समाज और देश के उत्थान में युवाओं की भूमिका
समाज और देश के उत्थान में युवाओं की अहम भूमिका होती है। मैं युवाओं की बात को स्वामी विवेकानंद जी के उन विचारों के माध्यम से शुरू कर रहा हूँ जिनमें युवाओं को विशेष रूप से संबोधित किया गया है। स्वामीजी की मान्यता है कि भारतवर्ष का नवनिर्माण शारीरिक शक्ति से नहीं बल्कि आत्मिक शक्ति से होगा। इस संबंध में उनके शब्द कुछ इस प्रकार हैं। उनकी आशा, उनका विश्वास नई पीढ़ी के नवयुवकों पर है। उन्हीं में से कार्यकर्ताओं का संग्रह करना है। वे कार्यकर्ता ही सिंहविक्रम से देश की यथार्थ उन्नति संबंधी समस्याओं का समाधान करेगें। भारत देश का पुनरुत्थान होगा पर शारीरिक शक्ति से नहीं बल्कि आत्मा की शक्ति से। वह उत्थान हिंसा और विनाश के मार्ग से नहीं बल्कि शांति और प्रेम के मार्ग पर चलकर ही संभव है। उन्होंने त्याग और सेवा को भारत का राष्ट्रीय आदर्श बतलाया है। जब युवा पीढ़ी त्याग और सेवा के भाव के साथ जुट जाएगी तो शेष सबकुछ अपने आप ठीक हो जाएगा। एक बार मन से काम में लग जाने पर इतनी शक्ति आ जायेगी की संभालने से नहीं संभलेगा। दूसरों के लिए रत्ती भर सोचने से काम करने की शक्ति भीतर जग उठती है। इसी शक्ति से समाज के साथ-साथ देश का भी कायापलट संभव है।
युवाशक्ति देश और समाज की रीढ़ होती है। युवा देश और समाज को सफलता व विकास के नए शिखर पर ले जाते हैं। युवा देश का वर्तमान हैं, तो भूत और भविष्य के बीच सेतु भी हैं। युवा देश और समाज के जीवन मूल्यों के प्रतीक हैं। युवा गहन ऊर्जा और उच्च महत्त्वकांक्षाओं से भरे होते हैं। उनकी आंखों में भविष्य के लिए इंद्रधनुषी स्वप्न होते हैं। समाज को बेहतर बनाने और राष्ट्र के निर्माण में सर्वाधिक योगदान युवाओं का ही होता है। देश के स्वतंत्रता आंदोलन में युवाओं ने ही अपनी शक्ति का परिचय दिया था। जिसे देखकर अंग्रेज थरथरा गए थे और भारत छोड़कर जाने के लिए मजबूर हुए। इसीलिए तो कहा जाता है कि किसी भी देश का भविष्य युवापीढ़ी के कंधों पर होता है।
भारत एक विकासशील और बड़ी जनसंख्या वाला देश है। यहाँ की आधी जनसंख्या युवाओं की है। देश की लगभग 65 प्रतिशत जनसंख्या की आयु 35 वर्ष से कम है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत सबसे बड़ी युवा आबादी वाला देश है। यहाँ के लगभग 60 करोड़ लोग 25 से 30 वर्ष के हैं। यह स्थिति वर्ष 2050 तक बनी रहेगी। विश्व की लगभग आधी जनसंख्या 25 वर्ष से कम आयु की है। अपनी बड़ी युवा जनसंख्या के साथ भारत की अर्थव्यवस्था नई ऊंचाई पर जा सकता है। परंतु इस ओर भी ध्यान देना होगा कि आज देश की बड़ी जनसंख्या बेरोजगारी से जूझ रही है। भारतीय सांख्यिकी विभाग द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार देश में बेरोजगारों की संख्या लगातार बढ़ रही है। देश में बेरोजगारों की संख्या 11.3 करोड़ से अधिक है। 15 से 60 वर्ष आयु के 74.8 करोड़ लोग बेरोजगार हैं, जो काम करने वाले लोगों की संख्या का 15 प्रतिशत है। जनगणना में बेरोजगारों को श्रेणीबद्ध करके गृहणियों, छात्रों और अन्य में शामिल किया गया है। यह अब तक बेरोजगारों की सबसे बड़ी संख्या है। वर्ष 2001 की जनगणना में जहाँ 23 प्रतिशत लोग बेरोजगार थे, वहीं 2011 की जनगणना में इनकी संख्या बढ़कर 28 प्रतिशत हो गई। बेरोजगार युवा हताश हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में युवा शक्ति का अनुचित उपयोग किया जा सकता है। कहा जाता है कि खाली घर शैतान का होता है। युवा भी जब बेरोजगार होता है तो मन खुरापाती हो जाता है। जिसके कारण युवा विध्वंसक मार्ग पर बढ़ने की ओर अग्रसर हो जाता है। हताश युवा अपराध के मार्ग पर चल पड़ते हैं। वे नशाख़ोरी के शिकार हो जाते हैं और फिर अपनी नशे की लत को पूरा करने के लिए अपराध भी कर बैठते हैं। अतः युवाशक्ति के गलत प्रयोग से उसका पतन होता है। इस तरह वे अपना जीवन नष्ट कर लेते हैं। देश में हो रही 70 प्रतिशत आपराधिक गतिविधियों में युवाओं की संलिप्तता रहती है।
