूर्च्छा आ जाती, दूरी बना लिया तभी।
गुम हूँ उसके याद में, जिसनें गुमराह कर दिया
वफादारी के बदले में, उसने धोखा जो दे दिया
विश्वास किया था उनपे, पर विश्वासघात हो गया
मेरी बातें रास नहीं आती, बर्बाद जो कर दिया
ज़मीन ज़ायदाद व जान से, अपना हाथ धो लिया।
गुम हूँ उसके याद में, जिसने बर्बाद कर दिया
मन बढ़ाकर उसका, जीना हराम कर दिया
किसका हिस्सा कैसा हिस्सा, राग क्या अलापा
शरणागत में धोखा हो गया, फैला दिया फिर स्यापा
मैं शिकवा करूँ क्या गैरों से, मुझे अपनों ने ही लूटा।
गुम हूँ उसके याद में, जिसने बलि चढ़ा दिया
जिसने जाया उसने ही, बलि का बकरा बना दिया
धृतराष्ट्र बन गए पुत्रमोह में, कुल विध्वंस करा दिया
लालच की बलि-बेदी पर, अपने तनय को चढ़ा दिया
निष्कलंक कुल के माथे पर, अमिट कलंक जड़ दिया।
➖अशोक सिंह 'अक्स'
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