भाग-22
शाम का समय था। नील कैनवास पर कुछ रेखाएं खींचते और मिटाते जाते। ऐसा लग रहा था जैसे विचारों के साथ हाथों ने भी साथ छोड़ दिया हो। गुस्से में उन्होंने कैनवास उठाकर जमीन पर पटक दी और आंखें मीच कर आराम की मुद्रा में बैठ गए। तनाव व हताशा के कारण उनकी शारीरिक क्रियाएं शिथिल सी पड़ गई थी। अचानक जैसे एक साए ने उनके कमरे में प्रवेश किया। उस स्याह से कमरे में जैसे सब कुछ उजाले में परिवर्तित होता जा रहा था। नील उठ बैठे।
नील उन्हें लगा जैसे कोई पुकार रहा हो ।आवाज़ जानी पहचानी सी लगी ।नील उसे पहचानने की कोशिश करने लगे। उनके मानस पटल पर उस आकृति की स्मृतियां उभर आई ।
"जेनी...! जेनी तुम...?" नील को एकदम से विश्वास नहीं हो रहा था।
" हां नील!"
उनके कानों में जैसे मधुर संगीत सा बज उठा।
" तुम अचानक कहां चली गई थी जेनी मुझे छोड़कर ?तुम से इतना भी ना हो सका कि मुझे बता कर जाती ?पता है मैंने तुम्हें पागलों की भांति न जाने कहां -कहां ढूंढा।"
" कैसे बताती, किस्मत ने मौका ही नहीं दिया। पापा के जाने के बाद अचानक में बीमार पड़ी तो फिर दोबारा न उठ सकी।"
" पर इतने दिनों बाद! अचानक जेनी?" नील ने पूछा ।
"तुम्हें परेशान देखा तो चली आई।"
" हां जेनी।"
जेनी के सहानुभूतिपूर्ण बोल ने नील के के दर्द को बाहर खींच दिया और वह दर्द आंखों से बाहर सरक आया।
" मैं ऐसा क्यों हूं जेनी? क्यों ईश्वर ने मुझे इतना निरीह, इतना भावुक बनाया? तुम तो जानती थी ना मुझे? बचपन में जब भी मुझे पिता की मार पड़ती तुम्हारे नन्हे हाथों का स्पर्श मेरी सारी पीड़ा हर लेता। कितना ख्याल रखती थी मेरा तुम। पर अब कोई नहीं है जेनी मेरे पास, मैं बिल्कुल असहाय।... अकेला ।अब तो ऐसा लगने लगा है मेरा कोई अस्तित्व ही नहीं ।जितने भी लोग मेरे पास आए सब ने मेरा भावनात्मक ढंग से प्रयोग ही किया पर जब मैंने उनसे कुछ चाहा तो वे साफ नकार जाते हैं ।"
"मैं जानती हूं नील। आज भी मुझे याद जब तुम छोटे थे तुमने कितनी कठिनाई से कुछ पैसे इकट्ठे किए थे पर रिनी ने तुमसे झूठा प्यार दिखा कर सारे पैसे ऐंठ लिए थे। और बाद में तुम्हारी बेज्जती भी की जबकि मैंने तुम्हें आगाह किया था। पर तुम जानते हुए भी अंजान बने रहे। तुमने तो जैसे बचपन से ही दूसरों के लिए जीना सीखा है। मुझे तो ऐसा लगता है जैसे यह दुनिया तुम जैसे लोगों के लिए बनी ही नहीं। खुद को बदलो नील, परिवर्तित कर लो खुद को ,क्योंकि परिवर्तन सृष्टि का नियम है।" जेनी ने समझाया ।
"परिवर्तन!.... हां तुम्हारे जाने के बाद तो मैं परिवर्तित हो ही गया था जेनी। प्रारंभ में यह परिवर्तन काफी बुरा लग रहा था मुझे। ऐसा लगता जैसे खुद को छोड़ आगे बढ़ता जा रहा हूं। यूं भी परिवर्तन हमेशा नई सृष्टि के लिए ही होता है अतः खुद के बदलाव को आत्मसात कर लिया था मैंने ।कभी-कभी ऐसा लगता मेरे परिवर्तन में सिर्फ विनाश है। भौतिकता की अंधी दौड़ में मैंने सब कुछ तो पा लिया था, पर जैसे मेरे अस्तित्व का ह्रास हो रहा था। मैंने खुद को संभालना शुरू किया, खुद को सृजित करने के लिए। वो विचार ...वे भावनाएं... मेरी आकांक्षाएं जो मेरी खुद की पहचान थी ,उन्हें मैंने समेटना शुरू किया ।ऐसे में मुझे जॉन मिला जिसने मेरे प्रयासों को और भी बल दिया ।सच मानो मुझे ऐसा लगने लगा जैसे मेरे चारों तरफ सिर्फ खुशियां ही खुशियां हैं ।....और मुझे चाहिए भी क्या था ,मेरी भावनाओं को थोड़ा सा आयाम।... अतः मैं जान की तरफ फिसलता चला गया। उसकी स्वर्णिम बातें, उसका अपनत्व ,उसका प्रेम! ऐसा लग रहा था जैसे मेरे जीवन में इससे पहले सुखद कुछ हुआ ही नहीं था! कभी-कभी तो मैं सोच में पड़ जाता कि विधाता इतने दिनों के दुखद पलों के बदले तो यह नहीं लौटा रहा। मुझे ऐसा लगता जैसे जेनी की तलाश जॉन पर आकर खत्म हो गई।.... पर नहीं... यह मेरा भ्रम था!... एक बार फिर से मैं टूट गया!"
