*हमारा देश भारत समस्त विश्व में अलौकिक है | विश्व के अनेक देशों से लोग भारत के इस दिव्यता का दर्शन करने के लिए आते हैं | जन्म मृत्यु का बंधन प्रत्येक प्राणी के साथ लगा रहता है | इस आवागमन से मुक्ति पाने के लिए भारत में अनेकों तीर्थ ऐसे हैं जिनका उल्लेख मिलता है | इन तीर्थों में मृत्यु होने पर मनुष्य भव बंधन से छूट जाता है | इन सभी तीर्थों में सर्वश्रेष्ठ भगवान शिव की नगरी काशी को माना जाता है क्योंकि हमारे पुराणों की एक से मान्यता है कि काशी में कहीं भी जब जीव की मृत्यु होती है तो भगवान शिव उस को मोक्ष प्रदान कर देते हैं | जैसा कि लिखा है "यत्र कुत्रापिवा काश्यां मरणेसमहेश्वर: !जन्तोर्दक्षिण कर्णेतु मत्तारंसमुपादिशेत् !! अर्थात् :- काशी में कहीं पर भी मृत्यु के समय भगवान विश्वेश्वर (विश्वनाथजी) प्राणियों के दाहिने कान में तारक मन्त्र का उपदेश देते हैं | तारकमन्त्र सुन कर जीव भव-बन्धन से मुक्त हो जाता है | यह मान्यता है कि केवल काशी ही सीधे मुक्ति देती है , जबकि अन्य तीर्थस्थान काशी की प्राप्ति कराके मोक्ष प्रदान करते हैं | काशीपुर भगवान शिव की नगरी एवं इस सृष्टि के पहले की सृष्टि मानी जाती है हमारे पुराण काशी की महिमा का बखान करते हुए नहीं सकते हैं पूरा काशी क्षेत्र भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग के समान दिखाई पड़ता है काशी की महिमा का वर्णन नहीं किया जा सकता है यह सारी मान्यताएं तभी फलित होती हैं जब मनुष्य में श्रद्धा और विश्वास हो क्योंकि बिना श्रद्धा और विश्वास के कुछ भी नहीं प्राप्त किया जा सकता है भगवान शिव समस्त प्राणियों को मोक्ष देने के लिए काशी में उपस्थित हैं परंतु यह मुफ्त भी तभी प्राप्त हो पाता है जब मनुष्य इस श्रद्धा और विश्वास के साथ काशी में निवास करें कि हमें भगवान शिव के द्वारा संसार के आवागमन से मुक्ति मिल जाएगी लेकिन यहां यह भी बात ध्यान रहे कि काशी में पाप करने वाले को मरणोपरांत मुक्ति मिलने से पहले अतिभयंकर भैरवी यातना भी भोगनी पडती है | सहस्रों वर्षो तक रुद्र पिशाच बन कर कुकर्मो का प्रायश्चित्त करने के उपरांत ही उसे मुक्ति मिलती है | किंतु यह अकाट्य सत्य है कि काशी में प्राण त्यागने वाले का पुनर्जन्म नहीं होता |*
*आज आधुनिकता के भंवर में फंसे हुए मनुष्य के मन से श्रद्धा एवं विश्वास विलुप्त होते जा रहे हैं | उसे बात बात पर धर्म एवं शास्त्रों पर संदेह उत्पन्न होता रहता है | अनेक लोग ऐसे भी हैं जो पुराणों में लिखी बातों को मानते तो हैं परंतु उनको भ्रम की स्थिति बनी रहती है | ऐसा ही एक वर्णन हमारे पुराणों में है काशी पृथ्वी से संबंधित ना हो कर भगवान शिव के त्रिशूल पर बसी हुई है | कुछ लोग प्रायः यह प्रश्न कर देते हैं कि :- क्या भगवान शिव की नगरी काशी का संबंध पृथ्वी से नहीं है ? ऐसे सभी लोगों को मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" यही सलाह देना चाहूंगा कि उनको अपने पुराणों का अवलोकन करना चाहिए जहां स्पष्ट लिखा हुआ है :--भूमिष्ठापिनयात्रभूस्त्रिदिवतोऽप्युच्चैरध:स्थापियाया ! बद्धाभुवि मुक्तिदास्युरमृतं यस्यांमृताजन्तव: !! यानित्यंत्रिजगत्पवित्र तटिनीतीरेसुरै:सेव्यते सा काशी ! त्रिपुरारिराजनगरी पायाद पायाज्जगत् !! अर्थात:- जो भूतल पर होने पर भी पृथ्वी से संबद्ध नहीं है , जो जगत की सीमाओं से बंधी होने पर भी सभी का बन्धन काटनेवाली (मोक्षदायिनी) है , जो महात्रिलोकपावनी गंगा के तट पर सुशोभित तथा देवताओं से सुसेवित है , त्रिपुरारि भगवान विश्वनाथ की राजधानी वह काशी संपूर्ण जगत् की रक्षा करे | सनातन धर्म के ग्रंथों के अध्ययन से काशी का लोकोत्तर स्वरूप विदित होता है | कहा जाता है कि यह पुरी भगवान शंकर के त्रिशूल पर बसी है | अत: प्रलय होने पर भी इसका नाश नहीं होता है | वरुणा और असि नामक नदियों के बीच पांच कोस में बसी होने के कारण इसे वाराणसी भी कहते हैं | काशी नाम का अर्थ भी यही है-जहां ब्रह्म प्रकाशित हो | भगवान शिव काशी को कभी नहीं छोडते | जहां देह त्यागने मात्र से प्राणी मुक्त हो जाय , वह अविमुक्त क्षेत्र यही है | सनातन धर्मावलंबियों का दृढ विश्वास है कि काशी में देहावसान के समय भगवान शंकर मरणोन्मुख प्राणी को तारकमन्त्र सुनाते हैं | इससे जीव को तत्वज्ञान हो जाता है और उसके सामने अपना ब्रह्मस्वरूप प्रकाशित हो जाता है | ऐसी जिज्ञासा एवं भ्रम वही उपस्थित होता है जहां मनुष्य का अपने पुराणों एवं धर्म ग्रंथों से विश्वास उठता प्रतीत होता है | समस्त सनातन प्रेमियों को अपने धर्म ग्रंथों पर अधिक विश्वास बनाए रखते हुए उनकी मान्यताओं को बिना किसी संशय बिना किसी भ्रम के मानना चाहिए | अन्यथा संशय की ऐसी स्थिति में मनुष्य कुछ भी नहीं प्राप्त कर पाता है |*
*काशी मोक्षदायिनी है | इसमें कहीं कोई संदेह नहीं है भगवान शिव के त्रिशूल पर बसी हुई काशी अपनी दिव्यता एवं भव्यता के लिए वैदिक काल से ही प्रसिद्ध है | अथर्ववेद , यजुर्वेद आदि में इसका उल्लेख प्राप्त होता है इसलिए कहीं भी संदेह नहीं करना चाहिए |*