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‼️ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼️
🐍🏹 *लक्ष्मण* 🏹🐍
🌹 *भाग - ४२* 🌹
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*➖➖➖ गतांक से आगे ➖➖➖*
जब शेषावतार बीरवर *लक्ष्मण* ने मेघनाद का सर काटा तो उसे हनुमान जी ने पृथ्वी पर नहीं गिरने दिया क्योंकि भगवान श्रीराम ने कहा था कि :- *हे लक्ष्मण !* मेघनाद एकपत्नीव्रत है तथा उसकी पत्नी सुलोचना बहुत बड़ी पतिव्रता है यदि मेघनाथ का सिर पृथ्वी पर गिरा तो पृथ्वी पर भूचाल आ सकता है | इसलिए सावधानी से सोंच समझकर उसका वध करना | भगवान श्री राम की बात को ध्यान में रखते हुए :--
*मेघनाद का सिर कटा , लपकि लिहेव हनुमान !*
*भुजा गिरी रनिवास में , लागी करन बखान !!*
मेघनाद के सिर को हनुमान जी ने पकड़ लिया और श्री राम के पास लाकर उनके चरणों में रख दिया | विजयी *लक्ष्मण* की जय जयकार से दिशायें गुंजायमान होने लगी | देवता , यक्ष , गंधर्व , ऋषि , मुनि सब *लक्ष्मण जी* के गुण गाने लगे और उनकी प्रार्थना करने लगे:---
*जय हो अनंत महीधर शेष जू ,*
*जय भुंइं धारक जय हो तुम्हारी !*
*जय हो सुमित्रा के पुत्र बली ,*
*जय हो असुरन दल नाशन कारी !!*
*जय हो रघुवीर के प्यारे सखा ,*
*सीता के दुलारे सदा सुखकारी !*
*"अर्जुन" हम आज करत विनती ,*
*स्वीकार करो यह विनय हमारी !!*
*लक्ष्मण जी* की जय जयकार हो रही है | *लक्ष्मण जी* भगवान श्री राम के पास पहुंचे | श्री राम ने लक्ष्मण को हृदय से लगा लिया | मेघनाद के सिर को श्रीराम ने ससम्मान सुरक्षित रखा और शव को लंका पहुंचा दिया |
*सती सुलोचना* की कथा यद्यपि बाल्मिक जी एवं गोस्वामी जी ने नहीं लिखी है परंतु लोक कथाओं एवं अन्य ग्रंथों में इसका बहुत ही मार्मिक वर्णन मिलता है | आइए थोड़ा इस प्रसंग पर प्रकाश डालने का प्रयास किया जाय हमारा उद्देश्य कथा को विस्तार देना नहीं बल्कि कुछ रहस्यों को उजागर करना है | *भगवत्प्रेमी सज्जनों !* *सुलोचना* अपने कक्ष में बैठी पति की सुरक्षा की प्रार्थना मैया पार्वती से कर रही थी , तभी मेघनाद की कटी भुजा उसके सामने आकर गिरी | *सुलोचना* ने अपने स्वामी की भुजा को पहचान तो लिया परंतु पातिव्रत धर्म का पालन करते हुए बिना परीक्षा लिए उसे स्पर्श करना उचित नहीं समझा | उसने उस भुजा से कहा :- यदि मैंने आज तक अपनी पातिव्रतधर्म का पालन किया है तो हे भुजा ! उसी की शक्ति से तुम अपनी व्यथा कथा लिखकर मुझे बतलाओ | धन्य हैं सती नारियां और उनका सतबल ! भुजा उठी और वहीं पृथ्वी पर लिखने लगी :---
*राम कै वेष धरे नारायण ,*
*शेष जी लक्ष्मण बनिके हैं आये !*
*जगजननी जगदंबा है सीता जी ,*
*बैठि वाटिका में जो विलखाये !!*
*मारेहु रन महँ मोंहिं लखन जू ,*
*तामस देह से मुक्त कराये !*
*"अर्जुन" हनुमत शीश मोरा ,*
*श्री राम चरन रखि मोक्ष कराये !!*
इतना लिखकर भुजा शांत हो गई | *सती सुलोचना* की आंखों से अश्रु नहीं| निकले उसने मन ही मन अपने कर्तव्य का निश्चय कर लिया और पुत्रशोक में डूबे हुए रावण के पास पहुंचकर उससे कहा | हे पिताजी ! आपके पुत्र ने अपने कर्तव्य का पालन करते हुए अपने प्राणों की आहुति दे दी अब आप हमें हमारा कर्तव्य पूरा करने का आदेश प्रदान कीजिए | मैं एक पतिव्रता की भांति अपने पति के शरीर के साथ सती होकर अपना कर्तव्य पालन करना चाहती हूं | क्योंकि पिताजी ! :--
*न पिता नात्मजो वात्मा ,*
*न माता न सखीजन: !*
*इह प्रेत्यां च नारीणां ,*
*पतिरेको गति: सदा !!*
*ना तन्त्री वाद्यते वीणा ,*
*ना चक्रो विद्यते रथ: !*
*ना पति: सुखमेधेत् ,*
*या स्यादपि शतात्मजा !!*
