थोड़ी ही देर बाद दोनों दुबारा जीसस की प्रतिमा के सामने खड़े थे। नील ने मन ही मन जीसस को धन्यवाद दिया और जॉन को खुद में समेट लिया, आजीवन खुद में आत्मसात करने के लिए। वह भी निस्पंद ,निःशब्द नील की गोद में समाता चला गया। नील ने महसूस किया जीसस ने
जैसे उन्हें एकाकार कर दिया हो एक दूसरे के लिए ।काफी देर तक दोनों वैसे ही पड़े रहे।
नील जब चर्च से बाहर निकल रहे थे तो चेहरे पर एक अनोखा भाव था और हृदय में असीम शांति। जो मूर्तियां या पेंटिंग्स मात्र उनके लिए सजावटी चीजें थी उनके प्रति
श्रद्धा सी हो गई ।एक बार फिर से उन्होंने जीसस को धन्यवाद दिया और वापस चल पड़े।
' तुम्हें पता है जॉन, परमात्मा के प्रति कभी भी आज जैसी श्रद्धा मेरे मन में नहीं रही।'
'क्यों सर? जॉन ने खिड़की की तरफ से नील की ओर घूमते हुए कहा ।
'अपने अनुभव के कारण जॉन! जिसमें सिर्फ कड़वाहट ही कड़वाहट है। कुछ दर्द तो ऐसे मिले जो हमेशा के लिए जीवन में चुभ से गए।जीवन इन से डरता या प्रेरणा लेता मैं समझ नहीं पाता ।कभी यह सोचता कि उन्होंने मुझे भविष्य के लिए सचेत किया ,पर क्यों ?यह अच्छे भी तो हो सकते थे? अच्छाइयां भी तो जीवन प्रभावित करती हैं हमें। जीवन में नैराश्य भरता ही रहा!... भरता ही रहा !..पर फिर भी इसकी अधिकता विचलित नहीं कर पाई मुझे ,नहीं छीन पाए इस नील का अमरत्व। तुम ही बताओ जॉन क्या करता मैं?क्या ये ईश्वर का मेरे प्रति अन्याय नहीं? ईश्वर यह बर्ताव बार-बार मेरे साथ ही क्यों करता रहा ?क्यों थकाता रहा जीवन से ?यह कड़वाहट.... यह दंश... मैं ही क्यों झेलता रहा?मैंने तो कभी कोई अपेक्षा भी नहीं रखी शिवाय इंसानियत के, मानवता के। सोचता हूं गलती उसकी भी नहीं ,शायद समय ने अतुल्य और अनमोल चीज ही खत्म कर दी ।कैसे मिलता वो? अकेला मै अच्छाइयों को पिरोते पिरोते न जाने स्वयं को कहां खो बैठा? पर अब तुम्हारे माध्यम से स्वयं को ढूंढना चाहता हूं ।स्वयं की तलाश में अकेला बैठा था तो राहे जैसे धूमिल सी होने लगती पर तुम्हें पाकर ऐसा लगता है जैसे स्वयं का वजूद तलाश लूँगा।
जॉन हैरत से नील को देख रहा था।
'क्या हुआ ?'नील ने पूछा।
'कुछ नहीं सर, मैं यह सोच रहा था आप जैसे सुलझे इंसान को भी समाज से शिकायत है?'
' मुझे समाज से शिकायत नहीं है जॉन ।...शिकायत है उसके मापदंडों से ...उसकी स्वार्थपरता से ।कभी-कभी सोचता हूं जिन मापदंडों को लेकर विधाता ने इस सृष्टि की रचना की होगी समाज ने न जाने क्यों उन्हें भुला दिया ।यह सब देखकर उस परमात्मा को भी तकलीफ होती होगी। ऐसा लगता है जैसे सब के सब एक दूसरे को रौदतें हुए आगे निकल जाना चाहते हैं। किसी को भी किसी के दुखों से कोई वास्ता ही नहीं, कितना भयावह लगता है सब कुछ!'
जॉन के चेहरे पर तरह-तरह के भाव आ -जा रहे थे ।
'क्यों सर? ऐसा क्यों होता है ?कितना जीता है इंसान? महज 60... 70 साल ही न।पर इतने ही दिनों में इतना सब कुछ....! यह भयावहता .....!यह लूट -खसोट... मार-काट! उसे पता नहीं यहां सब कुछ भ्रम है ?....और फिर जीवन के यह साल भी तो निश्चित नहीं। ना जाने कौन सा अगला पल उसे हमेशा के लिए सृष्टि से दूर कर दे।जब ईश्वर ने सृष्टि की रचना की होगी क्या सपने में भी ऐसा सोचा होगा ?'
