नील पेंटिंग बनाने में व्यस्त थे या यूं कह सकते हैं कि वह खुद को व्यस्त रखना पसंद करते थे ।उनके लिए प्रतिदिन पेंटिंग बनाना वैसे ही था जैसे स्नान के बाद ईश- प्रार्थना ।इस तथ्य को उन्होंने महसूस भी किया था। चित्रण करना एक प्रकार से उनके लिए ध्यान की भी प्रक्रिया थी जो उन्हें बाहर संसार की विषमता से दूर रखती।
नील का आकर्षण उनके चेहरे से न होकर उनकी आत्मा से था। ज्यादातर वह मौन रहते। आंखों में एक शून्यता थी जो देखने वालों को अपनी तरफ खींच एक जड़ता का अनुभव कराती। कह सकते हैं कि वे प्रत्येक क्षण किसी की तलाश में रहती ।होठों पर मंद स्मित मुस्कान की एक रेखा खींची रहती जिसके खुलने पर छोटे-छोटे मोतियों से दांत दिखाई पड़ जाते। मजबूत कंधे ,चौड़ी छाती, उनकी विशिष्टता को और भी बढ़ा देती। पेंटिंग बनाते नील किसी साधक सदृश्य दिखाई पड़ रहे थे जो कि अपनी साधना की चरम स्थिति को पहुंचने वाला था।
अचानक वे चिहुंक उठे। नील देखा जॉन पीछे से आकर उनसे लिपट चुका था। उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं की तो जॉन परे हट गया। गुस्सा आ रहा था नील को उस पर ।वह कई दिनों से उनसे मिलने नहीं आ रहा था। जॉन तिरछी नजरों से देखते नील को देख मुस्कुरा उठा। शायद वह नील के बनावटी गुस्से को समझ चुका था। अतः नील झल्लाहट के साथ बोल पड़े।
'कहां थे इतने दिनों तक?'
'सर'
'हां... सोचो... सोच लो कोई भी बहाना !....फिर आराम से जवाब देना ।'वह कुछ ना बोला ,नील उसे देखते रहे।
'सर ,सुबह मुझे चर्च जाना है।' जॉन ने कहा।
'चर्च क्यों?'
'है मेरा एक मित्र जीसस से उसके लिए कुछ मांगना है।... देंगे न वह?'
'कौन है वह?'
'है जरा सा पागल ,पर दिल का अच्छा!' जॉन ने जवाब दिया।
'मुझे नहीं मिलवाओगे उससे?'
'नहीं सर ,आप उससे मिल ही नहीं सकते!'
'जीसस कभी मेरे लिए कुछ मांगा तुमने ?...नहीं न?... फिर तुम्हारे लिए कौन इतना महत्वपूर्ण हो गया जिसने तुम्हारे पास मुझसे भी ज्यादा जगह बना ली?' नील को उस अनजाने शख्स से जलन सी हो रही थी ।'....बोलो जॉन ?'उन्होंने गुस्से से कहा।
प्रतिउत्तर में वह सिर्फ मुस्कुराए जा रहा था।
'अच्छा सर आपके लिए भी मांग लूंगा ।'शरारत अभी भी जॉन के चेहरे पर नाच रही थी ।'साथ में आप भी चलना चाहेंगे ?'उसने पूछा।
'हां चलूंगा... चलूंगा क्यों नहीं ?पर तुम्हें उस व्यक्ति के बारे में बताना होगा ।'नील खींझते हुए बोले।
'बता दूंगा।' वह चला गया।
नील एक अजीब सी तनाव के साथ पेंटिंग में लग गए ।जॉन के बताए शख्स से उन्हें सचमुच जलन हो रही थी ।उन्होंने पेंटिंग बंद कर दी और एक पत्रिका उठा ली ।मन फिर भी न लगा ।नौकर को काफी बनाने के लिए कहा बाद में बाहर टहलने के लिए निकल गए ।लौटे तो रात काफी हो चुकी थी। नौकर ने खाने के लिए पूछा तो उन्होंने मना कर दिया ।वे सोने की कोशिश करने लगे। सुबह जॉन के साथ निकलना था।
सूर्योदय के साथ ही नन्हा जॉन नील के बेड के पास खड़ा था, सुबह की किरणों सा- निष्पाप, मुस्कुराते हुए !नील ने उसे चूम लिया।
'यह क्या सर !.. आपने मुझे जूठा कर दिया?' पता है, जीसस गुस्सा होंगे।' उसने बाल सुलभ गुस्से से कहा।
'मैं हूं ना तुम्हारे जीसस को मनाने के लिए।' नील ने उसे दोबारा जूठा कर दिया ।जॉन हंस पड़ा।
कुछ ही देर बाद वे चर्च के लिए चल पड़े ।चर्च नील के बंगले से कोई आठ-दस किलोमीटर दूर ,एक पहाड़ी नुमा जगह पर स्थित था। सामने छोटी सी नदी बहती थी, जिसकी कलकल बहती लहरों के स्वर जीवन को हमेशा गुंजायमान रखने की प्रेरणा देते। पहाड़ी पर दूर-दूर तक जंगली वृक्षों की श्रृंखला फैली थी। कह सकते हैं कि चर्च अत्यंत ही मनोरम जगह स्थित था ।एक तरफ देवत्व का भाव जगाता ईशा का आवास, तो दूसरी तरफ प्रकृति के सौंदर्य का अंदाज दिखाती प्राकृतिक सुषमा। अभी उन लोगों ने आधी दूरी भी तय नहीं की थी कि बारिश की बूंदों ने उनको घेर लिया। जॉन शांत-सा बैठा खिड़की के बाहर बूंदों को निहारने लगा ।हाथ निकाल बूंदों को पकड़ने की कोशिश करता ।इतने में कोई छोटी बूंद उसके चेहरे पर आ कर छिटकती तो वह आंखें बंद कर लेता। नील बारिश के साथ उसकी अठखेलियो को निहारने में मगन थे।
