'ये क्या!... आप इस तरह बेतरतीब... घबराए हुए से? कहीं कुछ हुआ तो नहीं?' उसने जानना चाहा।
'हां... हुआ है... पर मैं तुम्हें बताना नहीं चाहता। समझ में नहीं आ रहा था मैं कैसे प्रतिक्रिया व्यक्त करूं। उलझता ही जा रहा था मैं अपने आप में ।मैं कैसे बताऊं तुम्हें ?नील ने देखा जॉन उनकी तरफ निरिहता से देखे जा रहा है।
"सर प्लीज".... उसकी आंखों में आंसू भर आए।
वह भी नहीं रोक पाए खुद को, भरी हुई आंखों से अपनी बाहें फैला दी उन्होंने।.." जॉन".... उनकी भर्राती आवाज सुनाई पड़ी।
जॉन उनकी गोद में समाता चला गया।
'आपसे एक बात कहूं सर ?'उसने सिर उठाते हुए कहा ।...'आप पर गुस्सा जरा भी अच्छा नहीं लगता!'.. उसके चेहरे पर मुस्कुराहट तैर रही थी।
"शरारती".... नील ने उसे पकड़ना चाहा पर वह दूर निकल चुका था।...' तुम कभी नहीं सुधरोगे !.....जॉन के साथ उसकी खिलखिलाहट दूर तक फैलती चली गई।
'सर, अब मैं जाऊं?' जॉन ने धीरे से कहा।
'इतनी जल्दी !'....जाओ.... नील के चेहरे पर फिर से सिलवटें उभर आई। जॉन ने उनकी तरफ देखा और शांत हो गया।
'अब जाते क्यों नहीं... खड़े क्यों हो गए?' नील के शब्दों में खीझता थी।
'नहीं जाऊंगा मैं,... आप तो ......उसने वाक्य अधूरा छोड़ दिया।... उसने जिस मासूमियत से यह शब्द कहे नील अंदर तक आद्र हो उठे। वे जॉन में सिमट आये और उसे बेतहाशा चूमने लगे।
'मैं क्या करूं जॉन?.... क्या करू मैं ?...उनके ना चाहने के बाद भी अंदर की आद्रता आंखों के रास्ते बाहर निकल पड़ी।
जान आश्चर्य से उन्हें देखे जा रहा था ,...."सर आप रो रहे हैं!"
'मैं क्या करूं जॉन ....मुझे समझ में नहीं आता।... तुम समझते हो मैं सब जानबूझकर करता हूं?... नहीं जॉन पता नहीं क्या होता जा रहा है मुझे!... ऐसा लगता है जैसे कोई तुम्हें मुझसे छीन रहा है।.... तुम मुझे भुला दोगे ना जान?'
जॉन के लिए सब कुछ आश्चर्य से भर देने वाला था। वह नील के चेहरे पर आते जाते भाव भंगिमा को पढ़ने की कोशिश कर रहा था।....' आप खुद को संभालिए सर ....आप तो जैसे मुझसे भी बच्चे हैं !.....जॉन का हाथ उनके सिर को सहला रहा था।
'तुम जैसा सोचो जॉन.... पर अब मेरा नियंत्रण खुद से हट चुका है।.. अच्छा तुम जाओ, काफी देर हो चुका तुम्हें ।'नील ने खुद को संयत किया।
शाम को आने को कह वह मृग-शावक की भॉति कुलाचे भरता हुआ आंखों से ओझल हो गया। नील को उसका जाना बुरा लग रहा था ,पर उस नन्हें की अपनी मजबूरियां थी और नील स्वार्थी नहीं बनना चाहते थे।
नील एक अधूरी पेंटिंग में खो गए ।समय ने कब खुद को समेट लिया नील को आभास तक नहीं होता अगर घड़ी ने अपना घंटा ना बजाया होता ।शाम हो चुकी थी नील की आंखें पेंटिंग छोड़ जान के रास्ते पर टिक गई।
नहीं आया वह... नील ने सोचा हो सकता है कोई काम निकल आया हो।... जैसे खुद को तसल्ली दे रहे थे। नजरें फिर से पेंटिंग पर टिका दी।... समय का आहिस्ता -आहिस्ता खिसकना जारी था. झुंझलाहट के भाव उनके चेहरे पर साफ नजर आ रहे थे।... अगर नहीं आना था तो उसने मुझसे कहा क्यों ?...उनके हृदय का कोई कोना उसकी गवाही कर रहा था..... हो सकता है उसके पास कोई काम निकल आया हो।
