आज मौसम सुबह से ही बारिश हो मे नहाया था। नील चाह कर भी स्टूडियो नहीं जा सके। अपने लिए कॉफी बनाई और बारिश का आनंद लेने बरामदे में बैठ गए ।सामने बारिश की नन्हीं बूंदे मोतियों सदृश दिखाई देती ।सहसा हवा का कोई झोंका उन उन बूंदों को नील के जिस्म पर बिखरा सा जाता। तब बारिश की ये बूंदे उनमें एक सिहरन सी पैदा कर देती। अकेले बैठे नींद प्रकृति के इस सुंदर उपहार को आत्मसात करने की कोशिश कर रहे थे ।नील ने महसूस किया इन बूंदों के बीच जॉन का चेहरा मुस्कुरा रहा था। वह गंभीर हो गए, जान के समर्पण ने सहसा उनकी नजरों में उसे बहुत ऊंचा कर दिया था ।
"एकदम अनूठा, नैसर्गिक ,सचमुच वास्तविक, मैं जानता हूं जॉन मैं गलत हूं!... पर यह गलती मेरे लिए जरूरी थी। मेरी खुद की आस्था.... मेरे विश्वास ...और सबसे बढ़कर मेरी खुशी के लिए। मैं जानता हूं तुम्हें इस त्याग के लिए भीषण मानसिक यंत्रणा से गुजरना पड़ा होगा ।मेरे अंदर भी उथल-पुथल मची थी, पर अंततः मुझे मेरा विश्वास चाहिए था। मैं तुम्हारे प्यार के आगे नतमस्तक हूं। खुद के विचारों का समर्पण...! सचमुच मुझसे भी बड़े हो गए तुम और इसके लिए मैं ईश्वर को भी धन्यवाद देना चाहूंगा। इस चीज के लिए तो मैं तुम्हें कुछ दे नहीं सकता पर तुम्हारा विश्वास कभी टूटने नहीं दूंगा। हां अगर तुम्हें गलत लगा हो तो मुझे माफ करना.... मेरी खुशियां हेतु ।"
"सर ,अचानक नील ने देखा जॉन सामने खड़ा है।" सर आप कैसे, कहां खो गए थे?"
नील को अपनी गलती का एहसास हुआ ।जिसे वह भ्रम समझ रहे थे वहां सचमुच जान खड़ा था। नील को जैसे मनचाही मुराद मिल गई।
" कहां खो गए थे सर ?"उसने अपनी बालों से पानी को अलग करते हुए कहा। पानी में भीग कर उसका दूधिया रंग और भी निखर आया था ।
प्रत्युत्तर में नील सिर्फ मुस्कुरा रहे थे।
" मैं तुम्हारे विषय में ही सोच रहा था, बैठो मैं तुम्हारे लिए कॉफ़ी लाता हूं।"
" पर सर आप....." उसे संकोच हो रहा था। वह नील के साथ अंदर आया और कॉफी बनाने में नील की मदद करने लगा। जॉन का साथ पाकर नील ने अपना पसंदीदा नाश्ता भी तैयार कर लिया।
जॉन नील के साथ बैठ कर नाश्ता करने लगा। नाश्ते के बाद नील बर्तन को बेसिन के पास रख कर लौटे तो जॉन कोई पत्रिका पढ़ने में मग्न था। नील बिना किसी प्रतिक्रिया के उसे निहारने लगे। उनके साथ हमेशा से यह विडंबना रही कि वे जैसे ही एकाग्र होते अपने त्रासदीयों की तरफ घूम जाते। उनकी प्रकृति ऐसी हो गई थी कि बजाय अच्छे पलों का आनंद लेने के उनके बिछड़ने के विषय में सोचने लगते ।वह यह सोचकर ही डर जाते हैं कि इन पलों के बाद उनकी स्थिति क्या होगी। ऐसा नहीं कि वे यह सब जान-बूझकर सोचते। शायद यह उनकी अब तक की अनुभूतियों का प्रतिफल था ।वे अपने इन सोचो से उबरने के लिए जान की तरफ मुड़े ।
उसने नील को देखा तो पत्रिका रख उनके पास सरक आया। शरारत उसके चेहरे पर नाच रही थी।
" क्या हुआ जॉन ?"उन्होंने पूछा।
" सर आपने देखा, आंगन के पास कुछ था !"जॉन के चेहरे पर शरारत और आश्चर्य के मिश्रित भाव थे।
नील जिज्ञासावश आंगन के दरवाजे के पास आए ।अचानक जान ने उन्हें आंगन में धकेल दिया ,नील भीगने लगे। वो खिलखिला उठा !जोर-जोर से उसकी हंसी बारिश के टिप टिप में घुलने लगी। उसकी हंसी और बारिश की बूंदों ने नील में जैसे एक उन्माद सा भर दिया ।उनका हृदय मचलने सा लगा।
" शरारती .....!"नील उसे पकड़ने के लिए दौड़े ।
