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‼️ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼️
🐍🏹 *लक्ष्मण* 🏹🐍
🌹 *विश्राम - भाग* 🌹
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*➖➖➖ गतांक से आगे ➖➖➖*
जब भगवान श्रीराम ने दुर्वासा जी को विदा किया उसके बाद उनको अपनी प्रतिज्ञा का स्मरण हुआ | प्रिय भाई *लक्ष्मण* का वियोग सोचकर श्रीराम व्याकुल हो गये | उस समय श्री राम जी की वही दशा हो गई जैसे राहु के द्वारा ग्रसे जाने पर चंद्रमा तेज हीन हो जाता है | उन्हे पश्चाताप करते देख *लक्ष्मण जी* ने कहा :----
*न संतापं महाबाहो , मदर्थं कर्तुमर्हसि !*
*पूर्व निर्माणबद्धा हि कालस्य गतिरीदृशी !!*
*लक्ष्मण जी* कहते हैं :- हे महाबाहो ! आपको मेरे लिए संताप नहीं करना चाहिए , क्योंकि पूर्व जन्म के कर्मों से बंधी हुई यही काल की गति है | हे भैया ! मुझे प्राण दंड दे करके आप अपनी प्रतिज्ञा पूर्ण करते हुए
*रघुकुल रीति सदा चलि आई !*
*प्रान जाइ पर वचन न जाई !!*
को चरितार्थ कीजिए | *लक्ष्मण* की बात सुनकर श्री राम ने *लक्ष्मण जी* को हृदय से लगा लिया और रुदन करने लगे | तब एक बार फिर *"लक्ष्मण समुझाए बहु भांती"* काल की यही इच्छा जानकर श्री राम ने अपने विशेष मंत्रियों एवं गुरु वशिष्ठ के साथ विशेष सभा बुलाई और उस सभा में अपने प्रतिज्ञा एवं *लक्ष्मण* के वध की विवशता बताकर के उपाय पूछा | श्री राम के मुख से *लक्ष्मण* के वध की बात सुनकर सभी सभासद सन्न रह गए | कोई कुछ भी नहीं बोल सका | *लक्ष्मण* को प्राणदंड देने की बात ही सोचकर सब के नेत्र सजल हो गए | तब वशिष्ठ जी ने कहा :- हे राम ! किसी प्रिय का त्याग कर देना उसे प्राणदंड देने के बराबर है इसलिए :---
*त्यजैनं बलवान कालो , मा प्रतिज्ञा वृथा कृथा: !*
*प्रतिज्ञाया हि नष्टायां धर्मो हि विलयं व्रजेत् !!*
हे राम ! तुम *लक्ष्मण* का परित्याग कर दो | काल बड़ा प्रबल है | तुम अपनी प्रतिज्ञा पूरी करो क्योंकि प्रतिज्ञा नष्ट होने पर धर्म का लोप हो जाएगा | गुरुदेव की बात सुनकर श्री राम ने *लक्ष्मण* की ओर देखकर कहा :--
*विसर्जये त्वां सौमित्रे , मा मृद धर्म विपर्यय: !*
*त्यागो वा वधे विहित: साधूनां ह्यभयं समम् !!*
श्री राम कहते हैं कि :- *हे लक्ष्मण !* मैंने सद्यपि वध करने का प्रण लिया था परंतु गुरुदेव के कथनानुसार मैं तुम्हारा त्याग करता हूं जिससे कि धर्म का लोप ना हो और साधु पुरुषों का त्याग किया जाए या वध कर दिया जाय दोनों बराबर ही कहा गया है |
श्री राम की बात सुनकर *लक्ष्मण जी* रोने लगे श्री राम को प्रणाम करके वे सीधे सरयू के किनारे पहुंच गए | *लक्ष्मण जी* अपने महल में भी नहीं गये | विचार कीजिएगा *भगवत्प्रेमी बंधुओं !* महल में जाते भी तो किसके लिए ?? *लक्ष्मण जी* के लिए श्रीराम ही सब कुछ थे और जब श्री राम जी ने ही त्याग कर दिया तो संसार ही निस्सार हो गया | भक्तों के हितैषी *लक्ष्मण !* दीनों के ऊपर कृपालु होने वाले *लक्ष्मण !