देखने में आ रहा है कि युवाओं में नकारात्मकता जन्म ले रही है। उनमें धैर्य की कमी है। वे हर वस्तु अति शीघ्र प्राप्त कर लेना चाहते हैं। वे आगे बढ़ने के लिए कठिन परिश्रम की बजाय शॊर्टकट्स खोजते हैं। भोग विलास और आधुनिकता की चकाचौंध उन्हें प्रभावित करती है। उच्च पद, धन-दौलत और ऐश्वर्य का जीवन उनका आदर्श बन गए हैं। अपने इस लक्ष्य को प्राप्त करने में जब वे असफल हो जाते हैं, तो उनमें चिड़चिड़ापन आ जाता है। कई बार वे मानसिक तनाव का भी शिकार हो जाते हैं। युवाओं की इस नकारत्मकता को सकारत्मकता में परिवर्तित करना होगा।
यदि युवाओं को कोई उपयुक्त कार्य नहीं दिया गया, तब मानव संसाधनों का भारी राष्ट्रीय क्षय होगा। उन्हें किसी सकारात्मक कार्य में भागीदार बनाया जाना चाहिए। यदि इस मानव शक्ति की क्रियाशीलता को देश की विकास परियोजनाओं में प्रयुक्त किया जाए, तो यह अद्भुत कार्य कर सकती है। जब भी किसी चुनौती का सामना करने के लिए देश के युवाओं को पुकारा गया, तो वे पीछे नहीं रहे। प्राकृतिक आपदाओं के समय युवा आगे बढ़कर अपना योगदान देते हैं, चाहे भूकंप हो या बाढ़, युवाओं ने सदैव पीड़ितों की सहायता में दिन-रात परिश्रम किया।
युवाओं के उचित मार्गदर्शन के लिए अति आवश्यक है कि उनकी क्षमता का सदुपयोग किया जाए। उनकी सेवाओं को प्रौढ़ शिक्षा तथा अन्य सराकारी योजनाओं के तहत चलाए जा रहे अभियानों में प्रयुक्त किया जा सकता है। वे सरकार द्वारा सुनिश्चित लक्ष्यों की प्राप्ति के दायित्व को वहन कर सकते हैं। तस्करी, काला बाजारी, जमाखोरी जैसे अपराधों पर अंकुश लगाने में उनकी सेवाएं ली जा सकती हैं। युवाओं को राष्ट्र निर्माण के कार्य में लगाया जाए। राष्ट्र निर्माण का कार्य सरल नहीं है। यह दुष्कर कार्य है। इसे एक साथ और एक ही समय में पूर्ण नहीं किया जा सकता। यह चरणबद्ध कार्य है। इसे चरणों में विभाजित किया जा सकता है। युवा इस श्रेष्ठ कार्य में अपनी क्षमता और योग्यता के अनुसार भाग ले सकते हैं। ऐसी असंख्य योजनाएं, परियोजनां और कार्यक्रम हैं, जिनमें युवाओं की सहभागिता सुनिश्चत की जा सकती है. युवा समाज में समाजिक, आर्थिक और नवनिर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। वे समाज में प्रचलित कुप्रथाओं और अंधविश्वास को समाप्त करने में सहायक सिद्ध हो सकते हैं। देश में दहेज प्रथा के कारण न जाने कितनी ही महिलाओं पर अत्याचार किए जाते हैं, यहां तक कि उनकी हत्या तक कर दी जाती है। महिलाओं के प्रति यौन हिंसा से तो देश त्रस्त है। नब्बे साल की वॄद्धाओं से लेकर कुछ दिन की मासूम बच्चियों तक से दुष्कर्म कर उनकी हत्या कर दी जाती है। डायन प्रथा के नाम पर महिलाओं की हत्याएं होती रहती हैं। अंधविश्वास में जकड़े लोग नरबलि तक दे डालते हैं। समाज में छुआछूत, ऊंच-नीच और जात-पांत की खाई भी बहुत गहरी है। दलितों विशेषकर महिलाओं के साथ अमानवीयता व्यवहार की घटनाएं भी आए दिन देखने और सुनने को मिलती रहती हैं, जो सभ्य समाज के माथे पर कलंक समान हैं। आतंकवाद के प्रति भी युवाओं में जागृति पैदा करने की आवश्यकता है। भविष्य में देश की लगातार बढ़ती जनसंख्या का पेट भरने के लिए अधिक खाद्यान्न की आवश्यकता होगी। कृषि में उत्पादन के स्तर को उन्नत करने से संबंधित योजनाओं में युवाओं को लगाया जा सकता है। इससे जहां युवाओं को रोजगार मिलेगा, वहीं देश और समाज हित में उनका योगदान रहेगा।
