हिंदी पाठ्यपुस्तक, मूल्यमापन एवं आराखड़ा प्रशिक्षण कार्यक्रम संपन्न
महाराष्ट्र राज्य माध्यमिक व उच्च माध्यमिक शिक्षण मंडल और बालभारती के संयुक्त तत्वावधान में बहुप्रतीक्षित बारहवीं की हिंदी पाठ्यपुस्तक, मूल्यमापन एवं आराखड़ा संबंधित प्रशिक्षण कार्यक्रम दिनांक 1 नवंबर, 2020 को सुबह 11.30 बजे संपन्न हुआ। प्रशिक्षण कार्यक्रम की शुरुवात बोर्ड अध्यक्षा श्रीमती शकुंतला काले के स्वागत वचन, अभिनन्दन व शुभकामनाओं के साथ हुआ। उसके बाद डायरेक्टर डॉ. दिनकर पाटिल के शुभकानाओं की प्रस्तुति हुई और उन्होंने प्रशिक्षण सावधानीपूर्वक लेने की आवश्यकता पर जोर दिया। बेशक कोरोना प्रकोप के कारण प्रशिक्षण कार्य में विलंब हो चुका है। दरअसल नई पाठ्यपुस्तक होने के कारण उसका मूल्यमापन व पुस्तक परिचय का प्रशिक्षण सत्र के प्रारंभ में ही होना चाहिए था पर 60 प्रतिशत पाठ्यक्रम की समाप्ति पर कृतिपत्रिका व मूल्यमापन संबंधी जानकारी प्रस्तुत की गई जिससे प्राध्यापकों का कार्य व दायित्व और अधिक बढ़ गया है।
संयोजन की भूमिका में डॉ. मिलिंद कांबले ने महती भूमिका निभाते हुए सतही परिचय व तकनीकी सहायकों का आभार व योगदान को प्रोत्साहित करते हुए सबसे पहले आभासी मंच पर कार्यक्रम की प्रस्ताविकी के लिए मुंबई की डॉ. दीप्ति सावंत को आमंत्रित किया। डॉ. दीप्ति सावंत ने बाबा नागर्जुन की कविता का वाचन करते हुए प्रशिक्षण कार्यक्रम की प्रस्ताविकी व महत्त्व को प्रस्तुत किया। पाठ्यपुस्तक की उपयोगिता व उसके बहुआयामी उद्देश्यों को मुखरित किया। प्राचीनतम व नवीनतम विधाओं के संगम के स्वरूप में निर्मित पाठ्यपुस्तक को नवोचार का महत्ती का कार्य बतलाया। उनके कथनानुसार नये रूप में नई विधाओं का संयोजन आकर्षक है।
दूसरी तासिका में प्रा. धन्यकुमार विराजदार ने पुस्तक परिचय के दायित्व को बखूबी निभाया। राज्यस्तरीय प्रशिक्षण कार्यक्रम को उदबोधित करते हुए बताए कि 'किताबें कुछ कहना चाहती हैं।' पुस्तक के मुखपृष्ठ और मलपृष्ठ का अवलोकन व संबंधित उचित विवेचना प्रस्तुत की गई। अनुक्रमणिका को लक्षित करते हुए सभी निहित गद्य पाठों व विधाओं का संक्षिप्त परिचय व शामिल किए जाने के उद्देश्यों का सुंदर तरीके से प्रस्तुति की गई। पद्यविभाग में कविताओं व काव्य प्रकार के मुख्य विचारों व संदेशों को बखूबी संचरित किया। विशेष अध्ययन कनुप्रिया काव्य के माध्यम से बताने का प्रयास किया कि वर्तमानसमय में कितना प्रासंगिक है, अतः आज युद्ध की नहीं बल्कि बुद्ध की जरूरत है। व्यावहारिक हिंदी में शामिल सभी पाठों को रोजगारपरक व रोजगार की संभावनाओं को उजागर व प्रशस्त करने वाला बतलाया। पाठ्यपुस्तक में समाहित अंतिम पाठ के माध्यम से छात्रों को शोध कार्य की तरफ आकर्षित करने का उद्देश्य बतलाया। व्याकरण से भाषा पर प्रभुत्व स्थापित होता है। पाठ्यपुस्तक संबंधित केंद्रीय तत्वों की चर्चा करके यह विश्वास दिलाने का प्रयास किया कि पाठ्यपुस्तक की निर्मिति समस्त मूल्यों, संस्कृतियों व रूढ़ियों को लक्षित करके किया गया है। जीवन कौशल की विवेचना करते हुए भी पुस्तक को अपेक्षित उद्देश्यों को पूर्ण करनेवाला, उपर्युक्त, प्रासंगिक और समसामयिक बतलाने का प्रयास किया।