" खुद को संभालो नील," जेनी बोली।
"पर कैसे जेनी..? क्या उस समय तुम संभाल पाई थी खुद को? और सच कहूं तो मेरी यह विवशता है जो मुझे तुम्हारी तलाश में यहां तक खींच लाई। समझ नहीं पाता था जीवन से मैं क्या चाहता हूं ,पर इस जीवन की तलाश तुम थी जेनी। हमारे अपरिपक्व प्रेम की तलाश ,उसकी पराकाष्ठा ।मैं भले ही उस समय इस गहराई को नहीं समझ सका ,पर जो कुछ भी था हमारा प्रेम ही था।"
" मैं समझती हूं नील, लेकिन फिर भी तुम्हारी तलाश तुम्हें क्या दे पाई ?क्या भटकाव से मुक्त हो सके तुम ?"
"पता है जेनी प्रेम का रास्ता ही काफी कठिन है !मैं रोक दूंगा उस तलाश को।" नील सोचने लगे जब उन्होंने जेनी से कहा था---" मैं बहुत आगे जाना चाहता हूं जहां से पीछे आने का कोई रास्ता ना हो। मैं चाहता हूं मुझे सारी दुनिया जाने ,मेरे ही बारे में बातें करें ,सबका ध्यान मुझ पर हो ,सब मुझे पहचाने और सिर्फ मुझसे प्रेम करें !"
जेनी ने कहा," मैं तुमसे प्यार करती हूं!"
" जानता हूं ....पर इतना ही काफी नहीं है मेरे लिए!"
इसी प्यार ने नील को अकेला कर दिया और इसी चाह ने उसे हर रिश्ते से दूर ।
".....पर अब मुझे कुछ नहीं चाहिए जेनी। हां संभाल लूंगा खुद को, पर तुम वादा करो दुबारा छोड़ कर नहीं जाओगी।" मैं जेनी के करीब पहुंचे ,उसे पकड़ने के लिए अपनी बाहें फैलाई पर वह गायब हो चुकी थी ।
"जे...नी... जेनी..." नील चिल्ला उठे ।"वापस आ जाओ जेनी.. वापस आ जाओ....!" नील दोबारा शिथिल हो गिर पड़े ।
जेनी नील के बचपन की साथी ।ऐसा लग रहा था जैसे 30 साल पहले की स्मृतियां नील के मानस पटल पर अंकित होती जा रही थी -----
"नील..., क्या हुआ नील?... तुम रो रहे हो? यह जेनी का स्वर था।" क्या तुम्हारे पिता ने फिर से तुम्हें डांटा?"
" हां ...!"उसने सुबकते हुए कहा।"... और मेरी पेंसिल भी तोड़ कर फेंक दी !..और यह देखो ...उसने हाथ में लिया हुआ कागज फैलाया।".. तुम्हारी पेंटिंग बनाई थी, उसे भी फाड़ डाला!... बहुत गंदे हैं वह!"
" अच्छा तुमने मेरी पेंटिंग बनाई थी? दिखाओ तो!" जेनी ने कागज उसके हाथ से ले लिया।".. अरे बुद्धू तुमने तो मेरे बाल छोटे-छोटे बनाए हैं, लड़कों की तरह! यह देखो मेरे बाल कितने बड़े हैं!" उसने उन्हें लहराते हुए कहा।
जेनी क्या तुम्हारे पापा भी तुम को मारते हैं ?"नील ने पूछा।
" नहीं तो ...अगर भी मारेंगे तो मम्मी है ना उन्हें डॉटने के लिए।"
" मम्मी बहुत अच्छी होती है ना जेनी ?"नील का मासूमियत भरा स्वर उभरा।" बहुत प्यार भी करती है वह ,आइसक्रीम और मिठाइयां भी खिलाती हैं .पर जानती हो जेनी मेरी मम्मी तो जीसस के पास चली गई ।मुझे पापा की पिटाई से कोई नहीं बचाता और कोई आइसक्रीम भी नहीं देता ।"नील रो पड़ा।
" अरे बुद्धू तुम रोने क्यों लगते हो ?मम्मी नहीं तो क्या हुआ मैं हूं ना। मैं खिलाऊंगी तुम्हें आइसक्रीम ...और मिठाईयां भी। अच्छा चलो मुस्कुरा दो।" जेनी उसे गुदगुदी करने लगी ।
नील हंस पड़ा उसके साथ जेनी भी खिलखिला उठी।
"नील मैं जाऊं?" अचानक वह बोली ।
"तुम चली जाओगी तो मैं फिर से रो दूंगा।" नील बोला ।"पता है जेनी तुम बहुत ही अच्छी हो ।तुम मेरे पास होती हो ना सब कुछ मुझे अच्छा अच्छा लगता है ।मम्मी की याद भी नहीं आती। पर जब तुम जाने लगती हो तो मुझे ना बहुत ही डर लगने लगता है, मुझे छोड़ कर तो नहीं चली जाओगी ?"नील मासूमियत से बोला।
" नहीं जाऊंगी बाबा।" जेनी उसका सिर सहलाते हुए बोली।
नील को उसका स्पर्श काफी सुखद लग रहा था ।वह जेनी के नजदीक सरकता जा रहा था ।
"जेनी तुम मेरा कितना ख्याल रखती हो !" उसने अपना सर जेनी के गोद में रख दिया और फिर उसके गालों को सहलाने लगा।
" एक बात कहूं जेनी? तुम्हारे चिक बिल्कुल तुम्हारे डॉल की तरह लगते हैं !..और तुम्हारे बाल भी !"
