नील आए यूं ही खाली से बैठे ना जाने क्यों उदास से दिख रहे थे। ऐसा लग रहा था जैसे वह चाहकर भी खुशियां महसूस नहीं कर पा रहे थे। सब से अलग थलग! एक तो उदासियां!... उस पर मौसम!... न चाहते हुए भी दिल रुआसा हो उठता। बारिश की नन्हीं बूंदे यादों को और भी उकसा रही थी। जाहिर है उन यादों में जॉन का अस्तित्व ही ज्यादा था। काफी दिन हो चुके थे नील को उससे मिले। न जाने वह नील को बिना बताए कहां चला गया था।
" गलती मेरी ही थी ,मुझे उसके साथ ऐसा नहीं करना चाहिए था। अब तो वह बच्चा रहा नहीं।" नील सोचते जा रहे थे ।"पर मैं क्या करूं !वह मेरे पास होता है तो मेरा खुद पर नियंत्रण ही नहीं रहता ।वह जैसे मेरे लिए अभी बच्चा ही है। काश वह मुझे समझ पाता। उसका साथ ,उसका सानिध्य, उसकी चंचलता, न जाने क्यों विचलित कर देती है मुझे ।यह क्या है? यह कैसा आकर्षण है? यह कैसा खिंचाव है? समझ में नहीं आता!"
जॉन उस दिन जैसे ही आया शरारत शुरू कर दी। आते ही उसने अपने हाथों से नील की आंखों को ढक लिया। न जाने कैसा रोमांच हो आया उनके पूरे वजूद में ।एक सिहरन सी दौड़ गई उनके पूरे जिस्म में। खुद को छुड़ाते हुए जॉन से दूर हट गये। उनके इस अप्रत्याशित ढंग से हटने पर जॉन आश्चर्यचकित होते हुए बोला-" क्या हुआ सर, आप डर तो नहीं गए ?उसके शब्दों में उसकी खिलखिलाहट साफ नजर आ रही थी।
नील ने कुछ जवाब नहीं दिया वरन उसकी तरफ देखते रह गए। जॉन के चेहरे पर अभी भी शरारत तैर रही थी ।
'सही कहा ना मैंने? आप डर गए थे न!'
नील बिना किसी प्रतिउत्तर के उसकी तरफ बढ़े और उससे लिपट कर उसे बेतहाशा चूमने लगे। वह कसमसाते हुए खुद को छुड़ाने की कोशिश करने लगा ,पर नील उससे लिपटे रहे। न जाने क्या हुआ जॉन को, उसने प्रतिरोध करना छोड़ दिया। नील उसके प्रतिरोध ना करने को उसकी रजामंदी मान उसे आहिस्ता आहिस्ता चूमते रहे। कुछ पल बाद जब वह स्थिर हुए तो देखा जॉन गुमसुम सा उनकी तरफ देखे जा रहा है। नील कुछ देर तक यूं ही उसके पास बैठे रहे।
' कुछ खाना चाहोगे ?'उसकी नाराजगी दूर करने के लिए उन्होंने पूछा।
जॉन कुछ ना बोला बस उन्हें निहारता रहा।
'नाराज हो गए मुझसे? नील ने उसे मनाने के ध्येय से पूछा। माफ कर दो मुझे। उन्होंने कान पकड़ते हुए कहा।
पर उसके व्यवहार में जरा भी तब्दीली नहीं आई ।
..जॉन मान जाओ, कुछ बोलो तो सही ।... नील ने लगभग गिड़गिड़ाते हुए कहा।
अचानक वह उठा और बाहर निकल गया ।उसे रोकने के लिए नील चिल्लाते रहे पर उसने अनसुनी कर दी।
' जान तुम मुझे गलत मत समझो ,वापस आ जाओ।... मैं ऐसा कुछ नहीं करूंगा जो तुम्हें बुरा लगे ।'
पर उसे रुकना नहीं था, तो नहीं रुका। नील को खुद पर गुस्सा आ रहा था।
