अचानक सामने से आती गाड़ी ने नील की तंद्रा तोड़ी। उन्होंने किसी तरह ब्रेक लगाया।
" क्यों मिस्टर सोते हुए गाड़ी चलाते हो ?"सामने वाले गाड़ी का ड्राइवर बोला। नील ने बिना किसी प्रतिउत्तर के गाड़ी स्टार्ट की ओर आगे बढ़ गए। उन्होंने खुद सिर को झटका दिया ,जैसे उसमें से जॉन के अस्तित्व को निकालना चाहते हो।"..... पर दिल का क्या करूं जान? तुमने तो मुझे रुग्ण कर दिया!" वह घर पहुंच के बिस्तर पर निढाल होकर गिर पड़े ।जी कर रहा था जोर जोर से चिल्लाए ,पर खुद को किसी तरह संयत किया ।अनमने भाव से थोड़ा सा खाना खाया और सोने की कोशिश में लग गए ।नींद नहीं आ रही थी, सामने अलमारी से किताब निकाली और पढ़ने लगे। पढ़ने से भी मन उचाट सा हो जाता ,अतः किताब वापस रख दी। अचानक ध्यान दूसरी ओर गया जहां जॉन का स्केच रखा हुआ था, मुस्कुराता हुआ सा। नील ने उसे उतारा और निहारने लगे, मुस्कुराता हुआ जॉन का चेहरा ऐसा प्रतीत होता जैसे वह उन्हें चिढ़ा रहा हो।
" हां जॉन हंस लो! चिढ़ा लो मुझे ....मैं क्या करूं !....मैं हूं ही ऐसा.... सब तो मुझसे दूर भागे ही ....तुम भी सही !...नहीं जॉन तुम लौट आओ...... प्लीज ....।"नील ने उसकी पेंटिंग सीने से लगा ली और वैसे ही पड़े रहे ।न जाने कब नींद आ गई ।सुबह काफी देर तक सोते रहे ।बिस्तर छोड़ने का मन नहीं कर रहा था ,अतः काफी देर तक में पड़े रहे ।कुछ समय बाद कॉफी बनाई और उसका मग लेकर लॉन में आ गए। अखबार के पन्ने पलटते हुए उन्होंने मग खाली किया और अन्य कार्य में लग गए। जॉन अभी भी हावी था उन पर और वे जैसे उस से खुद को दूर करने की नाकाम कोशिश कर रहे थे। घर से बाहर निकले तो दिन का दूसरा पहर बीत चुका था। स्टूडियो गए, थोड़ा सा काम किया ।यूं भी मन खोया खोया होने के कारण कुछ हो नहीं पा रहा था अतःवे थिएटर की तरफ मुड़ गए जहां शेक्सपियर के नाटकों का मंचन चल रहा था ।यूं भी वे कई दिनों से वहां जाना चाहते थे अतः वहां जाना उचित समझा। नील शेक्सपियर से काफी प्रभावित थे। उनके कितने ही पात्र नील के चित्रों के विषय बनते रहे। उनकी सहजता, पात्रों की वास्तविकता, शुरू से ही नील को उद्वेलित करते रहे ।माध्यम भले ही अलग रहा हो लेकिन उनके विषय ,उनकी सोच ,कहीं न कहीं उनके पेंटिंग में दृष्टव्य हो जाते। कुछ घंटे कब बीत गए पता ही नहीं चला।
नील घर के लिए चले, पर कदम बरबस ही गैराज की तरफ मुड़ने लगे। नील ने सोचा हो सकता है वह अब तक आ चुका हो ।रास्ते में उन्होंने कुछ सामान खरीदा और चल पड़े ।पर जॉन आज भी ना दिखाई पड़ा ।वे वापसी के लिए मुड़े, तभी एक लड़के ने उन्हें पुकारा ।
,..सर जॉन आया है !
