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‼️ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼️
🐍🏹 *लक्ष्मण* 🏹🐍
🌹 *भाग - ४८* 🌹
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*➖➖➖ गतांक से आगे ➖➖➖*
भगवान श्रीराम ने गुरुदेव वशिष्ठ के कहने पर अश्वमेध यज्ञ की तैयारी की | इस यज्ञ में विजयी अश्व के दिग - दिगांतर में स्वच्छंद होकर भ्रमण करने के लिए छोड़ा गया | श्रीराम ने देखा कि अयोध्या के सैनिक एवं *लक्ष्मण* आदिक वीरों को अपने बल का अहंकार हो गया है तो उनकी ही माया से उनके ही पुत्रों लव एवं कुश ने अश्वमेध यज्ञ के अश्व को पकड़ लिया तथा परमात्मा ने इन दो छोटे कुमारों के माध्यम से अपनी सेना एवं भाइयों के बल के अहंकार का दमन किया | अपनी शुद्धता स्थापित करने के क्रम में भगवती सीता भूमि में समाहित हो गई | *लक्ष्मण जी* ने एक दिन श्रीराम से कहा कि :+ हे भगवन ! माता जी के जाने के बाद यह धरती श्रीहीन हो गई है अब इस धरती पर जीवित रहने की इच्छा नहीं रह गई है | श्री राम ने कहा :- *लक्ष्मण !* धैर्य धारण करो क्योंकि यहां सब का समय निश्चित होता है |
इस प्रकार श्री राम ने ग्यारह हजार वर्षों तक शासन किया और अनेकों यज्ञ संपादित करते हुए प्रजारंजन में लगे रहे | *लक्ष्मण जी* जीवन पर्यंत मन , वचन एवं कर्म से श्रीराम के सेवक बने रहे | यह संसार जहां हम सभी निवास करते हैं इसे *मृत्युलोक* कहा जाता है | यह आवागमन का क्षेत्र है | यहां जो भी आया है उसे एक निश्चित समय पर धरती , समाज , परिवार एवं स्वजनों को छोड़कर जाना ही पड़ता है | यहां आने वाला अनेक प्रकार के शरीर धारण करते हुए इस संसार का त्याग कर देता है | एक निश्चित समय के लिए जीव पृथ्वीलोक की यात्रा पर आता है | उसी प्रकार दिव्य आत्मायें एवं अवतार भी काल के विधान को पार नहीं कर पाते | धर्म की स्थापना करके पापियों का संहार करके अवतार भी अपने स्वधाम को चले जाते हैं | *श्रीलक्ष्मण जी* भी काल के इस विधान को भला कैसे पार कर सकते हैं | जीवन भर अनेकों प्रकार की लीला करने वाले *श्री लक्ष्मण जी* के भी इस धराधाम को छोड़ने का समय उपस्थित हो गया | जब श्रीराम के परमधाम गमन का संदेश लेकर स्वयं काल पुरुष तपस्वी के वेष में श्रीराम का दर्शन करने आए तब *श्री लक्ष्मण जी* स्वयं धैर्यपूर्वक द्वार पर खड़े थे उनको देखकर काल ने कहा :---
*दूतो ह्यतिबलस्याहं महर्षेरमितौजस: !*
*रामं दिदृक्षुरायात: कार्येण हि महाबल: !!*
तपस्वी के वेष में काल पुरुष ने *लक्ष्मण जी* से कहा :-- *महाबली लक्ष्मण !* मैं अमित तेजस्वी महर्षि अतिबल का शिष्य हूं आज मैं यहां उनका दूत बन कर के आया हूं और हमें एक आवश्यक कार्य के लिए श्री रामचंद्र जी से मिलना है | तुम मेरा संदेशा श्रीराम तक पहुंचा दो | *लक्ष्मण जी* तपस्वी को प्रणाम करके श्री राम के पास पहुंचकर संदेशा कहते हैं | श्रीराम ने काल पुरुष का स्वागत किया | काल ने कहा :- श्री राम ! तुम्हारी जय हो | मैं जो संदेश आपको सुनाने जा रहा हूं उसमें मेरी एक शर्त है कि मुझे आप से वार्ता करते समय कोई देखे ना और ना ही हमारी वार्ता कोई सुने यदि कोई भी हमारी वार्ता को सुनें या इस बीच यहां आने का अपराध करें तो वह आपके द्वारा वध्य अर्थात मृत्युदंड का भागी बने | श्रीराम ने तपस्वी काल पुरुष की शर्त का अनुगमन करते हुए *लक्ष्मण* से कहा :---
*द्वारि तष्ठ महाबाहो , प्रतिहारं विसर्जय !!*
*स मे वध्य: खलु भवेद् , वाचं द्वन्द्वसमीरितम् !*