'नहीं जॉन, आज जैसी स्थिति की कल्पना भी नहीं की होगी। कितनी श्रद्धा के साथ रचना की होगी इस सृष्टि की.... पहले पृथ्वी का निर्माण हुआ होगा। फिर उसकी संपूर्णता के लिए उस परमात्मा ने अनेक रचनाएं की।... पहाड़ बनाए ...उस पर कल कल करती नदियों की स्वर लहरियां बिखेरी.... समंदर उकेरे... पेड़ खड़े किये होंगे... फूलों की वर्षा हुई होगी.... तितलिया उड़ाई होगी.... पशुओं की गर्जना बनाई तो कोयल की कू भी सुनाएं.....। फिर भी उस परमात्मा ने कुछ कमी महसूस की... उसने अपनी सबसे महत्वपूर्ण रचना निसृत की- मानव!जो की खुद उस आध्यात्मिक सत्ता का प्रतिरूप बना...उसके नजदीक था।... उसके जैसी रचनाएं कर सकता था ।उसके अंदर उन्होंने... सत्य ...दया... प्रेम जैसी दैवीय भावनाएं भरी। वह हंसता था... गाता था.... खिलखिलाता था ।...और दूसरों को दुखी देखकर रोता भी था। वह सब की संवेदनाएं समझता था ।....उसके अंदर अभिलाषाएं थी.... इच्छा थी ....आकांक्षाएं थी ।वह सृष्टि के विकास में परमात्मा की मदद करने लगा ।पर जैसे जैसे वह विकसित होता गया खुद की वास्तविकता भूल गया !....भूल गया वह उस आदि सत्ता .....उस परमात्मा को ।जिसने उसकी सृष्टि की थी।.... उसके उपरोक्त गुण भी उससे दूर होते चले गए !और आज तुम देख ही रहे हो परिस्थितियां कितनी बिगड़ चुकी है!'
'हां सर, इसीलिए तो कभी कभी खुद को इंसान कहते हुए भी शर्म सी आती है! ऐसा कब तक चलेगा सर ?'
नील अनुत्तरित थे।
'मैं जानता हूं इस सवाल का जवाब नहीं दे सकता ।मैं क्या.... इन परिस्थितियों में इस प्रश्न का उत्तर हो ही नहीं सकता।.... और अपने प्रश्न से जॉन ने इस सृष्टि के जिस भयानक सत्यता का खाका खींचा था, डरा देने वाला था। नील के चेहरे पर अजीब से भाव दिखाई दे रहे थे। वे सोचते हुए कुछ ढूंढने के लिए अपने विचारों में खोते जा रहे थे ।
'सर अगर हम इन परिस्थितियों को बदलने की कोशिश करे तो ?'....उसके चेहरे पर दृढ़ता थी।... क्या स्थितिया ँ तब भी नहीं बदलेगी?'
' बदलेगी जॉन.... जरूर बदलेगी ।नील ने शांत शब्दों में कहा। कितना विद्रूप हो गया है सब कुछ !....स्वाभाविकता.... सहजता... मौलिकता ...?इंसानी जीवन के मूल यही है न पता नहीं क्या होता जा रहा है सृष्टि के इस अनमोल कृति को? सब कुछ जैसे सिमटता जा रहा है । समेट लिया है उसने अपने आप को कृत्रिम से विकृत आभामंडल के अंदर। भावनाएं.... संवेदनाएं.... सब कुछ दम तोड़ते नजर आ रहे हैं।
'जॉन ने नील को एक नई सोच के लिए प्रेरित कर दिया था। सर्वथा नवीन! नील को खुद के अभावो... दुश्चिंताओं से दूर हटने का एक नया तरीका भी ।
'जॉन की इन बातों ने मुझे कुछ करने की प्रेरणा दी। भौतिकता से सर्वदा इतर... सच्चे अर्थों में मानवता की प्राप्ति।... जिन तथ्यों हेतु ईश्वर ने हमारी रचना की। सोचते नील के चेहरे पर एक दैवीय आभा- सी फैलती जा रही थी। जॉन के रूप में उन्होंने एक सहयोगी भी पा लिया था। वे जानते थे यह एक आसान कार्य ना था पर नामुमकिन भी तो नहीं था... और न ही इंसानी जीवन को सफल बनाने हेतु इससे अच्छा कोई कार्य था।
सामने जॉन का गैराज दिखाई दिया। नील ने गाड़ी की रफ्तार कम कर दी।
' जा रहा हूं सर।' जॉन ने गाड़ी से उतरते हुए कहा।
नील ने स्वीकृति में सिर हिला दिया और गाड़ी की रफ्तार को तेज कर दिया।
' अरे जॉन कहां चला गया था तू ?यह जान के साथी हैरी की आवाज थी ।
'चर्च गया था, नील सर साथ।' जॉन ने बताया ।...बहुत अच्छे हैं न सर !वे तुझे प्यार भी बहुत करते हैं ।'गैराज के अन्य लड़के भी उसे घेर चुके थे ।
'हां हैरी, सचमुच महान हैं वे !बच्चों से भी मासूम! तुम्हें पता है हैरी ....कहते हैं ईश्वर दिखाई नहीं देता, मैंने देख लिया ।यह न सोचना वे मुझे बहुत ज्यादा प्यार करते हैं इसलिए कह रहा हूं।... नहीं सचमुच उनकी भावनाएं सिर्फ मेरे लिए नहीं.... वरन संपूर्ण सृष्टि के लिए हैं ।वह भी तब जबकि सृष्टि ने उनसे सिर्फ छीना ही है।'
' सही कहा जॉन। नहीं तो 1 दिन में न जाने यहां कितने ग्राहक आते हैं, लेकिन सभी ने हमें भी गाड़ियों का एक पार्ट ही समझा पर नील सर......काश दुनिया ऐसे ही लोगों से भरी होती।' हैरी के चेहरे पर शिकन थी ।
तभी एक आदमी गाड़ी लेकर आता दिखाई पड़ा।हैरी उसकी तरफ मुड़ गया। कुछ देर बाद जॉन भी गाड़ियों के कल -पुर्जे खोलने में व्यस्त था।