* पृथ्वी का भार हरण करने वाले *लक्ष्मण !* श्रीराम की दाहिनी भुजा *लक्ष्मण !* सत्यव्रत *लक्ष्मण !* मेघनाथ जैसे अजेय योद्धा का संहार करने वाले *लक्ष्मण !* सुंदरता के भंडार *लक्ष्मण !* भरत के प्यारे सीता जी के दुलारे *लक्ष्मण !* तुलसीदास जी के गुप्त धन *श्री लक्ष्मण जी* आज इस धरा धाम का त्याग कर रहे हैं | सरयू के किनारे पहुंचकर *लक्ष्मण जी* ने आचमन किया और श्रीराम का ध्यान करते हुए हाथ जोड़कर संपूर्ण इंद्रियों को वश में करके प्राणवायु को रोक लिया :--
*अनि: श्वसन्तं युक्तं तं सशक्रा: साप्सरोगणा: !*
*देवा: सर्षिगणा: सर्वे पुष्पैरभ्यकिरंस्तदा !!*
*अदृश्यं सर्व मनुजै: सशरीरं महाबलम् !*
*प्रगृह्य लक्ष्मणं शक्रस्रिदिवं संविवेश ह !!*
*लक्ष्मण जी* ने योग युक्त होकर श्वांस लेना बंद कर दिया यह देखकर इन्द्रादि सब देवता , ऋषि , अप्सरायें आदि उन पर पुष्पवर्षा करने लगे | देखते ही देखते *लक्ष्मण जी* अपने शरीर के साथ सभी मनुष्यों की दृष्टि से ओझल हो गए | इस प्रकार शेषावतार श्री *लक्ष्मण जी* निजधाम को पहुंच गए |
*राम ही प्रान थे राम ही जीवन ,*
*राम बिना नहिं जीवनधारा !*
*रामहिं मातु पिता गुरु स्वामी ,*
*रामहिं संग में जीवन सारा !!*
*रामहिं त्यागेहुं जब मो कहँ ,*
*तब को यहि जीवन कर रखवारा !*
*"अर्जुन" व्यग्र भयउ लछिमन ,*
*सरयू तट से निज धाम सिधारा !!*
*भगवत्प्रेमी सज्जनों !* भाई को दाहिनी भुजा कहा जाता है परंतु *लक्ष्मण जी* श्री राम के प्राण थे | यह धरती जब तक विद्यमान रहेगी तब तक *राम - लक्ष्मण* की युगल जोड़ी की कथाएं अमर रहेंगी | *लक्ष्मण* जैसा समर्पित भाई *"न भूतो न भविष्यत्"* हुआ है और ना ही होगा |
*लक्ष्मण जी* का दिव्य चरित्र उजागर करने का अवसर गोलोकवासी *परमपूज्य पिता जी* एवं *माता जी* का आशीर्वाद *गुरुजनों* की कृपा एवं *मित्रों* के उत्साहवर्धन से ही संभव हो सका | टूटी लेखनी से अपनी भाषा में यह कथा लिखने का प्रयास महामाया *वाग्देवी* की कृपा से ही हुई है | इस पूरे चरित्र में कोई भी त्रुटि हुई होगी तो विद्वतसमाज बालक समझकर क्षमा प्रदान करेंगे क्योंकि :---
*न मैं लेखक न कवि हूं ,*
*नहीं बुद्धि बड़ी नहिं चतुर कहावौं !*
*अक्षर वरन न कछु जानउं ,*
*कविता की विधा नहिं कछु लिखि पावौं !!*
*भयउं कृपालु सुमित्रा के लालन ,*
*तिनके पद नख माथ नवावौं !*
*"अर्जुन" निज मति के अनुसार ही ,*
*मन वच क्रम लछिमन गुन गावौं !!*
*जय रघुवर जय जानकी , जय लछिमन हनुमान !*
*जयति भरत जय रिपुदमन , जय जय अवध महान !!*
*"लखन चरित" पूरन भयो , कृपा करहुँ जगदीश !*
*"अर्जुन कहुँ सुत मानि सब , बहुविधि देहुँ अशीष !!*
*********** *इति लक्ष्मण चरित्र* **********
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आचार्य अर्जुन तिवारी
प्रवक्ता
श्रीमद्भागवत/श्रीरामकथा
संरक्षक
संकटमोचन हनुमानमंदिर
बड़ागाँव श्रीअयोध्याजी
(उत्तर-प्रदेश)
9935328830
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