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‼️ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼️
🐍🏹 *लक्ष्मण* 🏹🐍
🌹 *भाग - २८* 🌹
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*➖➖➖ गतांक से आगे ➖➖➖*
*लक्ष्मण जी* भगवान श्री राम की सेवा करते हुए पंचवटी में भगवान श्री के चरण शरण में दिव्य ज्ञान प्राप्त करते हुए समय व्यतीत कर रहे हैं | एक दिन रावण की बहन शूर्पणखा पंचवटी में आई और श्री राम *लक्ष्मण* को देखकर मोहित हो गई अपने वास्तविक (राक्षसी) स्वरूप का त्याग करके सुंदर स्वरूप बनाकर काम भावना से पीड़ित सूर्पणखा भगवान श्री राम के पास जाकर कहती है :--
*तुम्ह सम पुरुष न मो सम नारी !*
*यह संजोग विधि रचा विचारी !!*
कामातुर सूर्पणखा सर्वगुण संपन्न मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम से कहती है कि :- हे सुंदर पुरुष ! इस संपूर्ण सृष्टि में तुम्हारे समान सुंदर पुरुष एवं मेरे समान सुंदर नारी विधाता ने दूसरी नहीं बनाई है , इसलिए मैंने विचार किया है कि तुम मेरे साथ विवाह कर लो | सूर्पणखा की बात सुनकर हंसते हुए श्री राम ने सीता जी की ओर देखकर कहा कि :-- हे सुन्दरी ! मेरा तो विवाह हो चुका है , परंतु वह देखो गौरवर्ण मेरा छोटा भाई है , वह *कुंवारा* है | तुम उसके पास चली जाओ वह तुम्हारा मनोरथ अवश्य पूर्ण करेगा | यहां कुछ लोगों को संशय हो जाता है कि भगवान श्रीराम तो *मर्यादा पुरुषोत्तम* हैं उन्होंने झूठ क्यों बोला ? कि *लक्ष्मण* कुमार हैं जबकि *लक्ष्मण* का विवाह भी जनकपुर में उन्हीं के साथ हुआ था | भगवान श्री राम *मर्यादा पुरुषोत्तम* थे वे कभी झूठ नहीं बोलते थे जिसकी घोषणा आदिकवि बाल्मीकि जी ने किया है :---
*"अनृतं नोक्तं पूर्वं न च वक्ष्ये कदाचन ! रामो द्विर्नाभिभाषते !!"*
अब जब श्रीराम कभी झूठ नहीं बोलते तो विवाहित *लक्ष्मण* को *कुमार* क्यों कहा ? यह जानने के लिए हमें व्याकरण देखना पड़ेगा | उस समय सूर्पणखा की कामुकता देखकर श्रीराम ने उसे *लक्ष्मण* के पास ही भेजना उचित समझा वह भी *कुमार* कहकर | *कुमार* का अर्थ होता है :-- *कु अर्थात पृथ्वी , मार अर्थात कामदेव* अर्थात जो पृथ्वी पर साक्षात कामदेव है ! वह हैं *लक्ष्मण* | कामाक्रान्त शूर्पणखा को *लक्ष्मण* के पास इसलिए भेजा क्योंकिकामवत् सुंदर पुरुष *(लक्ष्मण)* ही उसके लिए उचित थे | *लक्ष्मण जी* करोड़ों कामदेव को लज्जित करने वाले सुंदरता की प्रतिमूर्ति थे | जो लोग यह कहते हैं कि श्रीराम ने झूठ बोला उनको ध्यान देना चाहिए कि :- *कुमार* का अर्थ क्या हुआ ? *कु अर्थात कुत्सित: मार: अर्थात कामदेव* जिसे संस्कृत के विद्वानों ने भाव दिया है कि :-- *कामदेवो यस्मात् स: कुमार:* अर्थात कामदेव भी जिसके सामने कुरूप लगे वही हैं *लक्ष्मण जी* | इसीलिए
श्रीराम ने शूर्पणखा से *लक्ष्मण जी* को *कुमार* कह कर भेजा | इस प्रकार यह सिद्ध हो जाता है कि *मर्यादा पुरुषोत्तम* श्रीराम ने झूठ नहीं बोला | *लक्ष्मण जी* के पास सूर्पणखा को भेजने का दूसरा कारण यह था कि श्रीराम ने सोचा कि वैवाहिक संबंध तो समान जाति एवं वर्ण में ही होना चाहिए | ध्यान देने योग्य बात है कि *लक्ष्मण जी* शेषावतार हैं | सर्पों में श्रेष्ठ है , और शूर्पणखा क्या है ?? यह बताते हुए तुलसीदास जी लिखते हैं :---
*सूपनखा रावन कै बहिनी !*
*दुष्ट हृदय दारुन जस अहिनी !!*