*ऋषेर्मम च सौमित्रे पश्येद् वा श्रृणुयाच्च य: !!*
*हे लक्ष्मण !* द्वारपाल को विदा करके तुम स्वयं द्वार पर खड़े होकर पहरा दो | ध्यान रहे कि कोई भी मेरी और ऋषि की वार्ता के बीच में व्यवधान उत्पन्न न करे | *हे लक्ष्मण !* जो भी मेरी और ऋषि की वार्ता को सुन लेगा या हमें बात करते हुए देख लेगा वह मेरे द्वारा मारा जाएगा | *श्री लक्ष्मण जी* श्रीराम की आज्ञा स्वीकार करके स्वयं द्वार पर पहरा देने के लिए खड़े हो गए | काल पुरुष ने भगवान श्रीराम से कहा हे भगवन ! आप तो जानते हैं कि मैं काल हूं | ब्रह्मा जी का संदेशा लेकर आया हूं | हे जगदाधार ! ब्रह्मा जी ने कहा है कि :--"अब आपका समय (जो निश्चित करके आप इस पृथ्वी पर आए थे वह) पूर्ण हो गया है | अत: आप बैकुंठ की शोभा बढ़ाने के लिए पृथ्वी से गमन करें | श्री राम को ब्रह्मा जी का संदेश काल पुरुष सुना रहे थे | उधर विधाता की इच्छा से दुर्वासा जी राजद्वार पर पधारे और अविलंब श्री राम से मिलने को कहने लगे | उनके आदेश को सुनकर *लक्ष्मण जी* ने उनसे हाथ जोड़कर कहा :---
*किं कार्यं ब्रूहि भगवन् को ह्यर्थ: किं करोम्यहम् !*
*व्यग्रो हि राघवो ब्रह्मन मुहूर्त्त परिपाल्यताम् !!*
*लक्ष्मण* ने कहा :- हे मुनिराज ! बताइए , मैं आपका कौन सा कार्य संपादित करूं ! आपकी जो सेवा हो हमसे बताइए क्योंकि इस समय महाराज श्री राम दूसरे कार्य में व्यस्त हैं | दुर्वासा जी ने क्रोध करके कहा :- यदि मेरे संदेश को अविलंब राम तक ना पहुंचाया गया तो मैं इसी समय इस राज्य को , नगर को तुम्हारे सहित राम , भरत , शत्रुघ्न एवं तुम्हारी संतानों को श्राप देकर भस्म कर दूंगा | जीवन भर संघर्ष करने वाले *लक्ष्मण जी* आज स्वयं से संघर्ष करने लगे | उनके संघर्ष का कारण यह था कि यदि वे श्री राम के पास जाते हैं तो उन्हें मृत्युदंड प्राप्त होता है और यदि नहीं जाते हैं तो रघुकुल के साथ संपूर्ण अयोध्या के प्राण संकट में पड़ते हैं |
*भगवत्प्रेमी सज्जनों !* बुद्धिमान एवं विद्वानों का यह कथन है कि यदि एक व्यक्ति के बलिदान से समूचे राष्ट्र की सुरक्षा सुनिश्चित होती है तो वह बलिदान देना चाहिए यही विचार अपने हृदय में *लक्ष्मण जी* ने किया :---
*एकस्य मरणं मे$स्तु मा भृत सर्व विनाशनम् !*
*इति बुद्ध्या विनिश्चित्य राघवाय न्यवेदयत् !!*
यदि अकेले मेरी मृत्यु से सबका विनाश होने से बचता है तो मुझे यह मृत्यु स्वीकार ही कर लेनी चाहिए | यही विचार कर *लक्ष्मण जी* श्री राम के कक्ष में पहुंच गए | *लक्ष्मण* को देखकर श्रीराम ने कहा :-- *लक्ष्मण !* यह तुमने क्या किया मेरे भाई ? तुम्हें पता है कि मैंने क्या प्रतिज्ञा ले रखी है ? इसके बाद भी तुम मेरी अवज्ञा कर के यहां चले आए ?? काल की शर्त एवं अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार *लक्ष्मण* का वध करने के विचार से ही श्रीराम की आंखों में आंसू आ गए | *लक्ष्मण* ने कहा :-- क्षमा करें भैया ! कारण ही ऐसा उपस्थित हो गया कि मुझे आपकी अवज्ञा करनी पड़ी | *लक्ष्मण* को देखकर काल पुरुष अंतर्ध्यान हो गए | दुर्वासा के आगमन एवं क्रोध का संदेश पाकर श्रीराम ने दुर्वासा जी को संतुष्ट करके उनका आशीर्वाद पाकर उनको विदा किया |
*शेष अगले भाग में :----*
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आचार्य अर्जुन तिवारी
प्रवक्ता
श्रीमद्भागवत/श्रीरामकथा
संरक्षक
संकटमोचन हनुमानमंदिर
बड़ागाँव श्रीअयोध्याजी
(उत्तर-प्रदेश)
9935328830
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