नील की नजरें उसे ढूंढने लगी ।
"जॉन ...जॉन ...इधर आओ ।"उस लड़के ने पुकारा ।
वह गाड़ी के नीचे घुसा कुछ ठीक कर रहा था, निकल कर सामने आया ।नील ने उसे अपने साथ चलने को कहा पर जॉन ने अपनी असमर्थता जताई। उसके साथियों ने दबाव डाला तो वह नील की गाड़ी में जाकर बैठ गया। नील निरुद्वेग गाड़ी चलाए जा रहे थे ।
जॉन के चेहरे से लग रहा था कि नील के प्रति उसकी नाराजगी अभी खत्म नहीं हुई थी।
" जॉन!" उन्होंने बात करनी चाही।
पर वह यूं ही शांत रहा। थोड़ी देर बाद वे लोग घर पर थे। जॉन चुपचाप उतरा और सोफे पर आकर बैठ गया ।नील ने सामान उतार कर अंदर रखा और उसके पास आए। जॉन उनसे नजरें चुराये जा रहा था।
" जॉन अभी तक नाराज हो ?नील ने पूछा ।"जानते हो बिना तुम्हारे मेरी हालत क्या हो गई थी?" नील नेउसका सिर दोनों हाथों से ऊपर उठाते हुए कहा।" मुझे माफ कर दो !आइंदा तुम्हें परेशान न करूंगा।" उनके शब्द भारी होते जा रहे थे। "इतनी छोटी सी गलती की इतनी बड़ी सजा मत दो जॉन!.... तुम जैसा कहोगे मैं वैसा ही करूंगा।... बस मुझसे रूठना नहीं।" नील के आगे के शब्द आंसू बनकर निकले ।
"सर.." जॉन ने नील को रोते देखा तो उनसे लिपट ते हुए बोला।....नहीं सर ,अब ऐसा नहीं करूंगा ।आप मेरे लिए रो रहे हैं!" मुझे माफ कर दीजिए ,मैंने आपका दिल दुखाया है।
"मैं नहीं जानता था ,मेरे ऐसा करने पर तुम्हें तकलीफ होगी। वरना मैं कभी...... नील उससे लिपटते चले गए।
" मैं आपके लिए कुछ बनाता हूं ।" जानने उनसे अलग होते हुए कहा। मुझे पता है आपने इतने दिनों से ठीक ढंग से खाना नहीं खाया होगा।... क्यों सही कहा ना मैंने ?अब उसके चेहरे पर हंसी तैर रही थी ।
"हां ,नील ने स्वीकृति में गर्दन हिला दी ।
"मुझे तो भूख भी लग आई है ,ऐसा करते हैं आप मेरे लिए कुछ पका दीजिए और मैं आपके लिए ।"उसने शरारतपूर्ण ढंग से कहा।
नील उसके कहने के ढंग पर खिलखिला उठे। जॉन रसोई घर में घुस चुका था थोड़ी देर बाद लौटा तो उसके हाथों में खाने से भर दो प्लेट थी।जॉन उनके पास बैठा ।नील को अब भी सब कुछ स्वप्न सरीखा लग रहा था ।उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि कुछ पल पहले वह कितना परेशान थे ।
"जॉन ,"उन्होंने पुकारा ।..फिर दोबारा नहीं रूठोगे न मुझसे?"
उसने नील की तरफ देखा।
" मैं नहीं जानता ऐसा क्यों हो रहा है !..पर बिना तुम्हारे ऐसा लग रहा है जैसे जीवन के सबसे बुरे दिन से गुजर रहा था मैं। खुद के अंतर्द्वंद में फसा एक शांति की तलाश में भटक रहा था मैं... सामने सब कुछ स्याह- सा दिखाई पड़ता है... सहसा कोई धुंधलका -सा उठता और उस अंधेरे को और भी विस्तृत करता जाता। आत्मीयता के दो बोल सुनने के लिए तरस जाता था मैं!... मेरा दुख कितना दारुण हो जाता है तुम्हारे बिना।.... मुझे तुम्हारी जरूरत है जॉन ।...ऐसा लगता है जैसे...... नील के ह्रदय से आह सी निकली हो ।....सांसारिकता कि भंवर में तुम भी मुझे भूल बैठे!.. माना मेरी अपेक्षाएं तुमसे बढ़ती जा रही है ...पर मैंने भी तो तुम्हें संभाला।.. मैं सौदा नहीं करना चाहता ,पर मेरी अपनी भी मजबूरियां हैं। एक विश्रांति चाहिए मुझे तुम से।... देखो मैं क्या हो गया था तुम्हारे बिना!... तुम्हारी समीपता ने संपूर्ण बना दिया था मुझे ,पर तुमने अभाव में भटकने के लिए मुझे दोबारा छोड़ दिया।
जॉन निश्चेष्ट-सा नील के चेहरे की भंगीमाओं को पढ़ने की कोशिश कर रहा था।
