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ब्लाइंड (भाग -15)

8 दिसम्बर 2021

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नील का आज भारत में प्रथम दिवस था, प्रथम  सुबह। उन्हें यहां के वातावरण में एक अजीब सी ताजगी का अहसास हो रहा था। सब कुछ एकदम निर्मल सा !अभी तक इस देश को उन्होंने सिर्फ किताबों या अखबारों के माध्यम से ही जाना था, लेकिन यहां आने के बाद जैसे वे खुद को भी भारतीय महसूस करने लगे। वैसे भी भारत उन्हें शुरू से ही अपनी ओर प्रेरित करता रहा। कुछ भारतीयों के विषय में भी उन्होंने सुन रखा था जो अपनी महानता से पहचाने जाते थे। नील ने भी महसूस किया यहां की मिट्टी की विशेषता को।
भारत में उनका पहला पड़ाव बनी यहां की आध्यात्मिक नगरी काशी। नील ने महसुस किया उनके विचारों के सर्वथा अनुकूल है यह जगह। गुलामी यहां के लोगों के विचारों को नहीं जकड़ पाई थी। भले ही अंग्रेज उन्हें गुलाम बनाने के लिए वैचारिक तौर पर तोड़ते जा रहे थे। सब कुछ तो यहां था जिस दैवीय कहा जा सके। लोगों के बीच आपसी प्रेम ,दया, ईश्वर के प्रति आस्था। हां उन्हें कभी कभी यह महसूस होता उनका विदेशी होना लोगों को उनसे नफरत का कारण बन जाता ,पर उन्होंने जब नील में अपने धर्म के प्रति आस्था देखी  वह उनसे से जुड़ते चले गए। उन्हें लगने लगा नील अन्य विदेशियों से अलग है ।शक्ल से विदेशी पर विचारों से भारतीय !
नील महसूस कर रहे थे यहां के लोगों की असीम सहनशक्ति को जिसने उन्हें एक दूसरे से जोड़े रखा था।वे जान गए कि भारतीयता का मतलब ही होता है-" मानवीयता।"
वह घाट की सीढ़ियों पर बैठे "गंगा "को निहार रहे थे ।उन्हें अनुभूति हो रही थी इस नदी की दैवीयता की। उसके उछलते- कूदते लहरों में डूबती- उतराती सूर्य रश्मिया, उच्छल तरंगें, दूर सीढ़ियों से दौड़कर आ लहरों पर कुदते बच्चों के झुंड ,अंजलि से जल उठा सूर्य को अर्घ्य देते हुए वृद्ध ,नदी के बीच नाव के हिचकोलों के साथ कोई विरह गीत गुनगुनाता नाविक ।स्वप्न सरीखा लग रहा था नील को सब कुछ! प्रकृति द्वारा  प्रकृति के कैनवास पर रची एक अद्भुत पेंटिंग !इसमें सब कुछ जीवन्त था। न जाने कितनी देर निहारते रहे नील इस छटा को ।
शाम को वह पत्र लिख रहे थे ।
                   "तुम नहीं जानते जॉन, मैंने यहां क्या पाया है! तुम्हारे बाद यहां आना मेरे जीवन की दूसरी सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि है। जिस सामाजिकता ,जिन भावनाओं को ,हमारे यहां प्रबुद्ध वर्ग भी नहीं समझ पाता ।वे भावनाएं यहां के लोगों में सहजता से मिल जाती हैं। इनका आपसी प्रेम, एक दूसरे के प्रति सम्मान और सबसे बड़ी सेवा -भाव के यहाँ निवासियों की मौलिक पहचान है ।जिस सामाजिकता और सेवा भाव की बात हम सोच रहे थे, यहां के बच्चे में भी यह भावना  दृष्टव्य हो जाती है। काश तुम मेरे साथ होते तो हमारी भावनाओं को और भी बल मिलता। तुम्हारे साथ होने से मैं इन चीजों को और भी गहराई से आत्मसात कर पाता। लिखना तुम कैसे हो ?"
                                            तुम्हारा 
                                         गुस्ताव नील 
शाम के बाद भी नील ने घाटों को नहीं छोड़ा ।उन्हें अपने विचारों की मजबूती के लिए जिस ऊष्मा की जरूरत थी, घाटों की अध्यात्मिकता ने उन्हें और बढ़ा दिया। काफी देर तक वे सीढ़ियों पर बैठे रहे। गंगा की लहरों में जैसे खुद के विस्मृत वालों को ढूंढते या फिर खुद मैं उसकी पवित्रता को समाहित  करना चाहते।सत्य जो कुछ भी हो पर नील का इस तरह से सीढ़ियों पर बैठना उन्हें  सुकून दे रहा था। थोड़ी देर बाद उन्होंने घड़ी पर नजर डाली ,समय के अधिकता और घाटों की नीरवता उन्हें प्रेरित कर रही थी आराम के लिए।वे वापस होटल लौट पड़े।
सुबह जब कमरे की खिड़कियां खुली तो सूर्य की किरणें बड़े जोर शोर से अपनी उपस्थिति का एहसास करा रही थी। कमरे से बाहर निकले और टहलते हुए घाट की सीढ़ियों तक चले आए ,चाय पी ।घाट पर बने टाट से घेरकर बनाई गई दुकान का चाय पीने का पहला अनुभव था ।वहीं  पर पड़े अखबार के एक पन्ने पर उन्होंने एक अद्भुत व्यक्तित्व देखा "महात्मा गांधी "। सुना तो उनके विषय में बहुत पहले से ही था लेकिन अंग्रेजी सरकार के खिलाफ उनके  इस शांति भरे लड़ाई में जिस हथियार की उपयुक्तता देखी, उसने गांधी से मिलने के लिए बेचैन कर दिया ।
