घर आने के बाद वे पेंटिंग बनाने में जुट गए ।कई दिनों से वे कुछ नया सोच भी नहीं पा रहे थे, पर जॉन के बनाए चित्र ने उन्हें उद्वेलित कर दिया। वह बरामदे में खड़े कैनवास पर कुछ लाइनें खींच रहे थे कि सामने एक इंडियन चेहरा दिखाई पड़ा।
'हेलो मिस्टर नील।'.. वह व्यक्ति बोला।
'मैंने आपको पहचाना नहीं!' नील ने कहा।
'मैं दास बाबू, आपने मिस्टर रोनाल्ड से ट्यूटर के लिए कहा था।' उन्होंने अपना परिचय दिया।
'आप बैठिए।'
'जी धन्यवाद'.. मिस्टर दास बैठते हुए बोले।
नील उनसे बातों में व्यस्त हो गए।
'आपको पता है मिस्टर दास ,मुझे भारतीय काफी अच्छे लगते हैं। खासकर इस मशीनी युग में भी उनके इंसान के भावनाओं का ख्याल रखने का स्वभाव।'
'वह तो मैंने आप लोगों में भी महसूस किया है, और फिर आप भी तो मानवीय संबंधों की काफी कद्र करते हैं।' मिस्टर दास ने कहा।
'पहली ही बार में आपने मेरे विषय में इतना बड़ा अंदाजा कैसे लगा लिया?'
'पहली बार में नहीं मिस्टर नील, मैंने आपके चित्र देखे हैं। कोई भी बता सकता है आप मानवीय संवेदना के हर पहलू को चित्रित करने में महारत हासिल रखते हैं।... और निसंदेह ऐसा इंसान वास्तविक जीवन में भी मानवीय संवेदना, उनकी भावनाओं का कद्र करता होगा।'
"आप मुझे शर्मिंदा कर रहे हैं मिस्टर दास!' नील ने हसते हुए कहा ।......अरे तो भूल ही गया! आप क्या लेंगे?'
मिस्टर दास ने चाय के लिए कहा.
'मेरा स्टूडेंट नहीं दिखाई पड़ा?' मिस्टर दास ने चाय को मुंह से लगाते हुए कहा।
'अरे हां, वह आता ही होगा।' नील ने कहा ।सामने से जॉन आता दिखाई पड़ा।
'जॉन...'आओ।नील कुर्सी से खड़े होते हुए बोले।
कृतज्ञता अभी उसकी आंखों में झलक रही थी। मिस्टर दास दोनों को अचरज से देख रहे थे। दास बाबू को जॉन के कपड़ों से उसकी वास्तविकता का अंदाजा लग चुका था।
'यह रहा आपका स्टूडेंट मिस्टर दास।' वे अभी जिज्ञासु दृष्टि से नील को देखे जा रहे थे।
'यह पढ़ना चाहता है मिस्टर दास, पर.......
......बस मिस्टर नील आगे मैं समझ चुका हूं।' वैसे आप के विषय में मेरी राय एकदम सही थी।
'आप मुझे दोबारा शर्मिंदा कर रहे हैं!' नील ने झेंपते हुए कहा, मिस्टर दास हंस पड़े।
जॉन की पढ़ाई शुरू हो चुकी थी ।नील उसके लिए किताबें व अन्य चीजें पहले ही ले आए थे। थोड़ी देर बाद वे एक पेंटिंग बनाने में व्यस्त हो थे। समय काफी बीत चुका था। दास जाने की तैयारी कर रहे थे। थोड़ी देर के लिए वे नील के पास है और एकदम से चौंक उठे। उनका चौंकना स्वाभाविक था पहली बार नील ने अपनी रचनाओं में खुद के बनाए परंपराओं को तोड़ा था। रंगों के सामंजस्य और शालीनता की जगह एकदम चटक से रंग उनकी इस पेंटिंग में प्रस्फुटित हो रहे थे। सृष्टि के नियमों के विरुद्ध जवानी से बुढ़ापे के बजाय बुढापे से जवानी की तरफ भाग रहे थे वे ,जीवन के एक अलग से आनंद की तलाश में।
'मिस्टर नील अंततः आपने भी परंपराओं से खुद को विमुख कर ही लिया! क्या जीवन में कोई बहुत बड़ा परिवर्तन हुआ है?' दास बाबू पेंटिंग को निहारते हुए बोले।
'शायद हां मिस्टर दास। न जाने क्यों अब मेरी आकांक्षाए भी बलवती होने लगी है।... जीवन से कुछ पाने की आस ना चाहते हुए भी हृदय में उमड़ा जा रहा है ।...यूं लगता है जैसे इसके सहजता मौलिकता को छोड़ प्रकृति की रंगीनियों में मैं भी मगन हो जाऊ. नील के शब्दों में स्वाभाविक चंचलता व उल्लास था।
'ओ हो मिस्टर! 'मिस्टर नील क्या बात है ...इस उम्र में अचानक बच्चों सी चंचलता? ...इतना खिलंदड़ापन.... कहीं कुछ पा तो नहीं लिया आपने? मिस्टर दास मुस्कुराते हुए बोले।
'ऐसा ही समझिये। ... न जाने क्यों एक लंबी अभिशप्तता के बाद जीवन प्यारा सा लगने लगा है।... जीवन की सच्चाईयों को जानने के बाद भी ना जाने क्यों इससे अंजाना बनना चाहता है।'
दास बाबू कभी पेंटिंग तो कभी नील को निहार रहे थे।
'जानते हैं मिस्टर दास..... यूं तो जीवन समझ में आता है इसमें अकूत कुछ भी नहीं, पर जीने के लिए भुलावा तो चाहिए ही।... आप यह मत सोचिये कि मैं इसे सिर्फ भुलावे और झूठे आदर्शों तक ही समेट ना चाहता हूं।.. सोचता हूं इस झूठ भरे आवरण में रहना ही है जैसा कि आज प्रत्येक जगह है तो इनसे कब तक बचा जा सकता है.... हदों को तोड़ते हुए अगर मैं कुछ देर तक चलूं भी तो परिस्थितियां ....ये सामाजिकता... अपनी अपनी तरफ खींचती है।.... हां अनसुना भी करता हूं उन्हें पर अंततः .....पूर्णतया हार तो नहीं कह सकते ....पर टूटने तो लगता ही हूं मैं!.... पर अब लगता है जैसे कुछ मिल गया है इस टूटन से बचने के लिए.... निःशब्द.. निस्पंद....अगणित- सा ....हृदय के तारों को झंकृत करता .... झूठे आदर्शों से बचाता .....एक नए आदर्श के नव निर्माण हेतु।'
दास बाबू निरुत्तर हो गए थे।
'अच्छा मिस्टर नील मैं चलता हूं।'
कल हम फिर से मिलते हैं।
नील उन्हें छोड़ने बाहर तक आए। वापस लौट आए तो जॉन अपनी किताबें समेट रहा था. उन्हें देखते ही वह खड़ा हो गया।
"कैसा रहा पढ़ाई का पहला दिन ?"नील ने उसका चेहरा अपने हाथों में लेते हुए कहा।
वह आल्हादित-सा, खामोश नील को देखे जा रहा था।
'क्या हुआ जॉन?" नील ने पूछा।
'कुछ नहीं सर, आप बहुत ही अच्छे हैं।' उसने अपना होठ नील के गालों पर रख दिया और खिलखिलाते हुआ दूर भाग गया।