'हां तो जॉन, कौन है तुम्हारा मित्र ?'सहसा नील ने पूछा।
'प्रार्थना के बाद बता दूंगा सर ।'उसने मना किया।
चर्च तक पहुंचते बारिश बंद हो चुकी थी ।बारिश होने से मौसम और भी सुहावना हो चला था। नील जॉन के साथ चर्च के अंदर गए। जॉन जीसस की प्रतिमा के सामने आंखें बंद किए कुछ बुदबुदा रहा था । नील उसे अपलक देख रहे थे, किसी सौम्य मूरत की भांति वह जीसस को ध्यान में मग्न था। नील ने मूर्ति के सामने एक मोमबत्ती जलाई ।नील को चर्च पूजा स्थल के बजाय कलात्मक अभिरुचियों के लिए ज्यादा उपयुक्त लगता। जीसस तथा अन्य मूर्तियों की भावपूर्ण मुद्राएं, रंगीन कांच की खिड़कियों ,भवनों की नक्काशी, दीवारों पर बने इस इशा के जीवन चित्र ,मणिकुट्टीम रचनाएं उन्हें काफी प्रभावित करते ।यू भी यह चर्च काफी पुराना था। अपने पूर्वजों की कला को जानने का अच्छा माध्यम।
'सर चले ?'जॉन की प्रार्थना पूरी हो चुकी थी।
नील उसके साथ बाहर निकल आए ।
'आपने क्या मांगा जीसस से?' उसने पूछा।
'हमेशा तुम्हें मुस्कुराते देखूँ।' नील ने कहा ।'यह मत समझना यह सब मैंने तुम्हारे लिए मांगा है ,मैं थोड़ा स्वार्थी हूं न अतः चाहता हूं कि तुम हमेशा खुश रहो ।जिससे मैं भी खुश रह सकूं ।सामने एक चट्टान सरीखा पत्थर दिख रहा था, नील के साथ जॉन भी उस पर बैठ गया।
'जॉन'
'हां सर?' उसने सिर ऊपर उठाते हुए कहा ।
'मेरी तरफ देखो ।'नील ने उसका हाथ अपने हाथों में लेते हुए कहा।
'मुझे भूल तो न जाओगे ?'
'सर आप ऐसा क्यों सोचते हैं?' वह मासूमियत से बोला।
'बताओ जॉन... न जाने मुझे क्यों डर सा लगता है !....तुम्हारा एक पल भी मुझसे दूर रहना न जाने क्यों मुझे बेचैन कर देता है !....बोलो जॉन? नील के शब्दों की आद्रता बढ़ती जा रही थी। जॉन निर्विकार नील को देखे जा रहा था ।....तुम सुन रहे हो ना?'
'हां सर 'जॉन ने नील के हाथों पर अपना दबाव डालते हुए कहा। .... मैं हमेशा आपके साथ रहूंगा।' उसने अपने शब्दों पर जोर डालते हुए कहा।
' हां जॉन......, नहीं तो मैं एकदम से बिखर जाऊंगा !...तुम समझ रहे हो ना?.. मैं जानता हूं मुझे तुमसे यह सब नहीं कहना चाहिए, पर मैं करूं भी क्या ?...तुम सोचते हो कि मैं भी कितना पागल हूं !....पर यह सब सच है जॉन ,मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता!'
जॉन खामोश- सा सुनता जा रहा था ।...मुझे संभालोगे न जॉन ?....बोलो?... उसने स्वीकृति में सिर हिला दिया ।
नील ने देखा जॉन का चेहरा ममतामय होता जा रहा था ।वह नील के नजदीक सरक आया।
'आप जानना चाहते थे ना मैं किस व्यक्ति के लिए चर्च आया हूं?'
'हां जॉन।' नील ने बेचैनी से कहा।
'वह आप हैं सर!.... जिसस से मैं आपके लिए खुशियां मांगने आया था ।अगर आप ना होते तो आज मैं...... जॉन का गला अवरूद्ध हो गया ।उसकी आंखें नम हो आई थी ।
'ओह जॉन ....!तुम्हें मेरी इतनी चिंता है ।नील ने उसे गले से लगा लिया।'. तुम कितने प्यारे हो जॉन !....परमात्मा ने तुम्हें इतना अच्छा कैसे बनाया !...नील अपना सारा प्यार उस पर उड़ेलते जा रहे थे।वे जॉन को एकटक देखने लगे।
'सर आप क्या सोच रहे हैं ?'उसने पूछा ।
'यह जॉन की, जीसस ने तुम्हारे रूप में अपनी प्रच्छवि भेज दी है। मुझे संभालने के लिए। तुम कितने महान हो जॉन! मैं तो सिर्फ अच्छाइयों को पेंट करता हूं और तुमने तो उन्हें आत्मसात कर लिया है। तुम मेरी नजरों में और भी ऊपर उठ गए जॉन।'
' सर आप ऐसा क्यों सोचते हैं?... यूं भी बिना आपके मेरा क्या अस्तित्व होता?... आज भी कपड़ों और हाथों में ग्रीस पोते गाड़ियों के बीच खुद का अस्तित्व तलाश रहा होता ।आप नहीं जानते हैं सर ,मैंने भी महसूस किया है इस जीवन की नारकीयता को। आपने तो इस स्याह जीवन में रोशनी भर दी अतः मैं भी जीसस से आपके जीवन को उजालों से परिपूर्ण बनाने के लिए कहने आया था।