केवल राष्ट्रीय युवा दिवस मनाकर स्वामी विवेकानन्द जी के स्वप्न को साकार नहीं किया किया जा सकता और न ही युवाओं के प्रति अपने दायित्व का निर्वाह किया जा सकता है। उल्लेखनीय है कि विश्व के अधिकांश देशों में कोई न कोई दिन युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र संघ के निर्णयानुसार वर्ष 1985 को अंतरराष्ट्रीय युवा वर्ष घोषित किया गया। पहली बार वर्ष 2000 में अंतरराष्ट्रीय युवा दिवस का आयोजन आरंभ किया गया था। संयुक्त राष्ट्र ने 17 दिसंबर 1999 को प्रत्येक वर्ष 12 अगस्त को अंतरराष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की थी। अंतरराष्ट्रीय युवा दिवस मनाने का अर्थ है कि सरकार युवाओं के मुद्दों और उनकी बातों पर ध्यान आकर्षित करे। भारत में इसका प्रारंभ वर्ष 1985 से हुआ, जब सरकार ने स्वामी विवेकानन्द के जन्म दिवस पर अर्थात 12 जनवरी को प्रतिवर्ष राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की। युवा दिवस के रूप में स्वामी विवेकानन्द का जन्मदिवस चुनने के बारे में सरकार का विचार था कि स्वामी विवेकानन्द का दर्शन एवं उनका जीवन भारतीय युवकों के लिए प्रेरणा का बहुत बड़ा स्रोत हो सकता है। इस दिन देश भर के विद्यालयों एवं महाविद्यालयों में कई प्रकार के कार्यक्रम होते हैं, रैलियां निकाली जाती हैं, विभिन्न प्रकार की स्पर्धाएं आयोजित की जाती है, व्याख्यान होते हैं तथा विवेकानन्द साहित्य की प्रदर्शनियां लगाई जाती हैं।
स्वामी विवेकानंद ने भारत देश के युवाओं को संबोधित करते हुए कहा था कि देश का पुनरुत्थान आत्मशक्ति से होगा। इसलिए सभी युवाओं को अपने भीतर आत्मशक्ति को जाग्रत करना होगा। जिसकी प्राप्ति आत्मविश्वास व अनुभव से होता है। समाज व देश में अमन, चैन, सुख और शांति स्थापित करने के लिए प्रेम की ध्वजा को लेकर चलने का सुझाव दिए हैं। त्याग और सेवा को परम् आदर्श बतलाया है। पददलितों का उद्धार करने हेतु सहृदयता के साथ उनको सहयोग देने और साथ में लेकर आगे बढ़ने की प्रेरणा दिए हैं।
हमें अपने विचारों से सहमत करके आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किये हैं। अपने भाइयों पर जबरन अपने विचारों को लादना और उसे मानने के लिए विवश करना उनका मकसद नहीं था। वे तो हमारे भीतर अतुल्य सिंह के समान अदम्य साहस भर देना चाहते थे। भाइयों को साथ लेकर चलने की दलीलें देते थे। ईर्ष्या, षड्यंत्र और दलबंदी से दूर रहकर ही समाज व देश में अमन, चैन व सुख शांति की स्थापना संभव है।
स्वामी विवेकानंद ने युवाओं को संबोधित करते हुए कठोपनिषद का एक मंत्र कहा था-
‘उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत।’
अर्थात उठो, जागो और तब तक मत रुको, जब तक कि अपने लक्ष्य तक न पहुंच जाओ।' कहने का तात्पर्य यह है कि लक्ष्य की प्रप्ति होने तक लगातार चलते रहिए और तबतक मत रुकिए जबतक आपको लक्ष्य की प्रप्ति न हो जाए। दूसरे शब्दों में लगातार संघर्षरत रहने का आह्वान हुआ।
निसंदेह, युवा देश के विकास का एक महत्वपूर्ण अंग है। युवाओं को देश के विकास के लिए अपना सक्रिय योगदान प्रदान करना चाहिए। समाज को बेहतर बनाने और राष्ट्र निर्माण के कार्यों में युवाओं को सम्मिलित करना अति महत्वपूर्ण है तथा इसे यथाशीघ्र एवं व्यापक स्तर पर किया जाना चाहिए। इससे एक ओर तो वे अपनी सेवाएं देश को दे पाएंगे, दूसरी ओर इससे उनका अपना भी उत्थान होगा। यह सत्य है कि जबतक जनजन का व्यक्तिगत उत्थान नहीं होगा तबतक समाज और देश का उत्थान संभव नहीं है। इसलिए युवाओं को अपना महत्त्व और भूमिका दोनों को समझना चाहिए और उसी के अनुरूप आत्मोन्नति करके समाज और राष्ट्रहित के कार्य में सहयोग करना चाहिए।