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‼️ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼️
🐍🏹 *लक्ष्मण* 🏹🐍
🌹 *भाग - ४१* 🌹
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*➖➖➖ गतांक से आगे ➖➖➖*
मेघनाद जब रावण से विदा लेकर युद्ध भूमि की ओर चला तो मार्ग में माता मंदोदरी का महल मिला | मेघनाद में माता को प्रणाम किया | मंदोदरी ने कहा पुत्र ! जब तू जान गया है कि वे भगवान है तो तू ही उनकी शरण में जाकर धर्म का पालन कर ले | मेघनाद की आंखों में अश्रु आ गये | उसने अपनी माता से कहा :- हे माता !:---
*धर्म सिखावत मोंहिं माता ,*
*मैं मानत हौं सब बात तुम्हारी !*
*पर पुत्र का धर्म कठिन जग में ,*
*तजि के आपन सुख संपति सारी !!*
*जो विमुख होय अपने पितु से ,*
*नहिं क्षमा करइं तेहि कहँ असुरारी !*
*"अर्जुन" कर्तव्य यही सुत कै ,*
*पितु चरनन महँ जाऊं बलिहारी !!*
इस प्रकार माता को समझाकर मेघनाद आगे को बढ़ा तो पत्नी *सुलोचना* मिली | *सुलोचना* जो दैत्य कुलवधू होने के बाद भी बहुत सम्माननीय है | *सुलोचना* का सम्मान संसार में इसलिए है क्योंकि उसने अपने पति को पति न मानकर अपना भगवान माना था | *सुलोचना* को यह ज्ञान था कि पत्नी पति की परछाई होती है | पति के अनुकूल ही पत्नी को रहना चाहिए | पत्नी का वैसे तो कई धर्म होता है परंतु यदि मुख्य धर्म देखा जाए तो तुलसीदास जी बताते हैं :----
*एकहि धर्म एक व्रत नेमा !*
*कायँ वचन मन पति पद प्रेमा !!*
पत्नी का एक ही धर्म , एक ही व्रत एवं एक ही नियम होता है कि शरीर , वचन एवं मन से पति के अनुकूल रहते हुए उनके चरणों में प्रेम करना | यदि दुर्भाग्य से किसी भी स्त्री को वृद्ध , रोगी , मूर्ख , निर्धन , अंधा , बहरा क्रोधी एवं अत्यंत दीन पति भी मिल गया हो तो स्त्री को कभी भी जाने - अनजाने अपने पति का अपमान नहीं करना चाहिए | यदि ऐसा होता है तो :---
*ऐसेहुँ पति कर किये अपमाना !*
*नारि पाव जमपुर दुख नाना !!*
यदि पत्नी के द्वारा ऐसे भी पति का अपमान होता है तो पत्नी यमपुरी में अनेक प्रकार के कष्ट पाती है | इन सभी नियमों का पालन करने वाली *सुलोचना* को सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है | मेघनाद ने कहा:- *प्रिये सुलोचना !* हमें ऐसा प्रतीत हो रहा है कि आज हमारा अंतिम मिलन है | इस समय तुम्हारा यही कर्तव्य है कि तुम एक वीर योद्धा की पत्नी की भाँति हमें हंस कर विदा करो | सुलोचना ने कहा :- स्वामी ! मेरा कर्तव्य है पति की प्रत्येक इच्छा के अनुसार अपनी इच्छा रखना , क्योंकि विवाह मिले सात वचनों के बदले आपने भी हमसे पांच बचन लिए थे | उन्हीं वचनों में एक है :---
*तव चित्तं मम् चित्तं वाचा वाच्यं न लोपयेत् !*
*व्रते में सर्वदा देयं हृदयं स्वं वरानने !!*
अर्थात हे स्वामी ! आप ने वचन लिया था कि :- हे वरानने ! तुम आज और इसी समय से अपना चित्त मेरे चित्त के अनुसार रखना , हमारी सम्मति में ही तुम्हारी सम्मति रहे | मेरी आज्ञा का कभी उल्लंघन मत करना तथा मैं जो कुछ भी कहूं , जो भी करूं उसी में सहमति प्रदान करते हुए जीवन यापन करना ही तुम्हारा परम कर्तव्य है | *सुलोचना* ने कहा :- स्वामी ! हमें वह वचन याद है मैं आपके कर्तव्य पथ पर रुकावट कैसे बन सकती हूं ? जाइए स्वामी यह *सुलोचना* आपको आपके कर्तव्य पथ पर हंसते हुए विदा कर रही है | इस प्रकार मेघनाद की पत्नी *सुलोचना* ने अपने पति को विदा किया | मेघ की भाँति गर्जना करके देवताओं को भी भयभीत कर देने वाला मेघनाद , युद्ध जिसके लिए खेल की भांति था आज वही मेघनाद भारी मन से अपनी मृत्यु को निश्चित मानकर युद्ध की ओर जा रहा है |
