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ब्लाइंड (भाग- 7)

13 नवम्बर 2021

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साक्षात्कार के बाद नील जॉन के पास पहुंचे ।खुशी अभी भी उनके चेहरे से टपक रही थी ।थोड़ी ही देर बाद वे जॉन के साथ घूमने निकले ।काफी दबाव देने पर तैयार हुआ था वह। नील ने घड़ी पर नजर दौड़ाई और गाड़ी स्टार्ट की ।गर्मी का मौसम होने के बाद भी ठंडी हवाओं के कारण मौसम सुहावना लग रहा था। आसमान में बादल हवाओं के साथ अठखेलियां कर रहे थे।
'जॉन, क्या तुम्हें मेरा साथ बुरा लगता है ?'नील ने खामोश बैठे जॉन की चुप्पी तोड़नी  चाही।
'आप ऐसा क्यों सोचते हैं?' वह निरिहता से बोला।
'फिर तुम मना क्यों कर रहे थे?'
'आप नहीं जानते सर !....उसके स्निग्ध मुख मंडल पर उदासी की हल्की लकीरे खिंच आई थी।.... क्या करूं सर,... डर सा लगने लगता है इन खुशियों से !खुशियां ....आजादी ....और मेरा खुद का अस्तित्व....? सहसा वह शांत हो गया।
'चुप क्यों हो गए जॉन?'
'कुछ नहीं सर, बस यह चीज़े मेरे लिए  नहीं है!'
'अपनी सोच बदलो जॉन।' नील ने समझाया।
'सोच बदलने से क्या सब कुछ बदल जाएगा ?...सर क्या किसी का भाग्य बदल सकता है?... क्या आप मेरा जीवन बदल सकते हैं?... जबकि खुद मेरे अपने नहीं चाहते!'
प्रतिउत्तर में नील ने उसके हाथ पर अपना हाथ रख दिया। जॉन भावुक हो उठा था। वह नील से लिपट गया।नील ने कार की गति धीमी कर दी ।उनका गंतव्य आ चुका था।
जॉन ने वह जगह पहली बार देखी थी।.... वह खुशी से चीख पड़ा,.... कितना अद्भुत ....!इट इज अ रियली ब्यूटीफुल सर!.... क्या प्रकृति इतनी खूबसूरत होती है?'
'हां जान '...और सिर्फ प्रकृति ही क्यों? उसकी बनाई हर चीज में सौंदर्य है। जरूरत है तो बस उसे देखने के नजरिए की।.... यह नदी ....यह फूल.... यह चारों तरफ फैली पहाड़ियां..... सभी तो गवाह है इसकी खूबसूरती के।'
जॉन के जीवन में सर्वथा पहला अनुभव था जब उसने प्रकृति को इतने करीब से देखा था ।उसका जीवन तो मोटर गाड़ियों के मशीनों में उलझ कर रह गया था ।वह नील के पास बैठ गया ,उसका मुख मंडल एकदम शांत था ।उसने अपना सिर नील के कंधे पर टिका दिया।
'क्या हुआ जॉन?' नील ने उसके सिर पर हाथ रखते हुए कहा।
'जीवन इतना खूबसूरत भी होता है !...यह मैंने आज जाना। पर क्या यह खूबसूरती मेरे खुद के जीवन में .......?'आगे वह कुछ बोल ना सका।
'हां जॉन, यह खूबसूरती तुम्हारे जीवन में भी आएगी ।'नील उसे खुद में समेटते चले गए ।कुछ देर तक वे वैसे ही पड़े रहे। जॉन ने अपना सिर ऊपर किया।
'क्या हुआ?'
'सर भूख!'.... जॉन ने मुंह बनाते हुए कहा।
खाने की चीजें भी अपने साथ लाए थे, वह गाड़ी के पास लाने के लिए गए ।लौटे तो वह गायब मिला, नील ने ढूंढना शुरू किया पर वह नहीं दिखाई पड़ा। वे घबरा उठे उन्होंने उसका नाम लेकर चिल्लाना शुरू कर दिया ।....जॉन ....जॉन कहां हो तुम?' नील चिल्लाए जा रहे थे।
'सर !'अचानक नदी की तरफ से आवाज आई। वह नदी में नहा रहा था और उसके सारे कपड़े बाहर पड़े थे।
'ओह जॉन !....तुमने तो मेरी जान ही निकाल दी थी !'...उस पर नील के कहने का कुछ असर न हुआ।वह पानी के साथ खेलता रहा।
'जॉन बाहर आओ।' नील दोबारा चिल्लाए, उसे कोई फर्क नहीं पड़ा।
'जॉन तुम बाहर आते हो या नहीं?'
'सर प्लीज.... थोड़ी देर और ।'वह बोला।
'नहीं ,चलो बाहर निकलो ।अंधेरा होने वाला है वरना मैं तुम्हारे कपड़े लेकर चला।'
'सर नहीं.... मैं फिर बाहर.......
नील उसकी बातों को अनसुना करते हुए उसके कपड़े लेकर गाड़ी की तरफ चल पड़े।
'सर.......!' अचानक जॉन की चीख सुनाई पड़ी ।....सर बचाइए..... वह चिल्लाये जा रहा था।
नील बेतहाशा उसकी तरफ दौड़े और नदी में कूद पड़े ।....'क्या हुआ जॉन?'
'कुछ भी तो नहीं!'... वह मुस्कुरा रहा था।
'बदमाश ....'नील ने उसे गोद में उठा लिया।
'सर छोड़िए ....छोड़िए मुझे.... शर्माता हुआ वह बोला।
वस्त्रविहीन........!पानी में भीगा हुआ ....और भी प्यारा लग रहा था वह !नील ने उसे गोद में वैसे ही लिए रहे। जॉन ने अपना हाथ उनकी आंखों पर रख दिया ।नील ने उनके हाथों को हटाने का प्रयास किया तो नील में सिमट आया। नील उसे  गाड़ी की तरफ ले आए और कार की डिक्की पर बैठा दिया नील उसे एकटक निहारे जा रहे थे।
सर मेरे कपड़े वह बोला
नील ने  उसे कपड़े पहनाना शुरू किया। थोड़ी देर बाद वे जॉन को अपने हाथों से खाना खिला रहे थे। खाते हुए जॉन की आंखें अचानक भर आई।
'क्या हुआ?' नील ने पूछा।
'कुछ नहीं सर ,कभी इतना प्यार नहीं पाया न!'...उसके कहने के अंदाज़ से नील भीतर तक आद्र हो उठे ।उन्होंने उसके माथे पर अपने होंठ रख दिए।
उन्होंने उसे गाड़ी में बैठाया और वापस चल पड़े। जॉन के विषय में सोच कर वे कार धीमी गति से चला रहे थे ।जॉन खिड़की से सिर टिकाए कुछ सोचता प्रतीत हो रहा था। नींद उस पर हावी हो रही थी ।नील ने उसको छेड़ना उचित न समझा ।घर पहुंचते रात काफी हो चुकी थी ।जॉन गाड़ी में सो चुका था, उन्होंने आहिस्ता से उसे गोद में उठाया और अंदर बेड पर सुला दिया। एक सुखद स्वप्न की भांति लग रहा था उन्हें सब कुछ !जॉन के साथ घूमने जाना... उसका स्वतंत्र-सा खिलखिलाना ....नील उसके पास बैठे उसे देखे जा रहे थे ।न जाने कैसा प्यार आ रहा था उस पर! नील उसके सिर को सहलाने लगे ।नींद की चुभन उनकी आंखों को भी महसूस हो रही थी ,नील उसके पास लेट गये। जॉन ने उनको पास पाया तो उनसे चिपट गया ।नील जॉन को अपने आप मे समेटे सो गए।