नील फूट पड़ना चाहते थे जॉन के पास।".... तुम्हें पता है जॉन ,जीवन के काफी पल मैंने अकेले गुजारे ।कोई आशा नहीं रखी थी जीवन से, क्योंकि जब से मैंने इसे समझना शुरू किया ये मुझसे कुछ ना कुछ छीनती ही रही ।कभी मेरी मां, कभी मेरा प्रेम, कभी मेरी खुशियां ,फिर भी कोई शिकायत नहीं की मैंने। सब कुछ ढंग से समेटता रहा। बजाय उससे कुछ लेने के उसे कुछ देता ही रहा ।निरुद्वेग अपने मार्ग पर बढ़ता रहा ।संघर्ष की एक-एक पल ढोता रहा ।अपने आकांक्षाओं को आत्मसात करता अंततः में वहां तक पहुंच गया जहां जीवन की बराबरी कर सकूं ।अथाह दौलत, बड़े से बड़ा सम्मान ,सब कुछ पाया मैंने जॉन !..सब कुछ!.. फिर भी एक चीज के लिए तरसता रहा ,निस्वार्थता के लिए .....प्रेम के लिए... ऐसा नहीं कि मेरे जीवन में कोई आया ही नहीं ।पर सबके अपने मतलब थे.... अपना स्वार्थ था ।...जानता था मैं उन्हें ,लेकिन बर्दाश्त करता रहा। वैसे भी वे जिस चीज के लिए मेरे पास आते उसका मेरी नजर में कोई औचित्य नहीं था ।...दुख था तो इस बात का कि किसी ने मुझे समझने की कोशिश न कि।.... मुझे भी इन चीजों को सहते इनकी आदत सी हो गई।... मैंने यूं ही जीवन को बेलगाम चलने दिया , एक जिद सी पकड़ ली थी जिंदगी से, जिसे कभी तोड़ना नहीं चाहता था ।सख्त कर लिया था खुद को। पर ऐसे समय में अचानक तुम मिले।.... मासूमियत ....निस्वार्थता की प्रतिमूर्ति।... ऊपर से तुम्हारी वेचारगी!... मुझे लगा हम दोनों एक दूसरे की जरूरत बन सकते हैं। मैंने खुद को बदल डाला। जीवन को स्वीकार करने के लिए तोड़ दी अपनी जीद।... पर नहीं... जान... एक बार फिर से मुझे जिंदगी ने हरा दिया!... एक बार फिर से मेरा विश्वास टूट गया !नील सिसक उठे ।....तुम्हारी वह मासूमियत..... तुम्हारी निस्वार्थता.... सब कुछ एक छलावा था!... तुम भी स्वार्थी निकले!... तुमने भी तो जैसे मेरा "यूज" ही किया !....खैर छोड़ो.... नील ने खुद को संयत किया ।.... कहां चले गए थे इतने दिन?"
वह जैसे सोते से जागा।".... मैंने आपको बहुत तकलीफ पहुंचाई न?. नहीं समझ पाया आपको! वह नील के करीब आते बोला।.... मेरे जीवन की कड़वाहट को आपने मुझसे विलग कर कर उन्हें अपने मीठेपन के एहसास में डुबोया और मैं आपके लिए कुछ ना कर सका। उसके हाथ नील का सिर सहलाने लगे ।नील पहले ही भावनाओं में बह खुद का नियंत्रण खो चुके थे। आगे जॉन ने उसे और भी बढ़ा दिया। वह जॉन से चिपट गए। जॉन भी निर्विरोध उन से लिपटा रहा। कुछ ही देर बाद दोनों की धड़कन सामान्य से काफी तेज हो चुकी थी ।भावनाओं को एक विराम मिलने लगा था ।अभावों ने अब अपना दामन समेट लिया था। नील ने एक संपूर्णता को पा लिया था। हां आज वे संपूर्ण थे !....आत्मा से शरीर तक परिपूर्ण! जॉन बिना किसी प्रतिक्रिया के शांत ,जैसे नील में आत्मसात हो गया था।
"जॉन ,,नील बोले।
वह निश्चेष्ट पड़ा रहा।
" क्या हुआ जॉन?"
"सर अब तो मैं स्वार्थी नहीं ?"उसके पूछने के अंदाज ने नील को विचलित कर दिया।
" बताइए सर ,अब तो आपको जीवन से कोई शिकायत नहीं? अब तो आप मुझसे शिकायत नहीं करेंगे?"
नील बिना किसी जवाब की एक बार फिर से जॉन को चूमने लगे। ह्रदय जॉन के करीब होने से अजीब सी शांति महसूस कर रहा था। मन प्रफुल्लित सा हो रहा था ।
"मैं समझ सकता था, उसने कितना बड़ा त्याग किया था !किसी की खुशियों के लिए खुद के अस्तित्व को नकारना सहज नहीं होता। उनके मन में जॉन के लिए श्रद्धा सी हो आई।वह उनके लिए और भी महत्वपूर्ण हो गया ।
"जॉन ,"नील ने धीरे से कहा
वह खुद में सिमटा पड़ा हुआ था ।चादर उसके शरीर से नीचे खिसक आया था। नील ने उसे ढका और खुद में समेटते हुए उसे दोबारा पुकारा
" मुझसे नाराज नहीं हो न?" नील ने अपना होंठ उसके माथे पर रखते हुए कहा।
" नहीं सर, उस ने आंखे खोली। ...नाराज क्यों!.. आपने मेरी जरूरतें पूरी कि... मैंने आपके संवेगो को संभाला... आपकी भावनाओं को समझा... बस।"
" ओह जॉन!" नील दोबारा उसमें खोते चले गए ।एक नैसर्गिक सुकून!... आत्मिक शांति !...एक सुखद अहसास के लिए!... जहां वास्तविक आनंद के सिवाय किसी अन्य विचार का भान भी न था!.... सिर्फ प्रेम था!.... त्याग था!.... परस्पर एक दूसरे की इच्छाओं का सम्मान था!.... एक स्वर्गिक आनंद!