*भगवत्प्रेमी सज्जनों !* इस संसार में यदि कुछ सत्य है वह है मृत्यु | बड़े से बड़े बलवान भी मृत्यु को सामने देखकर भयभीत हो जाते हैं | आज मेघनाद को भी *लक्ष्मण* के रूप में अपनी मृत्यु दिखाई पड़ने लगी | मेघनाद एक वीर योद्धा था मृत्यु को सामने पाकर भी वह अपने राष्ट्र एवं पिता के लिए उससे *(लक्ष्मण)* युद्ध करने के लिए पहुंच गया | *लक्ष्मण* ने देखा कि मेघनाद युद्धभूमि में आ गया है तो वे भी सावधान हो गये | अपने धनुष पर बाण चढ़ाकर मेघनाद को ललकार करके *लक्ष्मण जी* ने कहा :---
*लाज न आवत तोंहिं निसाचर ,*
*पीठ देखावत है रन माहीं |*
*बीच माँ छाँड़ि के युद्ध भजेउ ,*
*घननाद ई वीर के लच्छन नाहीं !!*
*वीर लड़इं अपने पन पर ,*
*नहिं तनिकउ प्रान कै मोह कराहीं !*
*"अर्जुन" हम आज बधब तुंहका ,*
*तोंहिं ब्रह्मा और रुद्र बचाइ न पाहीं !!*
*लक्ष्मण जी* ने मेघनाद से कहा :- सावधान हेकर युद्ध कर , आज तू चाहे जितना भाग ले परंतु तू बच नहीं पाएगा | मेघनाद ने कहा :- *लक्ष्मण !* मैं कायर नहीं हूं | यदि तुझे अपने भैया की आन है तो हमें अपने देश की आन है | सच्चा देशभक्त वही होता है जो अपने जीते जी अपने शत्रु को अपने देश की सीमा में न घुसने दे | *लक्ष्मण !* अपने देश की सुरक्षा एवं सम्मान के लिए मेरे प्राण भी चले जाएंगे तो मुझे चिंता नहीं है , परंतु तुम मेरे जीवित रहते लंका में प्रवेश नहीं कर सकते | ऐसा कहकर मेघनाद *लक्ष्मण* से युद्ध करने लगा | और युद्ध साधारण नहीं था |
*विविध वेष धरि करइ लराई !*
*कबहुँक प्रगट कबहुँ दुरि जाई !!*
भाँति - भाँति के रूप धारण करके मेघनाद युद्ध करने लगा | कभी वह छुपकर लड़ता है तो कभी सामने आकर | उसके इस विकराल युद्ध को देखकर देवता भयभीत हो गये और *लक्ष्मण जी* से प्रार्थना करने लगे !:----
*बहुत खेलायहु नाथ निशाचर ,*
*अब जनि नाथ लगावहुँ देरी !*
*तीनहुँ लोक भयो भयभीत ,*
*सुनहुँ धरनीधर इन कर टेरी !!*
*शत्रु विनाशक शेष महीधर ,*
*अब हम आए शरण में तेरी !*
*"अर्जुन" नासहुँ रावण पूत को ,*
*बचि नहिं पावइ यह पुनि फेरी !!*
देवता कहने लगे कि *लक्ष्मण जी !* आप की महिमा अनंत है ! हे नाथ इस दुर्दांत निशाचर को मारने में विलंब न कीजिए कहीं यह फिर ना बच जाय | देवताओं की विनती सुनकर *लक्ष्मण जी* को बहुत क्रोध आया और *लक्ष्मण जी* ने :--
*सुमिरि कोसलाधीस प्रतापा !*
*सर सन्धान कीन्ह करि दापा !!*
भगवान श्री राम के प्रताप स्मरण करके *लक्ष्मण जी* ने वीरोचित दर्प करके सर का सन्धान कर दिया | वह बाण जाकर मेघनाद के सिर एवं भुजा को काटकर वापस उनके तरकश में आ गया | मेघनाद का सिरविहीन धड़ रथ में गिर पड़ा | देवता *लक्ष्मण जी* की जय जयकार करते हुए पुष्प वर्षा करने लगे |
*शेष अगले भाग में :----*
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आचार्य अर्जुन तिवारी
प्रवक्ता
श्रीमद्भागवत/श्रीरामकथा
संरक्षक
संकटमोचन हनुमानमंदिर
बड़ागाँव श्रीअयोध्याजी
(उत्तर-प्रदेश)
9935328830
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