*सुलोचना* ने कहा :- पिताजी ! एक सौभाग्यवती नारी को माता-पिता एवं स्वजनों की अपेक्षा पति से ही गति मिलती है | जिस प्रकार बिना तार के बीणा नहीं बजपहिये के सकती और बिना रथ नहीं चल सकता उसी प्रकार अनेक सुख होने के बाद भी पतिविहीन स्त्री को सुख नहीं प्राप्त हो सकता है | रावण से आदेश लेकर पालकी में बैठकर *सती सुलोचना* निर्भीक होकर (श्री राम को शरणागत वत्सल समझकर) अपने पति का शीश लेने रामादल में पहुंच गई | पालकी को आता देख वानर दल आश्चर्य में पड़ गया | *लक्ष्मण जी* ने प्रसन्न होकर श्रीराम से कहा कि भैया ! लगता है कि अपने पुत्र मेघनाद की मृत्यु के बाद रावण ने पराजय स्वीकार कर ली है और ससम्मान जानकी माता को आपके पास भेज दिया है | परंतु *लक्ष्मण* का सोचना उस समय निरर्थक हो गया जब पालकी से राक्षस कुलवधू *सुलोचना* निकली | *सुलोचना* ने भगवान श्रीराम से कहा |
*हे रघुनंदन रघुकुल भूषण ,*
*जय सीतापति अवध बिहारी !*
*पति की भुजा ने बतायेव हमहिं ,*
*पति शीश धरेव है शरन तुम्हारी !!*
*मांगन आई वही हम राघव ,*
*तुम दाता हम दीन भिखारी !*
*"अर्जुन " लाज के राखन हार ,*
*तुहीं राखो अब लाज हमारी !!*
श्रीराम ने मन ही मन सती नारी को प्रणाम करके सुग्रीव से कहा मित्र ! *सुलोचना* को ससम्मान उसके पति का शीश प्रदान कर दिया जाय | सुलोचना ने *लक्ष्मण जी* से कहा कि *हे लक्ष्मण !* इस अभिमान में मत रहना कि तुमने मेरे पति को जीता है | अरे ! यह युद्ध तो मेरे और उर्मिला के बीच हो रहा था और मैं पराजित इसलिए हो गई क्योंकि मैं अकेली रह गई और उर्मिला को सीता के सतीत्व का भी बल मिल गया | इसलिए *लक्ष्मण !* विजय तुम्हारी नहीं बल्कि उर्मिला की हुई है | *सुलोचना* बात सुनकर *लक्ष्मण* की मुखाकृति परिवर्तित हो गई और श्री राम जी मुस्कुराने लगे | सुग्रीव ने कहा :- भगवन ! एक संदेह है | यदि कटी भुजा लिखकर इनको बता सकती है कि तुम्हारा कटा हुआ सिर श्री राम के पास है तो यह कटा हुआ सर भी हंस सकता है | भगवन ! क्षमा कीजिएगा हम *सुलोचना* की बात का विश्वास कैसे कर ले ? हां यदि मेघनाद का कटा हुआ सिर *सुलोचना* के कहने पर हंसने लगेगा तो विश्वास कर लूंगा कि मेघनाद की कटी हुई भुजा ने *सुलोचना* को सत्यता बताई है | *सुलोचना* हाथ जोड़कर अपने पति के कटे हुए सिर से कहने लगी :--
*इंद्र के जितैया पत मोरी रखैया सदा ,*
*आज नाथ शत्रु बीच हंसी तो कराओ ना !*
*सती केर बल आज देखा चाहत है जहान ,*
*नाथ प्राणीधार आज हमको लजाओ ना !!*
*जैसे सदा शत्रु बीच हंसते रहे हो नाथ ,*
*वही हंसी आज फिर इनको सुनाओ ना ?*
*"अर्जुन" ठठाइ हंसो काँपि जाय तीनि लोक ,*
*सती के सतीत्व आज जग को दिखाओ ना ??*
*सुलोचना* ने कहा हे स्वामी ! मैंने आपसे कहा था कि इस युद्ध में मेरे पिता नागराज की सहायता ले लो परंतु आपने नहीं सुना | यदि पिताजी आज होते तो आपको यह दुर्दिन न देखना पड़ता और आप का शीश कटा हुआ ना पड़ा होता | इतना सुनते ही मेघनाद का सिर अट्टटहास करके हँस पड़ा | उसकी हंसी की गूंज इतनी तेज थी कि तीनों लोक में सुनाई पड़ने लगी | सती का सतीत्व देखकर रामादल जय जयकार करने लगा | यह जयकार रावण की पुत्र वधू की नहीं बल्कि एक सती नारी की थी | मेघनाद के शीश ने कहा प्रिये ! तुम कहती हो तुम्हारे पिता हमारी सहायता करते शायद तुम्हें नहीं पता है कि *लक्ष्मण* ही तुम्हारे पिता हैं | जब *लक्ष्मण* (नागराज शेष) ने ही हमें मारा है तो हमारी सहायता कौन करता ??
उस कटे हुए सिर की बात को सुनकर सुलोचना ने *लक्ष्मण* की ओर देखा और पति के शीश को लेकर वहां से चल पड़ी | सुंदर चिता बनाकर *सुलोचना* अपने पति के साथ सती हो गई | और सतियों में पूज्य होकरके अमर हो गई |
*शेष अगले भाग में :----*
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आचार्य अर्जुन तिवारी
प्रवक्ता
श्रीमद्भागवत/श्रीरामकथा
संरक्षक
संकटमोचन हनुमानमंदिर
बड़ागाँव श्रीअयोध्याजी
(उत्तर-प्रदेश)
9935328830
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