..... मैंने बचपन से ही खोना शुरू कर दिया था ।बाद में कुछ रिश्ते बने, मैंने उन हर रिश्तो को जिया ,सब में स्थायित्व चाहा। पर नहीं.... सब स्वार्थी निकले !सत्य क्या है ?मैं स्वयं नहीं। जानता इस रिश्ते की परिणति क्या होगी? नहीं पता मुझे। पर इतना जानता हूं, इससे संतुष्ट हूं ।मुझे उससे एक अनूठे आत्मिक आनंद की अनुभूति होती है! उसके एक पल की खुशी के लिए मैं अपना सर्वस्व न्योछावर कर सकता हूं। इतना महत्वपूर्ण है वह मेरे लिए ।उसके विषय में सोचते ही ना जाने आंखों में कैसी चमक आ जाती है ।ह्रदय में एक सुकून सा उठता है, और पूरे वजूद में एक अनोखी विश्रांति छा जाती है।
- गुस्ताव नील
.......हां मेरे लिए महान है वह, बल्कि महानता की पराकाष्ठा। जहां से सब कुछ खत्म हो जाता है ,वहां से उनका अस्तित्व शुरू होता है। मैं क्या था ,क्या बनता, मुझे खुद पता नहीं था। लेकिन उन्होंने मुझे सींचा, मेरा निर्माण किया। जीवन में सब कुछ कितना विषम था मेरे लिए, लेकिन जब से उन्होंने मेरे जीवन में प्रवेश किया सब कुछ सुगम बनता चला गया। शायद मेरे लिए ही बने थे वह। खुद को बार-बार समर्पित कर दू उनके लिए, फिर भी उनका बदला नहीं चुका सकता।
- डॉ जॉनसन
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अस्पताल का एक तामझाम भरा दिन !यह अलग बात है कि अस्पतालों में अधिकांश रात दिन जैसे शब्दों का कोई औचित्य नहीं होता। नर्सों और डॉक्टरों का आवागमन, लोगों के बदहवास से चेहरे, रह-रहकर अप्रत्याशित सा रुदन
और चिल्लाहट की आवाज! पर इन्हीं सबके बीच अस्पताल का एक कमरा एक दम शांत सा। इसमें विदेशी सा दिखने वाला एक मरीज पड़ा हुआ था। इस अगाध संसार के लिए महत्वपूर्ण पर, स्वयं के लिए एकदम अनजान !सामने खड़ा इलाज करने वाला व्यक्ति भी कोई विदेशी ही था जो काफी दिनों से यही था। बगल में खड़ा था उनका एक सहयोगी वह महसूस कर रहा था डॉक्टर जॉनसन इस मरीज में खासा दिलचस्पी ले रहे थे।
उन्माद! उल्लास! डर! खुशियां सहसा फिर से सहम गया वह। शायद वह किसी गहरी सोच में डूबा हुआ था, पूरा चेहरा विकृत सा नजर आ रहा था। और उस पर पसीने की बूंदें चमक रही थी। सांस धौकनी की तरह चल रही थी। जॉनसन करीब आए, देखा तो वह सोने की कोशिश कर रहा था ।यह सब कुछ नया नहीं था इस कमरे में कई दिनों से यही सब चल रहा था। वह स्वयं को जितना एकाग्र करता ,उसकी मानसिक स्थितिया उससे उतना ही विद्रोह करती। परिणाम होता उसकी बेचैनी! उसके चेहरे के भाव प्रति क्षण बदलने लगते और वह खुद से ही विद्रोह कर उठता। भाव और शारीरिक स्थितियों में परस्पर तालमेल बिठाने की कोशिश में वह चिल्ला उठता। सासे साथ छोड़ने की कोशिश करने लगती।
गुस्ताव नील... यही नाम है इस मरीज का। इनकी यह दिनचर्या नई नहीं थी। काफी दिन बीत चुके थे उन्हें इस अस्पताल में आए ।पर अभी तक उनमें कोई परिवर्तन नहीं आया। परिवर्तन शायद हो भी नहीं! परिवर्तन .....हां परिवर्तित ही तो हुए हैं वह। जीवन का आधा पल गुजार चुके नील ने हमेशा परिवर्तन चाहा, हर सुबह, हर शाम, और रात में भी जबकि चारों तरफ सिर्फ नीरवता छाई रहती उनके प्रार्थना के प्रस्फुटन का शब्द सुनाई पड़ता। जो खुद के परिवर्तन के लिए ही होता। ईश्वर ने शायद उनकी फुसफुसाहट सुनी। तभी कुछ सीमित समय के लिए खुशियों का पटाक्षेप हुआ। पर अंततः? जीवन में परिवर्तन के लिए कुछ लम्हे काफी होते हैं,पर जिसका पूरा जीवन ही संतप्त रहा हो ...उसके लिए इस पटाक्षेप का क्या औचित्य ?हमेशा प्रेम और संरक्षण के लिए बेचैन रहे वो। निजी जीवन का यह दुख हमेशा इनके कार्यों में परिलक्षित होता रहा
'कभी-कभी सोचता हूं विधाता निर्मित इस सृष्टि में न जाने कितनी विचित्रताए होगी। यह भी तो विचित्र है !और विचित्र ही क्यों विक्षिप्त भी! सामने दीवार पर एक पेंटिंग टँगी है। नव उल्लासित! नव सुभाषित सा! जिसका दर्शन चित्त में संतुष्टि की पराकाष्ठा भर देता है। इसमें चित्रित लहरें हृदय में मधुर संगीत की लहरियां बिखेर देती है, इसकी चमकती सूर्य रश्मिया विचारों को जैसे निष्पाप सा कर देती ।मानव जीवन की संपूर्णता की झलक है यह पेंटिंग ।पर इस चित्र का सृजन कर्ता खुद अधूरा मेरे यहां बीमार पड़ा है ।इन्हें तो यह भी नहीं पता या उनकी स्वयं की अभिव्यक्ति है ,इनके द्वारा चित्रित।' ...जॉनसन एक उच्छवास लेकर चुप हो गए।
जॉनसन के मन में छिपे पीड़ा के भाव को उतारते हुए उनका सहयोगी बोला,-' आप चुप क्यों हो गए सर और मुझे यह समझ में नहीं आता कि इस मरीज में आपकी इतनी रुचि क्यों है?
'तुम नहीं जान पाओगे राघव, ये मेरे मरीज ही नहीं मेरे..... जॉनसन के शब्द उन्हें अतीत में खींच रहे थे.....