आज जॉन को नील से मिले कई दिन बीत चुके थे। नील काफी बेचैन थे ।उन्होंने पता किया वह ,बीमार था। नील उससे मिलने घर पहुंच गए ।नील ने देखा, जॉन उन्हें वहां देख कर बहुत खुश था।
'सर आप!' वह बिस्तर से उठते हुए बोला। उसकी खुशी का पारावार न था।
' लेटे रहो।' नील ने मना किया। 'तुम मुझे खबर नहीं कर सकते थे?' उन्होंने डांटा।
' आप यूं ही परेशान होते सर, वैसे भी मुझे कुछ हुआ थोड़े ही है। थोड़ा सा थकान जैसा हो गया था ,आप मेरे लिए बेवजह परेशान हुए।' जॉन ने कहा ।
'तुम नहीं जानते जॉन ,तुम्हारे पास आना मेरे लिए परेशानी नहीं वरन एक सुखद अनुभूति है।'नील ने मन ही मन कहा। 'शायद खुद के प्रति मेरे प्रेम को तुम समझ ही नहीं पाए!.... तुम्हारे अंकल नहीं दिखाई पड़े ?उन्हें तुम्हारी देखभाल के लिए होना चाहिए था।' उन्होंने कहा।
जॉन शांत रहा।
' तुम चलो मेरे साथ।' नील का दम उस अंधेरे कमरे में घुटता सा प्रतीत हुआ।
' कहां?' उसने पूछना चाहा।
' मेरे घर'
' सर मैंने बताया न, मैं ठीक हूं ।वैसे भी रही सही बीमारी भी आपको देखकर ठीक हो गई।'
' मैं कह नहीं सकता, उसके शब्द ने मुझे प्रफुल्लित- सा कर दिया ।'मुझे बहला रहे हो जॉन? नील ने पूछा ।
'नहीं सर, मुझे सहसा विश्वास नहीं होता कि आप मेरे घर आए हैं !'
नील उसके लिए कुछ फल आए थे। वे जॉन को अपने हाथों से खिला रहे थे। वह अश्रुपूरित नेत्रों से उन्हें देख रहा था। थोड़ी देर बाद नील वापस लौटने लगे,जॉन उन्हें छोड़ने बाहर तक आया ।
'जॉन'.......नील ने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा।
'हाँ सर'
' कुछ नहीं' उन्होंने आंखें बंद कर ली जैसे कुछ महसूस करना चाहते हो ।नील बाहर निकल आए, देखा तो मोहल्ले के सारे बच्चें उनकी गाड़ी को घेर कर खड़े थे ।कुछ उसे निहार रहे थे, कुछ उसे छूने की कोशिश में थे। जैसे ही उन्होंने नील को देखा सहमकर सारे के सारे किनारे खड़े हो गए।
'सारे लोग इधर आओ।' नील ने उन्हें बुलाया ।
वे आश्चर्य से कभी नील को देखते, कभी एक दूसरे को!
' अरे आओ ,डरो नहीं।' नील ने दोबारा उन्हें अपनी तरफ बुलाया ।उनमें से ज्यादातर फटे कपड़ों में लिपटे थे। यूं भी इस बस्ती में ज्यादातर मजदूरों जैसे लोग जैसे ही रहते थे। जिनका दिनभर की मजदूरी से पेट तो भरा जा सकता था पर बाकी जरूरतों के लिए उन्हें सोचना पड़ता ।और स्कूल तो शायद इन बच्चों ने देखा ही नहीं था । बच्चों में लोगों को पहचानने की अद्भुत क्षमता होती है। उन्होंने अपने प्रति नील में छुपे ममत्व को भाप लिया । एक एक करके सारे नील के पास पहुंच गए।
' गाड़ी में घूमना है?'नील ने चेहरे पर मुस्कुराहट लाते हुए कहा।
' हां'उनमें से एक ने स्वीकृति में सिर हिलाया । उसके साथ सब हां में हां मिलाने लगे।
'अंदर आ जाओ।' नील गाड़ी का दरवाजा खोलते हुए कहा।
8-10 बच्चे थे, सब एक दूसरे पर लद से गए ।नील गाड़ी को मोहल्ले से बाहर ले आए। वहां एक छोटा सा मैदान था जो उनके सामाजिक कार्यों का कार्य स्थली भी था। उनके उत्सव इत्यादि जैसे कार्य वही निपटाए जाते थे। नील गाड़ी को वहीं गोल गोल घुमाने लगे। बच्चों की खुशी का पारावार न था ।सब खुशी के मारे चीख रहे थे और उनके साथ नील भी बच्चा बने हुए थे ।उनके खुश चेहरों को देखकर वे हुलस उठते।
उनकी इन खुशियों में मेरी स्वार्थ पूर्ति थी !खुद के बचपन की आकांक्षाओं की प्यास को मै इनकी खुशियों से संतुष्ट कर रहा था। नील उन्हें छोड़ने वापस गली में आए। सारे बच्चों के चेहरे खिले हुए थे ।कुछ घरों की स्त्रियों उन्हें आश्चर्य से निहार रहे थी। जॉन अपने दरवाजे पर खड़ा नील को एकटक देखे जा रहा था।उसके चेहरे पर भी संतुष्टि के भाव थे ।
'क्यों जॉन तुम भी घूमना चाहोगे ?'नील ने हुए कहा ।
जवाब में वह सिर्फ मुस्कुरा रहा था।
' सर आप........ आगे उसने कुछ ना कहा। सब कुछ जैसे शांत हो गया।नील वापस लौट। पड़े चेहरे पर अजीब सी शांति पसरी हुई थी। वे विचार मग्न दिख रहे थे। इन बच्चों के साथ अपने जीवन में सहेजना चाहते थे कुछ सुखद एहसास। शरारते.....शरारते.... बस सिर्फ शरारतें !यही उन्होंने किया था आज! बच्चों सा स्वतंत्र ....अपनी गरिमा ....अपने झूठे आभामंडल से दूर, बच्चों के साथ बच्चा बनकर !शायद इन शरारतों के बीच ढूंढना चाहते थे खुद के बचपन को। समय ने इसका मौका दिया था उन्हें ,भला वे कब बाज आते इस हसीनों मौके से। यू भी कुछ ही पल तो आते हैं इस जीवन में खिलखिलाने के,भला वे उन्हें कैसे जाने देते । तसल्ली थी उन्हें इस बात की उन्होंने कुछ मासूमों को भले ही एक पल की खुशियां प्रदान की।... क्या यह अद्भुत न था?'