जॉन ने भागना चाहा लेकिन नील ने उसे जकड़ लिया और बारिश की बूंदों के बीच आंगन में ले आए। नील के साथ अब वह भी भीग रहा था ।उसके वस्त्र उसके मांसल शरीर से चिपकते जा रहे थे ।उसके दूधिया रंग पर बारिश की बूंदे मोतियां चिपकाती जा रही थी। नील जैसे उसमें खोने के लिए अधीर हो उठे ।उन्होंने उसके कपड़े उतार डाले । उसने कोई प्रतिरोध नहीं किया । शायद इसे वह अपनी शरारत का प्रतिफल समझ रहा था। नील की हथेलियां उसके शरीर पर फिसलने लगी।
"आंगन से सटे ऊपर में टीन का एक शेड लगा था। जिस पर बारिश की बूंदे गिरती तो एक मधुर संगीत सा उत्पन्न होता। वहां से होता हुआ वह पानी एक चौड़े गमले में गिर रहा था जिसमें गुलाब का एक पौधा था ।पानी की बूंदे जब गुलाब में गिरती तो ऐसा लगता जैसे वह मुस्कुरा उठता । वहां से पानी की बूंदे फिर गमले में विलीन हो जाती ।बारिश थम चुकी थी गुलाब पूर्णतया खिला मुस्कुरा रहा था।
नील जॉन को गोद में लिए अंदर आए ।वह अभी नील में सिमटा हुआ था। उन्होंने तौलिए से उसका बदन पोछा। फिर खुद को सिखाया और तालियां उसके बदन पर लपेट दी। उसके कपड़े सूखने में अभी समय लगना था।नील ने दोबारा कॉफी बनाई। जॉन निर्विकार नील को देखें जा रहा था ।उन्होंने काफी का मग उसे पकड़ाया। जॉन ने काफी का मग इतनी जल्दी खाली कर दिया जैसे एक ही बार में सारी पी डाली हो।
" सर अब मैं चलूं?" वह खड़ा होते हुए बोला।
" अगर मैं मना कर दूं तो?"
उसने कोई उत्तर न दिया। नील उसके करीब आए, सहसा एक बार वह फिर से वह उनसे लिपट आया।
" सचमुच कितना सुखद है जीवन!" नील जीवन के सुखमय अंगड़ाइयो में जान के साथ खुद को अभिभूत कीए हुए थे। वास्तव में कितना स्वर्णिम है सब कुछ! नील ने मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद दिया।
नील के लिए यह सब कुछ अलग था ।आश्चर्य से भर देने वाला या फिर उनके विगत जीवन का असुरक्षित रूप जिसमें में जॉन की संपूर्णता भरते, पर यह सत्य है कि यह सब कुछ विचित्र था !जॉन इनके जीवन में कहीं गहरे तक फंसता जा रहा था ।उसने नील को शारीरिक जरूरतों के साथ मानसिक संपूर्णता भी प्रदान की जिसने नील को मजबूत बनाया और जो उनके उद्देश्यों के लिए प्रेरक ही बना। अपने इसी प्रेरणा को समझने के लिए उन्हें कभी-कभी महसूस होता है उन्हें भारत जाना चाहिए जहां पर अध्यात्म का अमूल्य खजाना बिखरा पड़ा है। जो कम से कम उनके जीवन को सार्थकता प्रदान कर सकें ।इसके लिए उन्होंने जॉन से चर्चा की ।
"जॉ मैं भारत भ्रमण के लिए जाना चाहता हूं ।"नील ने कहा वहां की आध्यात्मिकता से शायद मुझे जीवन को और गहराई से समझने का मौका मिले ।हमारे जीवन के उद्देश्य और भी सशक्त हो।"
उन्होंने जॉन को भी साथ चलने को कहा पर वह तैयार न हुआ। नील ने दबाव देना उचित न समझा।
" सर अब मैं चलूं?" जॉन ने पूछा ।
"मैं चाहता हूं आज तुम मेरे पास रहो ।"नील ने कहा ।
वह बिना किसी प्रतिउत्तर के नील के पास रुक गया।
" तुम्हें क्या लगता है जॉन गुजार लोगे यह दिन मेरे बगैर? मेरे लिए शायद संभाव ना हो ।"पैकिंग करते नील ने पूछा ।
जॉन बिना किसी प्रतिक्रिया कि उनका सहयोग करता रहा।
" खुद पर ध्यान देना जान, उन्होंने उससे लिपटते हुए कहा।
सुबह यात्रा के लिए निकले ।जहाज तक जॉन उन्हें छोड़ने आया था। जाते हुए नील ने उसके चेहरे को पढ़ने की कोशिश की पर जॉन ने अपने चेहरे पर कोई भाव आने नहीं दिया।
" सर अपना ख्याल रखिएगा ।"जॉन की ये अंतिम वाक्य थे और वह वापसी के लिए मुड़ गया ।
नील उसे लौटते हुए अपलक देख रहे थे। अचानक उन्हें होश आया।उन्होंने चिल्लाकर कहा ,"तुम भी अपना ख्याल रखना।" मैं पत्र लिखूंगा।
उसने सिर्फ पीछे मुडकर देखा और वापस चल पड़ा ।नील समद नहीं पा रहे थे कि अपनी इस यात्रा के लिए खुश होउँ या जान से बिछड़ने के कारण दुखी ।पर दुख तो होगा ही वे जानते थे।