अचानक एलिस को अपनी यहां देख नील आश्चर्यचकित हुए। उन्होंने कारण पूछा।
" कुछ नहीं सर बस यूं ही!" जवाब दिया।
" जॉन तुम्हें दिखाई पड़ा तुम्हें?" नील ने जानना चाहा ।पता है आज मैंने उसे डांटा... दुखी किया उसे !नील के शब्द नम थे। मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था।"
" मिला था वह मुझसे।" एलिस ने बताया ।वह आपसे मिलना चाहता है, वह आपको बहुत याद कर रहा था ।आप दुखी क्यों होते हैं ?आखिर इतना अधिकार तो बनता ही है आपका उस पर ।"
"मुझे अधिकार नहीं चाहिए एलिस, बस थोड़ी सी उसकी आत्मीयता चाहिए । जितना मैं उसे देना चाहता हूं उसका थोड़ा सा हिस्सा ।पर वह इतना भी नहीं दे पाता !वह जानता है एक पल भी उसके बिना पहाड़ों जैसा लगता है मुझे फिर भी वह मुझसे दूर रहा ।क्या यह गलत नहीं ?"
"पर अभी उसकी उम्र ही क्या है सर?" शायद वह आपको समझ ही नहीं सका है। "एलिस ने समझाना चाहा।
"जानता हूं एलिस ।पर सब कुछ अकस्मात या अचानक नहीं हुआ, उसकी प्रॉमिसेज हमेशा क्यों टूटती है? समझना चाहता हूं मैं, हमेशा ही तो सोचता हूं उसके विषय में !पर मेरी आकांक्षाए? मैं तो उसमें खुद का भी वजूद तलाशता रहता हूं ।जानता हूं उसकी उम्र को देखते हुए उससे अधिक अपेक्षाएं करना बेमानी है, पर मैं क्या करूं? खुद की तलाश के लिए मैं बहुत भटका हूं एलिस !कभी यह भटकाव सापेक्ष रहा तो कभी निरपेक्ष ।कभी-कभी तो अस्तित्व ही डूबता सा प्रतीत होता। संभलता था तो इस विश्वास से कि कभी तो पा सकूंगा खुद को, कभी तो खत्म होगी मेरी तलाश ।जॉन को पाकर लगा मेरी आशाएं धूमिल नहीं हुई , पर आज उसकी शब्दों ने जैसे मेरी आशाओं को नैराश्य में पणिरित कर दिया। थम सा रहा है सब कुछ ।मैं खोना नहीं चाहता एलिस खुद को। उबरना चाहता हूं इस स्याह आवरण से। पाना चाहता हूं कुछ अनोखा.. अपने अनुरूप। क्या इसके लिए मेरा जीवन फिर से भटकाव ग्रहण करेगा? पर फिर भी तो नहीं ढूंढ पाता उस चिरंतन सत्य,उस शाश्वत को। भयक्रांत विचार ,भावनाएं,और उस पर झूठी आशाएं ,सब गड्डमड्ड होते जा रहे हैं। आह विधाता !पल प्रतिपल किस अधर में लटका डालते हो?"
जॉन के प्रति नील की इतनी आसक्ति एलिस को आश्चर्यचकित किए दे रही थी। नील का जॉन के प्रति लगाव तो वह जानती थी पर नील का यह रूप उसने पहली बार देखा था।जलन सी हो रही थी उसे जॉन से और जॉन पर तरस आ रहा था।सचमुच कितना बदकिस्मत है वह जो ऐसे इंसान से दूर भागना चाहता है ! उसने नील को सांत्वना देना चाहा ।
"नहीं एलिस!" नील ने मना कर दिया।" झूठी दिलासाओ शांति नहीं मिलती । शायद मैंने अपनी किस्मत में ही अभाव पाया है ... चाहे वह अभाव प्रेम या आत्मीयता का ही क्यों न हो।"
एलिस के लिए यह पहला मौका था जब उसने नील को इस तरह टूटा हुआ देखा ।वर्ना वह नील को एक महानतम चित्रकार के रूप में ही जानती थी जो मानवीय संवेदनाओं का उच्च कोटि का चित्रकार था, लेकिन यह संवेदनाएं उनकी खुद की थी उसने आज पहचाना।
" मना कर देना उसे। हां एलिस मैं खुद उससे नहीं मिलना चाहता। समझता क्या है वह खुद को? अचानक नील के शब्दों में रोष आ गया।" हां एलिस मैं उसकी परवाह क्यों करूं? क्यों ?"नील को लगा वे कुछ ज्यादा ही भावुक हो गए हैं। उन्होंने खुद को संयत किया ।
"तुम्हारा काम कैसा चल रहा है ? इन दिनों मैं तुम्हारी पेंटिंग भी नहीं देख पा रहा था ।तुम्हारी "सन राइजिंग सीरीज" चित्रों की काफी तारीफ सुनी थी, अच्छा लगा नील ने बात बदलना चाहा।
" इसके पीछे आपका ही हाथ है सर!"