नील ने जो अगली ट्रेन पकड़ी वह साबरमती के लिए  जाती थी ।उन्हें लग रहा था, इतनी विसंगतियों के बाद भी जिस पुरुष ने अहिंसा रूपी हथियार  को अपनाए रखा उसमें कुछ अद्भुत तो होगा ही ।दूसरे दिन जब वह अहमदाबाद आश्रम पहुंचे तो उन्हें एक दैवीय एहसास हुआ।वे अत्यंत आश्चर्य चकित हुए ।वे सोच भी नहीं सकते थे कि जिसकी महानता भारत की सीमा लांघ चुकी है वह व्यक्ति इतना साधारण कार्य भी कर सकता है! झाड़ू लगाते "बापू "ने आश्रम में नया चेहरा देखा तो एक पल के लिए रुके, फिर अपना कार्य खत्म कर वापस  आए ।आश्रम वासियों के लिए भी नील कोतुहल का विषय थे। उन्होंने अपना परिचय दिया। यदा-कदा बापू  ने उनकी चर्चा सुनी थी और उनके चित्रों से प्रभावित भी थे। उन्होंने जब बापू से एक सप्ताह के लिए आश्रम में रुकने की प्रार्थना की तो वे  सहर्ष तैयार हो गए।
नील के लिए यह एक अलग माहौल था, स्वयं को समझने का भी और सेवा जैसी भावना को जानने का भी। उन पर बापू का ऐसा प्रभाव पड़ा कि उन्होंने विश्व को गांधीजी की दृष्टि से देखना शुरू किया ।बापू ने उन्हें अहिंसा की शक्ति से परिचित कराया ।नील ने उनके विचारों से जाना और महसूस भी किया कि स्वयं के लिए  जीना जीवन नहीं अपितु विधाता ने इसे दूसरे के लिए प्रदान किया है।
बापू शांत बैठे आश्रम वासियों को कुछ समझा रहे थे ।यह वह वक्त होता था जब सब लोग एक साथ बैठे कुछ समय अपने लिए भी निकालते ...शाम का वक्त। नील अपने कमरे से निकले, एक आश्रम वासी ने उन्हे बैठने की जगह दी। अब वह भी उस परिवार का हिस्सा थे ।
"मिस्टर नील , शायद आपके लायक यहां सुविधाएं नहीं मिल पा रही होगी?" बापू ने पूछा ।
"बापू! मैं सुविधाएं लेने यहां नहीं आया वरन आपकी अहिंसा सीखने आया हूं।" नील ने कहा।
बापू शब्द नील के मुंह से आश्रम वासियों के साथ गांधी जी को भी हतप्रभ करने देने वाला था।
" अहिंसा जैसी दैवीयता सीखते नहीं मिस्टर नील! इसे खुद में समाहित किया जाता है ।आपने बुद्ध को भी जाना होगा और ईशा को भी? क्या आपको लगता है उन्होंने कहीं से इसकी शिक्षा पाई होगी? यह तो स्वतः उत्पन्न एक प्रेरणा है ,जिसने बुद्ध को संसार का दुख दूर करने के लिए राज्य छोड़ने को विवश कर दिया और ईशा को सूली पर लटकने के लिए। मैंने भी इसे सहज ही नहीं अपनाया बल्कि इसके फायदे भी देखे हैं।"
बापू ने उन्हें पुस्तक दिखाइ-" गीता"। नील के लिए भाषाई दृष्टि से वह गुढ़ प्रतीत हुई, पर बापू जैसे अहिंसक के हाथ में किताब के होने का रहस्य वह समझ सकते थे ।बापू ने गीता की शिक्षाओं से उनका परिचय कराया ,कर्मशीलता की परिभाषा बताई, और धर्म की भी। उन्होंने बताया कि-" शब्दों की दुनिया से निकलकर "कर्मठता "कितनी अद्भुत शक्ति है! सफलता सुख-दुख सिर्फ शब्दों के हेरफेर हैं और कुछ नहीं, सत्य है तो हमारी कर्मठता। निरंतर कार्य में जुटे रहना ही जीवन है और अपने कर्तव्यों का संतुलन धर्म ।इसके आगे पीछे कुछ भी नहीं शिवाय अंतहीन भटकाव के।"
नील ने देखा उस अहिंसावादी के चेहरे पर एक दैवीय आभा और संतुष्टि के भाव थे। 1 सप्ताह तक उन्हें बहुत कुछ सीखने को मिला जिससे उन्हें जीवन के उद्देश्यों को समझने में सफलता मिली ।वे जब वहां से चले तो काफी आश्रमवासी उन्हें छोड़ने स्टेशन तक आए। बाद में नील अन्य धार्मिक स्थलों पर भी घूमे जहां उन्हें भारतीयता और भारतीय संस्कृति को समझने का मौका मिला ।प्रसिद्ध जगहों की स्मृतियों को उन्होंने अपने रेखांकन के माध्यम से समेटा ,यहां की कुछ वस्तुएं खरीदी ।यहां का प्रत्येक दिन ,प्रत्येक जगह, उनके लिए नया अनुभव लाया था और इसकी अनुभूति उन्हें विशेष भाव से भर देती ।
नील को भारत आए एक महीना हो चुका था और यह एक महीना उनके जीवन के लिए काफी महत्वपूर्ण था। शाम को उन्हें वापस लौटना था। सामान समेटते नील के चेहरे पर खुशी के भाव आ -जा रहे थे! जिसमें जॉन से मिलने की खुशी थी और साथ होने का अहसास। आखिर एक महीना बाद जो मिलने वाला था वह।

