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‼️ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼️
🐍🏹 *लक्ष्मण* 🏹🐍
🌹 *भाग - ४०* 🌹
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*➖➖➖ गतांक से आगे ➖➖➖*
कपिसेना ने जब मेघनाद की उस गुप्त गुफा में प्रवेश किया तो वहां का दृश्य देखकर उनकी आंखें फटी रह गई | मेघनाद यजमानवेदी पर बैठकर देवी निकुंभला के सामने हवन कुंड में :-- *"आहुति देइ रूधिर अरु भैंसा"* यह देख कर के वानरों ने उसकी पूजा सामग्री , हवन कुंड सब नष्ट कर दिया परंतु सिद्ध साधक की भांति मेघनाद अपने स्थान से तनिक भी नहीं डिगा | बड़े-बड़े वानर उसे अपनी पूंछ एवं लातों से मारते रहे | अंततोगत्वा :---
*लै त्रिशूल धावा कपि भागे !*
*आये जहँ रामानुज आगे !!*
मेघनाद क्रोध करके त्रिशूल लेकर दौड़ा | सभी वानर वीर भयभीत होकर लक्ष्मण जी के पास आ गए | अंगद एवं हनुमान को भी मेघनाद ने त्रिशूल के प्रहार से पराजित कर दिया | मेघनाद अपने रथ पर सवार होकर गुफा के बाहर निकला और वहां पहुंचा जहां *लक्ष्मण जी* विभीषण के साथ खड़े थे | विभीषण को देखते ही मेघनाद का क्रोध बढ़ गया | मेघनाद क्रोध एवं दुख से कहने लगा :---
*माई के कोखि लजाइ दिहेव ,*
*निसचर कुल केर कलंक कहायो !*
*कुलद्रोही बनि राष्ट्र से द्रोह ,*
*किहेव सुतद्रोही आज कहायो !!*
*धिग जीवन तुम्हरो भयो काका ,*
*कुल नाश के कारण तुम बनि आयो !*
*यह स्थान न जानत "अर्जुन" ,*
*तुम बैरी लइके हियाँ चला आयो !!*
मेघनाद ने कहा :- काकी विभीषण ! कुलद्रोही एवं राष्ट्रद्रोही तो तुम पहले से ही थे परंतु आज तुमको सन्तानद्रोही की उपाधि प्राप्त हो गई | अपनी मातृभूमि से द्रोह करके तुमने अपनी माता के दूध को लज्जित कर दिया है | आज तुम विशाल लंका साम्राज्य के विनाश का कारण बन गए हो | शास्त्रों में कहा गया है :- *"जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि" गरीयसी"* काका ! अपनी माता एवं मातृभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर कही गई है | इनसे द्रोह करने वाला नरक में भी स्थान नहीं पाता है , और तुमने तो दोनों से द्रोह कर दिया है | आज मैं पहले कुल के कलंक को ही समाप्त करूंगा | ऐसा कह कर अपने धनुष पर अमोघ *यमास्त्र* को चढ़ाकर मेघनाथ कहने लगा :----
*पहिले कलंक मिटाउब आज ,*
*तौ बादि मां लछिमन कहँ हम मरबै !*
*काका विभीषण सावधान ,*
*अब राष्ट्र के द्रोही का हम संहरबै !!*
*भूलि किहेव पहिले जो पिता ने ,*
*मारि तुम्हइ सोइ भूलि सुधरबै !*
*लंक की भूमि से लंक के द्रोही को ,*
*"अर्जुन" मारि के पावन करबै !!*
ऐसा कहकर मेघनाद ने विभीषण *यमअस्त्र* का संधान कर दिया | वीरवर *लक्ष्मण* ने *यमअस्त्र* को निष्फल करके विभीषण के प्राणों की रक्षा की | मेघनाद ने *लक्ष्मण* पर बाणों की बौछार कर दी | उसके सभी बाणों का जवाब *लक्ष्मण जी* बड़ी कुशलता से दे रहे थे | जब मेघनाद ने देखा कि लक्ष्मण पर उसके अस्त्रों का कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा है तो क्रोधित होकर के उसने *ब्रह्मास्त्र* का प्रयोग किया | *लक्ष्मण* के पास पहुंचकर बिना आघात किए ही *ब्रह्मास्त्र* लुप्त हो गया | आश्चर्यचकित होकर मेघनाद ने पुनः भगवान शिव का अमोघ *पाशुपास्त्र* संधान किया , परंतु वह भी तेजहीन होकर लौट आया | तब मेघनाद ने त्रिलोकी की अंतिम शक्ति *नारायणास्त्र* को *लक्ष्मण* पर छोड़ा परंतु नारायण का अमोघ अस्त्र भला नारायण