तुलसीदास जी ने सूर्पणखा का परिचय के *अहिनी* के रूप में कराया है | *अहि* कहते हैं सर्प को | *अहिनी* का अर्थ हुआ सर्पिणी | जब *सर्पिणी* विवाह का निवेदन कर रही है तो उसके लिए उचित वर तो सर्प *(लक्ष्मण)* ही होगा न | इसलिए श्रीराम ने उचित जोड़ा समझकर उसे *लक्ष्मण* के पास भेजा | शूर्पणखा *लक्ष्मण जी* के पास गई | *लक्ष्मण जी* का भाव अद्वितीय था | जहां श्रीराम ने उन्हें साक्षात कामदेव कहा वहीं *लक्ष्मण जी* कहते हैं कि :-- हे सुन्दरी ! तुम जिसके पास से आ रही हो वह हमारे स्वामी है और मैं उनका दास हूँ और दास का प्रथम कर्तव्य होता है अपने सभी सुखों का त्याग करके स्वामी की सेवा करना | हे देवी ! मुझ पराधीन के साथ तुम्हें कोई सुख नहीं प्राप्त हो सकता | प्रभु श्रीराम कौशलपुर के राजा हैं वे जो भी करें सब उचित है परंतु मैं उनका सेवक मात्र हूँ , और संसार में कुछ चीजें असंभव होती है | *लक्ष्मण जी* कहते हैं कि हे सुन्दरी !:----*
*सेवक यदि सुख चाहे तो यह असंभव है ,*
*मान सम्मान नहीं मिलता है भिखारी को !*
*संपत्ति कितनी भी रखी हो चाहे पुरखों ने ,*
*लेकिन धन का सुख न मिलता है जुआरी को !!*
*बनिके धर्मात्मा व्यभिचार करें दिन-रात ,*
*शुभ गति न होत कबहुँ ऐसे व्यभिचारी को !*
*"अर्जुन" लोभी को यश मिलना असंभव है ,*
*चारों पदारथ न मिलत अहंकारी को !!*
*लक्ष्मण जी* ने कहा कि :- हे सुंदरी ! मैं सेवक हूँ ! जिस प्रकार भिखारी को सम्मान , जुआरी को धन , व्यभिचारी को शुभ गति , लोभी को यश , अहंकारी को चारो पदारथ (धर्म अर्थ काम मोक्ष आदि) का फल नहीं प्राप्त हो सकता उसी प्रकार यदि कोई सच्चा सेवक है तो सेवक को भी कभी सुख नहीं मिल सकता | मेरे साथ विवाह करके तुम दासी बनकर रह जाओगी | इसलिए हे देवी ! तुम मेरे पास सुखी नहीं रह सकती | *लक्ष्मण* एवं श्री राम के पास आते जाते सूर्पणखा क्रोधित हो गई और उसे ऐसा लगा कि इसी सुंदरी स्त्री (सीता) के कारण उसे ठुकराया जा रहा है तो इसे ही क्यों न समाप्त कर दूं ? ऐसा विचार करके क्रोध में अपने वास्तविक स्वरूप में (भयानक रक्षसी) आकर सीता को खा जाना चाहा | तब श्री राम का संकेत पाकर *लक्ष्मण जी* ने उसके नाक कान काट लिए |
*भगवत्प्रेमी सज्जनों !* पंचवटी की यह घटना साधारण नहीं है ! यह मानव के लिए दिव्य संदेश प्रसारित करती है | आज समाज में अनेकों ऐसे लोग देखने को मिलते हैं जो अपना काम बनाने के लिए अपना कपटवेष छुपाकर बनावटी सौम्यस्वरूप रखकर के समाज में स्थापित तो हो जाते हैं परंतु जैसे ही उनका काम बिगड़ने लगता है या कुछ काम बन ही जाता है तो वे स्वयं को सम्हाल नहीं पाते और अपने बनावटी स्वरूप का त्याग करके अपने वास्तविक स्वरूप में आकर के अनर्गल प्रलाप करने लगते हैं , तब उनकाु हाल सूर्पणखा जैसा ही होता है | जैसे सूर्पणखा की नाक कटी उसी प्रकार ये बनावटी लोग अन्तत: अपनी नाक कटवा कर अर्थात असम्मानित होकर वहां से भाग जाते हैं या भगा दिए जाते हैं |
*सज्जनों !* कुल सहित राक्षसराज रावण का विनाश तो श्री राम के हाथों हुआ परंतु रावण को प्रथम चुनौती शूर्पणखा को कुरूप करके *लक्ष्मण जी* ने ही दी | इस संसार में बिना *आधार* के कुछ भी होना असंभव है | *लक्ष्मण जी* को *"सकल जगत आधार"* कहा गया है | अपने नामानुरूप *लक्ष्मण जी* ने रावण के विनाश की आधारशिला शूर्पणखा को कुरुप करके रख दी |
*शेष अगले भाग में :----*
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आचार्य अर्जुन तिवारी
प्रवक्ता
श्रीमद्भागवत/श्रीरामकथा
संरक्षक
संकटमोचन हनुमानमंदिर
बड़ागाँव श्रीअयोध्याजी
(उत्तर-प्रदेश)
9935328830
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