धीरे-धीरे सूर्य अपनी सारी रश्मिया समेटकर गायब हो गया। पर जॉन को नहीं आना था, सो नहीं आया ।नील का तो जैसे बेचैनी के मारे बुरा हाल हो रहा था ।रात हुई सारी प्रक्रियाओं के बाद वह बिस्तर पर पहुंचे, पर आंखें जैसे अभी भी कुछ देखना चाहती थी।..... कैसे सो सकता हूं मैं !.....जॉन तुम क्यों नहीं आए?.... उनके चेहरे की रेखाएं झल्लाहट को साफ प्रकट कर रही थी ।उन्होंने आंखें बंद की ,सामने वही शरारती मुस्कुराता हुआ था जैसे उन्हें चिढ़ा रहा हो......क्यों सर कैसे लगा.....? अनायास ही जॉन के इस अदा पर उनके होठों पर मुस्कुराहट की रेखाएं और खींच गई। मुस्कुराहट ने बेचैनी को परे धकेला तो जैसे नींद भी आ गई ।...पर वह तो जैसे रात भर ....उनके सपनों में भी। ....ओह जॉन.... !नील ने आंखें मिच ली।
सुबह नींद खुली तो सूर्य अपनी किरणों धरा पर बिखेर चुका था ।नील तैयार होने लगे, नील के चित्रों की प्रदर्शनी होने वाले थी और तैयारियां अभी भी अधूरी पड़ी थी। नील ने जॉन को उसके घर पर पता किया ,वह नहीं मिला। उन्हें गुस्सा आ रहा था जॉन पर ।आर्ट गैलरी पहुंचे तो सारे लोग आ चुके थे। इंतजार था तो बस मुख्य अतिथि का। पर नील के लिए जैसे कोई दूसरा ही महत्वपूर्ण था ।दर्शकों के बीच खुद को संयत रखे वह नजरें एक बार जरूर रास्ते की तरफ घुमा लेते। मुख्य अतिथि आ चुके थे, उद्घाटन के बाद लोग पेंटिंग की तरफ मुड़ चुके थे। नील मन ही मन गुस्सा थे। गैलरी से बाहर निकले। उस समय उन्हें अपनी पेंटिंग के प्रति लोगों की प्रतिक्रियाओं से कोई मतलब नहीं था। उन्हें तो सिर्फ जॉन का इंतजार था ।उन्होंने देखा जॉन मायूस सा चला आ रहा है।
'क्या हुआ जॉन.....! तुम इस तरह?...' जॉन के पास आते ही उन्होंने पूछा।
'कुछ नहीं ...कुछ भी तो नहीं सर.... उसने बात टालनी चाही।.... आइए पेंटिंग देखते हैं, लोग आपका इंतजार कर रहे हैं।'
नील को अपनी गलती का एहसास हुआ। वे वापस अंदर आए, साथ में जॉन भी था।
'अरे मिस्टर नील कहां चले गए थे आप?.... एक व्यक्ति उनकी तरफ मुड़ा।
' मैं आपकी इस पेंटिंग के विषय में जानना चाहता था ।'...उसने सामने की दीवार पर टंगी पेंटिंग की तरफ इशारा किया, नील उस पेंटिंग पर पर चर्चा करने लगे। जॉन बाकी लोगों की तरह पेंटिंग देखने में व्यस्त हो गया।
समय काफी बीत चुका था ,ज्यादातर लोग जा चुके थे या जाने की तैयारी कर रहे थे। थोड़ी देर बाद नील जॉन को छोड़ने जा रहे थे।
'क्या हुआ जॉन ?'....उन्होंने दोबारा पूछा।
वो कुछ बोला नहीं, चेहरा नील की तरफ घुमाया ।उसकी आंखों में आंसू थे।
'तुम कुछ बताते क्यों नहीं?' नील के शब्दों में भावुकता थी।
'सर आप तो जानते हैं मेरे अंकल को..... वह रो पड़ा ।...'उन्होंने मुझे मारा!'
नील ने उसके सिर पर हाथ रखा, वह उनसे लिपट आया और फफक उठा।