" नहीं एलिस ,अगर तुम खुद इतनी मेहनती ना होती तो मेरी प्रेरणाएं भी किसी काम की न होती ।इस सफलता पर सिर्फ तुम्हारा अधिकार है। मुझे खुशी है कि तुम कला जगत में ऊंचाइयां छूती जा रही हो।"
नील की तारीफ एलिस के लिए उर्जा सी थी जो उसके कार्यों की गुणवत्ता बढ़ा देती।
" सर मैं चलूं?" एलिस ने पूछा ।
"जाओ, पर जॉन...... अचानक नील चुप हो गए ।जाओ.. एक झटके से उन्होंने कहा। एलिस बाहर निकल गई।
जॉन एलिस के घर पर बैठा जैसे उसी का इंतजार कर रहा था।
" क्या कहा उन्होंने?" एलिस को देखते ही वह बोला ।
"कुछ भी तो नहीं ?"एलिस रूखे स्वर में बोली ।सचमुच उसे जॉन पर बहुत गुस्सा आ रहा था ।
"कुछ नहीं जान, कुछ नहीं कहा उन्होंने। अच्छा ही तो है, अब तुम पर किसी का नियंत्रण नहीं होगा। आजाद हो तुम। हां अब वे कुछ भी कहें इससे तुम्हें क्या? अब तुम्हें कोई वास्ता नहीं होना चाहिए। और हां एक बात और मैं भी अपने ऊपर किसी का नियंत्रण नहीं चाहती, तुम्हारी भी नहीं !"एलिस ने साफ शब्दों में कहा ।
"एलिस ये तुम क्या कह रही हो?" जॉन को सहसा विश्वास नहीं हुआ।
" वही जो तुमने सुना ।तुम जा सकते हो,मुझे और भी ढेर सारे काम करने हैं ।"
जॉन अपना सा मुंह लेकर बाहर निकल पड़ा ।शाम को एलिस नील के पास थी।
" सर आपको कुछ "ले-आउट्स" दिखाने थे।" एलिस ने कहा।
नील को उसके बनाएं चित्र काफी अच्छे लगे ।
"कब काम शुरू कर रही हो इन चित्रों पर ?नील ने पूछा।
" आप जब कहे ।मैं चाहती हूं इन चित्रों को आपके मार्गदर्शन में पूरा करूँ। आप जैसी संवेदनाएं व्यक्त कर सकूं,आप की जगह ले सकूं।"
" नहीं एलिस !ईश्वर ना करें ऐसा हो ।तुम्हें क्या लगता है इस ऊंचाई पर पहुंच कर मैं बहुत खुश हूं ,सच्चाई इससे एकदम इतर है । निरुद्वेग जीवन ...निर्भीक ...निष्पंद.. अपनी मंथर गति से चलता जा रहा था। मैं नहीं समझ पा रहा था ये सागर की अचल गहराइयों में गोते लगाने जा रहा है, अन्यथा मैं भी इसके तारतम्य से संघर्ष करता। क्यों समेटता खुद को उसके बहूपाश में ?समझा था मेरी इच्छाओ.. मेरी आकांक्षाओ ने मेरे अस्तित्व को उम्दा जान मुझे शांत कर दिया है। यूं भी लंबे से स्याह जीवन की अनवरत श्रृंखला के बाद उजालों की यह पहली चकाचौंध थी ,जिसमें मैं अटक गया ।यह चमक मेरे संघर्षों की एक और कड़ी है। जीवन को उत्तरोत्तर ऊपर उठने के पीछे कितना नीचे जाना पड़ता है, यह मेरे अनुभव की और भी दारुण दास्तान है एलिस!तुम मेरी जगह लेने की कोशिश मत करना ।मैं नहीं चाहता ऐसी परिस्थितियां और किसी के साथ आए।
एलिस को लगा वह नील को पूर्णतया नहीं समझ पाई है।वह नील को जितना जानने की कोशिश करती है सहसा उतना ही अपरिचित होती जाती।यह सच है कि हर एक चेहरे के पीछे कहानी होती है ,लेकिन नील की तो हर भावना ...हर विचार के पीछे न जाने कितनी कहानियां छुपी है ।
नील सचमुच दुखी थे, एलिस को महसूस हुआ जॉन ही इनकी संपूर्णता है ,क्योंकि देखा था उसने जॉन के साथ नील का चहकना।
"सर मैं बाद में मिलती हूं।" उसने अपना हाथ नील के हाथ पर रखते हुए कहा ।
नील को लगा वह बिना वजह ही एलिस को बोर कर रहे थे,"तुम तो पेंटिंग के सिलसिले में आई थी, फिर इतनी जल्दी?"
" हां सर ,इससे भी जरूरी कोई काम याद आ गया । एलिस ने कहा और चल पड़ी। नील उसके ले-आउट्स देखने लगे।