" मैंने उसके साथ ऐसा क्यों किया !...पर मैं करता भी तो क्या?... न जाने मेरा खुद पर से नियंत्रण क्यों खत्म हो गया था !... नील खुद पर झल्लाते हुए बिस्तर पर निढाल होकर गिर पड़े ।रह रह कर उन्हें जान पर भी भी गुस्सा आ रहा था। उन्होंने मन ही मन निश्चय किया ..... रूठना है तो रूठे मैं नहीं जाऊंगा मनाने।' सोचते नील को न जाने कब नींद आ गई।
'नहीं... मैं झूठ नहीं कहूंगा ...सब कुछ अप्रत्याशित नहीं था जॉन। इसमें तुम्हारा आकर्षण शामिल था! पर सच मानो तुम मेरी जरूरत बन गए थे ...तुम्हें लगता है बिना किसी आत्मीयता... बिना किसी लगाव के मैं तुम्हारे इतना करीब........? सच कहूं तो जॉन तुम्हारे चले जाने से लग रहा था मैं फिर एक बार अपनी जिंदगी खो रहा हूं ।'
खामोश- सा जॉन नील की बातें सुन रहा था ।
नील डर रहे थे कि कहीं वास्तविकता से इतर वे फिर से ना उलझ जाए।
"उसे मैं अंधेरे में नहीं रखना चाहता ,पर यह शायद मेरे सोचो का भ्रम था।उफ मैं कहां उलझता जा रहा हूं !नील ने जैसे खुद को दिलासा दिया।...... शायद खुद में ।...शरारती न जाने क्यों वह मुझसे समझना तो चाहता है, पर समझ नहीं पाता !...वह अपनी सुनाता है ,मैं अपनी ।..वे खुद से बातें करने लगे।.... क्या करूं जॉन ?....कभी-कभी तो जैसे मैं खुद को ही नहीं समझ पाता!.... तुम समझते हो मैं ऐसा जानबूझकर करता हूं ?...पर मैं?..." नील के शब्द जैसे थम से गए ।
'नहीं ....यह बचपना मुझे छोड़ना ही चाहिए !पर मै इसे छोड़ कर कहीं खुद ही समाप्त न हो जाऊं !...कैसे कैद करूं खुद को सिसियरिटी के झूठे आभामंडल में?... बताओ जॉन ?....मेरे जीवन का सार है प्रेम.... निश्छलता.... बचपना.... जिसे मैंने हमेशा खोया है ।....मैं उसे गर पाना चाहता हूं तो ?....अपना अस्तित्व बचाना चाहता हूं तो ?....क्या मैं भूल जाऊं खुद को ?मैं जानता हूं तुम इससे परेशान होते हो,पर पर मैं क्या करूं?डर तो लगता ही है इन संबंधों से, पर क्या तुम चाहोगे मैं खो दूँ खुद को?'
जॉन जैसे चेतना- शून्य स्तब्ध- सा नील की बातें सुन रहा था।
'ना जाने तुमसे कौन सा लगाव है !...संबंधों की बात करें तो हमेशा मैंने तुम्हें अपने नजदीक पाया ....एक अच्छे मित्र की भांति। ....गर मैंने तुम्हें सहारा दिया तो क्या तुम मेरा साथ न दोगे?.... मैं तो जैसे तुम आश्रित हो गया हूं।... तुमने ठीक ही कहा था.... मैं सचमुच पागल हूं जॉन!... वरना यह सब क्या और क्यों होता? ....काश तुम मुझे समझ पाते !...खैर मैं कोशिश करूंगा।.... बदलूंगा अपनी भावनाएं ....समेटूंगा अपने विचार ताकि तुम्हें परेशानी ना हो ।...सच कहता हूं जॉन ...हां जॉन... पर मुझे छोड़कर मत जाना।.... रुक जाओ जॉन .....जॉन... नील चिल्ला उठे ।अचानक उनकी नींद खुल गई ....पूरे शरीर पर पसीने की बूंदें चूहचूहा आई थी।
"उफ!कितना भयानक स्वप्न था। जॉन ऐसा नहीं कर सकता। नहीं जा सकता वह मुझे छोड़कर! नील ने खुद को संयत करने के लिए आंखे बंद कर ली ।पर स्वप्न की भयावहता उन्हें अब भी डरा रही थी।...... अगर सचमुच ऐसा हो गया !उफ सोचना ही कितना दुष्कर है !