रेखा रानी शर्मा

रेखा रानी शर्मा

बहुत सुन्दर 👌 👌 👌

31 दिसम्बर 2021

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रचनाएँ
ब्लाइंड
5.0
प्रस्तुत उपन्यास" ब्लाइंड: आनंद की खोज एक पीरियड ड्रामा है जो वर्ल्ड वार के समय घटित हुआ था। जिसके विरोध में साहित्यकारों, चित्रकारों, संगीतकारों ने मिलकर एक आंदोलन शुरू किया था जिसे दादावाद नाम दिया गया था। इसका नायक एक बाइसेक्सुअल चरित्र है जिसे बचपन में ही यौन शोषण की प्रक्रिया से गुजरना पड़ा... परिणामतः वह सामान्य नहीं रह सका और जीवन पर यह दर्द उस हावी रहा। एक ही परिवेश और पृष्ठभूमि में पलने बढ़ने वाला मनुष्य चिंतन के धरातल पर अलग-अलग सोच का प्रतिनिधित्व क्यों करता है! प्रेम ..हिंसा ...लगाव और नफरत जैसी भावनाएं किस तरह उसके मन मस्तिष्क में पनपती और आकार लेती हैं ।कैसे वह इनको जीता और व्यक्त करता है। जीवन के लिए आनंद बेहद जरूरी है। लेकिन हर मनुष्य के भीतर आनंद की परिभाषा अलग-अलग है। इस उपन्यास का पात्र आनंद की खोज में ऐसे कई भावों की टकराहट से गुजरता है। जहां से प्रेम की जगह हिंसा और नफरत से रूबरू होना पड़ता है। लेकिन वह प्रेम और आनंद की राह नहीं छोड़ता। उपन्यास का पात्र हर रिश्तो को जीना चाहता है ,यह जानते हुए भी कि इस रिश्ते की परिणति उसकी सोच के अनुरूप नहीं होगी। लेकिन इससे भी उसे आत्मिक आनंद की अनुभूति होती है ।उपन्यास पाठकों को कथावस्तु के सहारे चिंतन के ऐसे मोड़ तक ले जाता है जहां उसे औरों के लिए खुद को समर्पित कर देने में आनंद की अनुभूति होती है। उपन्यास रोचक एवं पटनीय है।
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ब्लाइंड (भाग -32)

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