की शय्यारूप शेषनाग *(लक्ष्मण)* को कैसे छति पहुंचा सकता था , वह भी *लक्ष्मण* की परिक्रमा करके अंतर्ध्यान हो गया | जब त्रिलोकी के तीनों अमोघ अस्त्रों ने श्री *लक्ष्मण जी* को कोई क्षति नहीं पहुंचाई तो मेघनाद समझ गया कि *लक्ष्मण* कोई साधारण मानव नहीं है | यही मन में विचार आते ही मेघनाद वहां से अंतर्ध्यान हो गया | मेघनाद ने है जान लिया कि जिन्हें हम साधारण बनवासी मान रहे हैं वे साधारण नहीं बल्कि अवतार हैं | यह सच्चाई जानकर अपने देश एवं पिता को बचाने के उद्देश्य से मेघनाद अपने पिता रावण के पास पहुंच गया |
*भगवत्प्रेमी सज्जनों !* मनुष्य से भूल हो जाना साधारण सी बात है , अपनी भूल पर अडिग रहना भी संभव हो सकता है परंतु अपनी भूल को जान लेने के बाद भी उसका सुधार न करना मूर्खता ही कही जाती है | जो लोग अनेक लोगों के समझाने पर भी अपनी भूल जानते हुए नहीं मानते हैं और उसमें सुधार नहीं करते हैं उनकी गति रावण की तरह ही होती है | रावण को मंदोदरी , माल्यवान , विभीषण , हनुमान , अंगद , *लक्ष्मण* ( पत्र के माध्यम से ) आदि ने समझाया परंतु वह नहीं माना आज मेघनाद के भी अंतर्नयन खुल गए और वह भी रावण को समझाने पहुंच गया | मेघनाथ अपने पिता से कहता है कि पिताजी :---
*नर न सधारन राम लखन ,*
*उनते करि बैर न प्रान गंवाओ !*
*भूलि किहेव अनजान माँ जौ ,*
*सोइ भूलि सुधारि के देश बचाओ !!*
*सौंपि के सीता पकरि पद पावन ,*
*पामर जीवन धन्य बनाओ !*
*हे हो पिता ! सुनि बात मोरी ,*
*"अर्जुन" रघुनन्दन सरनन जाओ !!*
अपने बलवान , पितृभक्त पुत्र की बात सुनकर रावण को बड़ा आश्चर्य हुआ | उसने क्रोध करके मेघनाद से कहा :- इंद्रजीत क्या तू रण से डर गया है या लक्ष्मण के प्रहारों से विचलित होकर अनर्गल प्रलाप कर रहा है | यह किसने कह दिया तुझसे कि वे बनवासी नारायण का अवतार हैं | मेघनाद ने कहा :- पिता श्री ! न तो में डरा हूं और न ही विचलित हुआ हूं | मैं तो अपना कर्तव्य समझकर मार्ग से भटके हुए अपने पिता को समझाने आया हूं | वे नारायण ही है इसका अनुभव मुझे आज और अभी हुआ है क्योंकि :--
*अजगुत आज देखाइ परी ,*
*ब्रह्मास्त्र वधे बिनु वापस आयो !*
*रुद्र के पशुपत अस्त्र विफल ,*
*होइके तुरतहिं कैलाश सिधायो !!*
*जब नारायण अस्त्र चला ,*
*लछिमन परिकरमा करि फिरि आयो !*
*यहि ते विचारत "अर्जुन" मन ,*
*बनवासी नहीं नारायण आयो !!*
रावण ने कहा मेघनाद ! यह बैर मैंने अपने बल पर बढ़ाया है यदि तेरी युद्ध से इच्छा भर गई है तो तू अपने महल को जा यह रावण स्वयं युद्ध करने जाएगा | मेघनाद ने कहा कि मैं अधम नहीं हूं जो संकट में राष्ट्र एवं पिता का साथ छोड़ दूंगा | मैं तो एक सूक्ष्म प्रयास कर रहा था कि शायद आप अपने देश एवं कुल को बचाने को तैयार हो जायें | परन्तु मेरा सोंचा नहीं हो पाया | पिता जी यदि वे नारायण है तो भी मैं ऐसा भीषण युद्ध करूंगा कि वे भी मेरी प्रशंसा करने को विवश हो जाएंगे | मेघनाद ने भावुक होते हुए कहा :- हे पिता जी ! अपने पुत्र से अंतिम प्रणाम लीजिए यदि जीवन में हमसे कोई भूल हो गई हो तो उसे क्षमा कर देना | ऐसा कहकर मेघनाद युद्ध भूमि की ओर चल पड़ा |
*शेष अगले भाग में :----*
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आचार्य अर्जुन तिवारी
प्रवक्ता
श्रीमद्भागवत/श्रीरामकथा
संरक्षक
संकटमोचन हनुमानमंदिर
बड़ागाँव श्रीअयोध्याजी
(उत्तर-प्रदेश)
9935328830
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