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‼️ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼️
🐍🏹 *लक्ष्मण* 🏹🐍
🌹 *भाग - २* 🌹
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*➖➖➖ गतांक से आगे ➖➖➖*
*लक्ष्मण की जन्म से ही भगवान श्रीराम से बहुत प्रेम करते थे | लक्ष्मण जी के माता , पिता , गुरु , स्वामी , सखा सब कुछ श्री रामजी ही थ् | लक्ष्मण का मुख्य धर्म था रामजी की आज्ञा का पालन करना | जन्म से ही लक्ष्मण जी छाया की भाँति श्री राम दी के साथ ही रहा करते थे | भगवान श्रीराम से उनका यह दृढ़ प्रेम क्यों था ? इस पर विचार किया जाना चाहिए | दो शरीर एवं एक प्राण की तरह रहने वाले राम एवं लक्ष्मण वस्तुतः एक ही थे | विचार कीजिए जब दशरथ जी ने पुत्र की कामना से पुत्रेष्टि यज्ञ किया तब अग्निकुंड से स्वयं अग्निदेव प्रकट होकर के दशरथ जी को दिव्य चरू (खीर) प्रदान करते हैं और उसे अपनी रानियों को खिलाने के लिए कह कर अदृश्य हो जाते हैं | दशरथ जी ने महारानी कौशल्या सुमित्रा एवं कैकेई को वह हविष्यान्न वितरित किया |*
*कुछेक ग्रंथों के अनुसार सुमित्रा जी को मिला प्रसाद विशालकाय पक्षी के द्वारा उठा लिया गया जिससे सुमित्रा भी निराश हो गयी | तब कौशल्या एवं कैकेयी जी ने अपने-अपने भाग से आधा -;आधा भाग सुमित्रा जी को प्रदान किया | कौशल्या जी ने जो भाग प्रदान किया उसके लक्ष्मण जी एवं कैकेयी के दिये भाग से शत्रुघ्न जी का जन्म हुआ| एक ही भाग दो भाग में बंट करके राम एवं लक्ष्मण के रूप में इस धरा धाम पर अवतरित हुआ | दो शरीर होते हुए भी एक प्राण की तरह ही राम एवं लक्ष्मण का जीवन पृथ्वी पर व्यतीत हुआ | अपना जीवन श्री राम के प्रति समर्पित करते हुए लक्ष्मण जी ने यह प्रदर्शित किया है कि माताओं ने भले ही एक अंश के दो टुकड़े कर दिए हों परंतु हम भिन्न नहीं हैं | बचपन से ही श्रीराम की परछाई बनकर लक्ष्मण जी उनके साथ रहे , लक्ष्मण जी के त्याग एवं सेवा भाव का ही परिणाम है कि जो शिक्षा उनको विश्वामित्र जी से प्राप्त हो गई वह भरत एवं शत्रुघ्न को नहीं मिल पाई | सेवक का स्वामी के प्रति क्या कर्तव्य होता है इसका दर्शन हमें उनके जीवनचरित्र में देखने को मिलता है | श्री राम के चरणों की सेवा श्री लक्ष्मण जी का मुख्य व्रत था , श्री राम जब सोने के लिए जाते थे तब लक्ष्मण जी उनकी सेवा करते थे | अबोध शिशु की भांति लक्ष्मण जी ने श्री राम जी के चरणों को दृढ़ता पूर्वक इस प्रकार पकड़ा कि भगवान ही उनकी अनन्य गति बन गये |*
*सुमित्रा नन्दन पन्त जी ने लक्ष्मण जी के लिए दिव्य भाव अर्पित किये हैं :----*
*विश्व श्याम जीवन के जलधर , राम प्रणम्य, राम हैं ईश्वर !*
*लक्ष्मण निर्मल स्नेह सरोवर , करुणा सागर से भी सुंदर !!*
*सीता के चेतना जागरण , राम हिमालय से चिर पावन !*
*मेरे मन के मानव लक्ष्मण , ईश्वरत्व भी जिन्हें समर्पण !!*
*धीर वीर अपने पर निर्भर , झुका अहं धनु धर सेवा शर !*
*कब से भू पर रहे वे विचर , लक्ष्मण सच्चे भ्राता, सहचर !!*
*शेष अगले भाग में*
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आचार्य अर्जुन तिवारी
प्रवक्ता
श्रीमद्भागवत/श्रीरामकथा
संरक्षक
संकटमोचन हनुमानमंदिर
बड़ागाँव श्रीअयोध्याजी
(उत्तर-प्रदेश)
9935328830
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