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‼️ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼️
🟣 *श्री हनुमान चालीसा* 🟣
*!! तात्त्विक अनुशीलन !!*
🩸 *दसवाँ - भाग* 🩸
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*गतांक से आगे :--*
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*नवें भाग* में आपने पढ़ा :--
*"हरहुँ कलेश विकार"* के अन्तर्गत *हरहुँ*
अब आगे :---
*कलेश*
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गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज *हनुमान जी* से अपने *क्लेश एवं विकारो*ं को हरण करने के लिए निवेदन कर रहे हैं | *क्लेश* का हरण करने के लिए इसलिए कह रहे हैं क्योंकि मानव जीवन पाकर के , माया के वशीभूत होकर अनेकानेक *क्लेश* चिरकाल से मनुष्य के अंतः करण से चिपके हुये हैं | यह इतने ज्यादा प्रभावी हो चुके हैं कि बिना *‼️भगवत्कृपा ‼️* के या बिना दीर्घकालीन योग बल के यह छूट नहीं सकते | यद्यपि यह नाना प्रकार के *क्लेश* मनुष्य को कष्ट ही देते हैं परंतु फिर भी मनुष्य इनको छोड़ नहीं पाता है | परिवार में एक दूसरे विचारों से असहमत होकर प्राय: *कलह* मची रहती है | इसे भी *क्लेश* का नाम दिया जाता है | यद्यपि प्राय: परिवार में *कलह एवं क्लेश* मचे रहते हैं परंतु मनुष्य अपने परिवार को जिस प्रकार नहीं छोड़ पाता है उसी प्रकार इन *क्लेशों* से भी उसका पीछा नहीं छूटता है | जिस *क्लेश* की बात की जा रही है उसके विषय में यह भी जान लिया जाए कि आखिर हमारे शास्त्रों में *क्लेश* किसे कहा गया है | *पतंजलि योग शास्त्र* में पांच प्रकार के *क्लेश* कहे गए हैं | यथा :---
*"अविद्या$स्मिता रागद्वेषाभिनिवेशा: क्लेशा"*
अर्थात :- अविद्या , अस्मिता , राग , द्वेष एवं अभिनिवेश यह पांच प्रकार के *क्लेश* मानव जीवन को प्रभावित करते हैं | इनको विस्तृत ढंग से जान लिया जाय |
*१- अविद्या :-* जिसके कारण मनुष्य सत्य को असत्य , दुखों को सुख एवं अनित्य को नित्य समझता रहता है | वह *अविद्या* कही गयी है |
*२- अस्मिता :-* अंतः करण की स्थिति एवं ईश्वर भी अभेद का आभास जिससे होता है उसे *अस्मिता* कहा जाता है |
*३- राग :-* इंद्रियजन्य सुखों के प्रति आसक्ति उनकी अनुभूति करके आनंदित होना ही *राग* है |
*४- द्वेष :-* जिस वस्तु या व्यक्ति से मनुष्य को दुख प्राप्त होता है उस व्यक्ति या वस्तु से *घृणा* हो जाना ही *द्वेष* है |
*५- अभिनिवेश :-* जिसके कारण ज्ञानी एवं अज्ञानी की एक प्रकार व्यवहार करने लगते हैं वही *अभिनिवेश* है |
*जैसे :-* ज्ञानी पुरुष जानता है कि उसके जीवन का अंत नहीं है वह यह भी जानता है कि :- *"वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृहणाति वरोपराणि"* परंतु इतना जानने के बाद भी वह मृत्यु से उसी प्रकार भयभीत रहता है जैसे एक अज्ञानी पुरुष रहता है | यही *अभिनिवेश* है |
यहां हम यदि इन पाँचों *क्लेशों* का विस्तृत विश्लेषण करने लगेंगे तो विषयान्तर हो जाएगा | हमारे कहने का तात्पर्य सिर्फ इतना ही है कि मनुष्य का *क्लेश* छूटता नहीं है इसलिए गोस्वामी जी ने *हनुमान जी* से इनका *हरण* करने की बात कही है क्योंकि उन *क्लेशों* के रहते - रहते जीवन का एवं जीव का कल्याण कदापि नहीं हो सकता है |
इन *पाँचों क्लेशों* में सबसे मुख्य है *अविद्या* , क्योंकि यह बाकी *चार क्लेश* इसी *अविद्या* के ही कारण हैं | क्योंकि सब इसी के पारिवारिक सदस्य हैं | बाबा जी ने अपने मानस में लिखा है *"सकल अविद्या कर परिवारा"*
गोस्वामी जी ने हनुमान जी से *विद्या* मांगी थी परंतु *विद्या* के साथ में *अविद्या* भी आ गई | *विद्या एवं अविद्या* दोनों परस्पर विरोधी हैं इसलिए एक साथ नहीं रह सकती | गोस्वामी बाबा को यहां *अविद्या* हरण करने की बात कहनी चाहिए थी परंतु यह उनकी वाक्पटुता एवं विद्वता है कि उन्होंने *अविद्या* ना कह कर के *क्लेश* को हरण करने का निवेदन किया है | क्योंकि यदि *अविद्या* हरण करने की बात करते तो *अविद्या* का ही भाव ग्रहण होता शेष चार *क्लेश* बने रहते | इसीलिए तुलसीदास जी ने *क्लेश* लिख दिया , क्योंकि सबका मूल *अविद्या* ही है | *अविद्या* के जाने के बाद बाकी के *चार क्लेश* यहीं रह जाते | यद्यपि *अविद्या* के ना रहने पर उसमें वृद्धि तो नहीं होती परंतु जो पहले से विद्यमान थे वह जीवन में भूचाल लाते रहते उनको जड़ मूल से समाप्त करने के लिए ही गोस्वामी जी ने *क्लेश हरण* करने की बात कही , क्योंकि उनका विचार यह था कि जब देने वाला समर्थ है और सम्मुख खड़ा है तो मांगने में कोई कसर क्यों रखी जाय ? यही मन में विचार आते ही मात्र *अविद्या का हरण* न करने को कह कर के समस्त *क्लेशों* का *हरण* करने का निवेदन हनुमान जी महाराज से गोस्वामी जी ने कर दिया
*शेष अगले भाग में :-----*
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आचार्य अर्जुन तिवारी
पुराण प्रवक्ता/यज्ञकर्म विशेषज्ञ
संरक्षक
संकटमोचन हनुमानमंदिर
बड़ागाँव श्रीअयोध्या जी
9935328830
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