"तुम भी तो अपनी डॉल की तरह दिखते हो!" जेनी बोली।
" तुम्हें मेरी डॉल अच्छी लगती है?" नील ने पूछा ।
"हां !"
"और मैं जेनी?" नील की आंखों में चमक से उभरी ।
"नहीं..! तुम्हारे जैसा बुद्धू भी कहीं अच्छा लग सकता है?..... हमेशा रोनी-सी सूरत बनाए रहते हो।"
नील रुऑसा हो उठा ।
"अरे तुम तो फिर से रोने लगे! मैं तो मजाक कर रही थी!" जेनी अपने मोतियों जैसे दांत चमकाते हुए बोली।
नील वैसे ही रुआँसा खड़ा रहा।
" नील... नील मेरे पास आओ।" जेनी ने अपनी बाहें फैलाते हुए कहा ।
"नहीं आऊंगा, तुम भी जेनी ....!"वह आगे कुछ न बोल पाया।
" अच्छा बाबा माफ कर दो ,अब कभी भी तुम्हें परेशान ना करूंगी।.. सॉरी..!" जेनी ने कान पकड़ते हुए कहा। "आ जाओ।" उसने बाहें फैला दी ,नील उसके गले से लिपट गया।
" जेनी तुम ऐसा मजाक मत किया करो !एक तुम ही तो हो जिससे मैं अपना सब कुछ कह सकता हूं ,जो मुझे समझती है!" नील के शब्दों में करुणा थी और हृदय में अपार वेदना।
जेनी का दिल भर आया।
" नहीं नील... कभी नहीं... कभी कुछ भी नहीं कहूंगी ।"वह नील से लिपटती चली गई ।जेनी का सामीप्य जैसे नील के अधूरेपन की संपूर्णता थी। वह उसमें समाता चला गया ।उसके बालपन को जिस मजबूत संभल की जरूरत थी उसने जेनी के रूप में पा लिया था। वह जेनी में खोता जा रहा था। यह उसके भावनाओं के लिए सर्वप्रथम अनुभूति थी, वह उसके अधरों पर फिसलता जा रहा था। नील के नन्हें हाथ कब जेनी के वस्त्रों के पार जाकर फिसलने लगे वह नहीं समझ पाया। उसके लिए सब कुछ नया था। रोज से इतर एक अलग एहसास!... एक अनूठी और सुखद अनुभूति !..जो उसे खुद के दुख की सीमाओं से पार ले आया था। और जेनी जैसे उसके अभाव को आत्मसात कर उसे संपूर्ण बना रही थी।.... बिल्कुल निशब्द... चारों तरफ बस नीरवता थी ....एक अद्भुत शांति...!"
" जे...नी...." अचानक शांति को भंग करती एक कड़कड़ाती आवाज गूंजी। जब तक वह कुछ समझ पाती एक तमाचा उसके गालों पर आ लगा। सामने उसके पिता खड़े थे।
" समझ में नहीं आता तुम्हारे साथ क्या सलूक करूँ?" गुस्से से वे कांप रहे थे।" कितनी बार समझाया कि इस आवारा लड़के से दूर रहो, पर तुम....? और कमीने तू ...तेरी यह हिम्मत कि तुम मेरी बेटी के साथ ....?"आगे के शब्द उनके थप्पड़ो ने पूरे किए। नील कराता हुआ वहीं गिर पड़ा। जेनी तो जैसे एकदम से जड़ हो गई। भय के मारे उसे हिला नहीं जा रहा था. उसके पिता उसे घसीटते हुए ले जा रहे थे ।और नील को वह निरुद्वेग देख रही थी ।नील शांत ,अश्रुपूरित नेत्रों से जेनी को निहार रहा था।