नसीब अपना-अपना
किसी ने सच कहा है साहब
दुनिया में सभी लेकर आते हैं
नसीब अपना-अपना....।
विधिना ने जो लिख दिया
तकदीर छठी की रात
मिटाए से भी नहीं मिटता
लकीर खींची जो हाथ....।
नसीब में होता है तो
बिना माँगे मोती मिल जाता है
नसीब में न होने पर
माँगने से भीख भी नहीं मिलती है।
ये तो नसीब का ही खेल है
रात का सपना सुबह सच हो जाता है
कुछ तो सपनें में ही खोये रहते हैं
और जिंदगी बीत जाती है।
नसीब से ही लोंगों को
घर परिवार और बच्चे मिलते हैं
कुछ तो सबकुछ होते हुए भी
इन सबके लिए तरसते हैं...।
एक ही समय पर जन्में लोगों में
कोई राजा बनता है तो कोई रंक
जो नसीब में है दौड़ के आता है
नहीं है तो आके भी चला जाता है।
ये नसीब ही तो है साहब
चायवाला प्रधानमंत्री बन गया
और प्रधानमंत्री का लाड़ला
आज दर-दर भटक रहा...।
नसीब ने फर्श से अर्श को तरासा
अभावों को दूर कर जिंदगी सँवारा
रेत में भी गुलशन खिला दिया
ज़हालत को देख आफ़ताब ला दिया।
पर ये सच है साहब
नसीब भी साथ देता है
मेहनत करने वालों का
बाकियों का तो बेड़ा गर्क होता है।
➖अशोक सिंह 'अक्स'
#अक्स
#स्वरचित_हिंदीकविता