तीसरी तासिका में मुंबई की डॉ. ममता झा ने अध्ययन-अध्यापन की पद्धतियों पर मंतव्य प्रकट किया। 'गुरू कुंभार शिष्य कुंभ है….' से प्रारंभ करके गुरू के दायित्व को याद दिलाने का प्रयास किया। भाषा की शुद्धता, सही उच्चारण, विधाओं को पढ़ाने की विशिष्ट शैली व पद्धति को अपनाना चाहिए। कविता या गीत को गाकर, तुकांत को ध्यान में रखकर, जोश व उत्साह के साथ पढ़ाना चाहिए, जिससे कि छात्रों में रुचि निर्माण हो सके। आवश्यकतानुसार विभिन्न पद्धतियों का प्रयोग आवश्यक व उपयुक्त है। 'शिक्षा एक अनमोल रतन, पढ़ाते समय करो जतन..' की विचारधारा रखने वाली प्राध्यापिका ममताजी ने बतलाने का प्रयास किया कि शिक्षा एक उपकरण के समान है जो सफलता पाने में मदद करता है। प्राध्यापक आवश्यकतानुसार व्याख्यान पद्धति, चर्चा व प्रश्नोत्तरी पद्धति, सामूहिक चर्चा और पर्यवेक्षिक अध्यापन पद्धति आदि के प्रयोग कर सकते हैं। अपेक्षित उद्देश्यों को पूर्ण करना, अच्छे अंक लाना व साहित्य के प्रति रुचि निर्माण करना स्वभाविक है। अतः छात्रों के स्वास्थ्य व उत्तम चरित्र पर विशेष ध्यान देते हुए एक अच्छा नागरिक बनाने का प्रयास करना चाहिए और उन्हें अभिव्यक्ति का अवसर प्रदान करना चाहिए।
चौथी तासिका में बारामती के डॉ. मिलिंद कांबले ने मूल्यमापन व आराखड़ा संबंधित महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ प्रदान कर उचित मार्गदर्शन किया। उन्होंने कृतिपत्रिका (80 अंक) के प्रारूप की विस्तार से चर्चा किए साथ ही विविध विभागों के अंक विभाजन व अपेक्षित कृतियों की चर्चा किए। मौखिक परीक्षा जिसके लिए कुल 20 अंक निर्धारित होते हैं, उसकी कृतिपत्रिका का प्रारूप, नमूना कृतिपत्रिका और आदर्श नमूना उत्तर की भी चर्चा किए। बेशक कृतिपत्रिका के निर्माण कार्य में छात्रों को केंद्र में रखकर उनके हित के लिए अत्यंत सरल, सहज व आसान बनाया गया है। अतः कृतिपत्रिका छात्रोपयोगी है जिससे उनको अच्छे अंक अर्जित करने में सहूलियत होगी।
पाँचवी तासिका प्रा. विभा राठौड़ द्वारा गद्य विभाग (20 अंक) और पद्य विभाग (20 अंक) के लिए कृतिपत्रिका का नमूना और नमूना उत्तर कृतिपत्रिका की प्रस्तुति की गई। कृतिपत्रिका का निर्माण कार्य करते समय विधाओं का ध्यान, कृतियों का ध्यान, शब्दसंपदा और अभिव्यक्ति का चयन करने संबंधी सावधानियां बरतने पर जोर दिया।
जिसमें गद्यांश व पद्यांश से संबंधित शब्दों की सीमा, लघूत्तरी व साहित्य संबंधी कृति से जुड़ी अहम सूचनाएँ प्रस्तुत की गई।
छठी तासिका में मुंबई की वरिष्ठ प्राध्यापिका डॉ. वंदना पावसकर जी ने तीसरा विभाग विशेष अध्ययन (10 अंक), चौथा विभाग व्यावहारिक हिंदी (20 अंक) और पाँचवा विभाग व्याकरण (10 अंक) से संबंधित नमूना कृतिपत्रिका व नमूना उत्तर कृतिपत्रिका का उचित व आवश्यक मार्गदर्शन प्रस्तुत किया। जिसमें अहम मुद्दे ये रहे कि कनुप्रिया से विशेष अध्ययन के अंतर्गत रसास्वादन नहीं पूछा जाएगा, व्यावहारिक में लघूत्तरी में प्रश्न छात्रों के लिए व्यावहारिक प्रयोग पर आधारित होने चाहिए, 6 अंक के लिए अपठित गद्यांश पूछा जाएगा, 4 अंक के लिए पारिभाषिक शब्दावली पाठ्यपुस्तक में पृष्ठ क्रमांक 108 / 109 से ही होने चाहिए। व्याकरण के सारे प्रश्न पुस्तक में से ही होने चाहिए। मुहावरे भी पाठ पर आधारित या पुस्तक में दिए गए हैं उसी में से होना चाहिए। कालपरिवर्तन व वाक्यशुद्धिकरण के वाक्य पाठ्यपुस्तक में से ही होने चाहिए। बारहवीं कक्षा में पढ़ाए गए रस और अर्थालंकार के उदाहरण पहचानने के लिए पाठ्यपुस्तक में दिए गए उदाहरण में से ही पूछे जाएंगे।
इसके पश्चात प्रश्नोत्तरी सत्र रखा गया जिसमें प्राध्यापकों के द्वारा चैटबॉक्स में पूछे गए कुछ चुने गए प्रश्नों का समाधान करने का प्रयास किया गया। कुलमिलाकर कोरोना काल में आभासीय मंच के माध्यम से यूट्यूब पर प्रसारण करके प्रशिक्षण कार्यक्रम को सुंदर तरीके से संपन्न किया। प्रशिक्षण कार्यक्रम के अंत में श्री प्रभाकर पंचाल ने आभार प्रदर्शन किया और प्रशिक्षण कार्यक्रम के समापन की घोषणा कर दी गई।
➖ प्रा. अशोक सिंह 'अक्स'
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