नील ने घड़ी पर नजर दौड़ाई ,सुबह होने में काफी समय था। सामने रखा पानी का गिलास उठाया और एक ही बार में पूरा गिलास खाली कर दिया। अब धड़कने कुछ सामान्य हो गई, सामने पड़ी जॉन की पेंटिंग को उन्होंने निहारा और दोबारा सोने की कोशिश करने लगे ।
नील सुबह जगे तो सूरज का काफी चढ़ आया था ।वह जल्दी से तैयार हुए ।उन्होंने एक कला समीक्षक से मिलने जाना था। कल की घटना आज भी उन पर हावी थी ।न जाने क्यों जॉन का रुठा चेहरा उन्हें याद आ जाता ।
"मैं जानता हूं ,मैं अपने निश्चय पर अडिग नहीं रह सकता! यू भी गलती मेरी थी.... उस मासूम का दिल मैंने दुखाया था। सोचते-सोचते नील कब उस कला समीक्षक के घर पहुंच गये पता ही नहीं चला।
' हेलो मिस्टर नील, लगता है आप कहीं खोए हुए से हैं ?'
'ओह !हाय मिस्टर बनार्ड, मैं माफी चाहता हूं ।वह क्या है कि.......
..... इसमें माफी की क्या बात है, जो हमेशा विचार- मग्न ना हो वह आर्टिस्ट ही क्या? बनार्ड ने नील की बात काटते हुए कहा। उन्होंने इस अंदाज से यह बात कही नील भी उनके साथ हंस पड़े ।
'क्या लेंगे आप ?'
नील ने कॉफी का नाम लिया और बातों में व्यस्त हो गए।
वहां से नील नहीं लौटे तो शाम हो चुकी थी। कपड़े बदले और अखबार के पन्ने पलटने लगे ।थोड़ी देर तक सामान्य रहे पर जैसे ही अखबार से ध्यान हटाया कि जॉन ने विचारों में दस्तक दी।
"मैं भी देखता हूं कि वह कितने दिन तक मुझसे दूर रहता है?' नील ने सोचा कि गैराज पर उसे देख आऊँ।थोड़ी देर बाद वह गैराज पर थे ,पर वह वहां नहीं दिखाई पड़ा ।उसके साथियों से पूछा ,उन्होंने बताया वह कल से ही नहीं आ रहा है ।नील को चिंता हो आई। वे उसके घर की तरफ गए ,वहां भी कोई ना मिला। नील की बेचैनी बढ़ती जा रही थी ।
'ओह जॉन !तुम मुझे बिना बताए कहां चले गए ?यह भी ना सोचा कि बिना तुम्हारे मेरी हालत क्या होगी!' उन्होंने गाड़ी वापस घर की तरफ मोड़ दी। ....काश तुमने मेरे लिए थोड़ा सा भी सोचा होता कि बिना तुम्हारे क्या हालत होगी मेरी ।...तुम्हें कैसे बताऊं जीवन ने मध्दम ही सही, पर तुम्हारे आने से सरहदों को तोड़ना प्रारंभ किया था ।....वरना अतीत के बनाए हुए मेरे मानसिक स्थितियों ने मुझे डराए रखा था।.... उन विपरीत परिस्थितियों से ऊपजी मानसिकता से थकता गया था मैं ।....तुम्हारे आने से कुछ सुधार हो रहा था मेरे जीवन मे। .....कुछ......अद्भुत .....कुछ...अभूतपूर्व .....प्रभावित हुआ है मैं तुमसे।... शरारत... नहीं ....नहीं ....बचपना यही तो महसूस करता था मैं खुद का तुममे।पर जैसे तुमने इसे भी दूर कर दिया मुझे। तुम्हारा कुछ पलों का बिछड़ना तो स्वीकार है मुझे ।पर इस तरह रूठ कर चले जाना ....!डर सा लगने लगा है जॉन!