रेखा रानी शर्मा

रेखा रानी शर्मा

बढिया 👌 👌 👌

31 दिसम्बर 2021

Jyoti

Jyoti

👍6👍

31 दिसम्बर 2021

Anita Singh

Anita Singh

अच्छा

29 दिसम्बर 2021

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रचनाएँ
ब्लाइंड
5.0
प्रस्तुत उपन्यास" ब्लाइंड: आनंद की खोज एक पीरियड ड्रामा है जो वर्ल्ड वार के समय घटित हुआ था। जिसके विरोध में साहित्यकारों, चित्रकारों, संगीतकारों ने मिलकर एक आंदोलन शुरू किया था जिसे दादावाद नाम दिया गया था। इसका नायक एक बाइसेक्सुअल चरित्र है जिसे बचपन में ही यौन शोषण की प्रक्रिया से गुजरना पड़ा... परिणामतः वह सामान्य नहीं रह सका और जीवन पर यह दर्द उस हावी रहा। एक ही परिवेश और पृष्ठभूमि में पलने बढ़ने वाला मनुष्य चिंतन के धरातल पर अलग-अलग सोच का प्रतिनिधित्व क्यों करता है! प्रेम ..हिंसा ...लगाव और नफरत जैसी भावनाएं किस तरह उसके मन मस्तिष्क में पनपती और आकार लेती हैं ।कैसे वह इनको जीता और व्यक्त करता है। जीवन के लिए आनंद बेहद जरूरी है। लेकिन हर मनुष्य के भीतर आनंद की परिभाषा अलग-अलग है। इस उपन्यास का पात्र आनंद की खोज में ऐसे कई भावों की टकराहट से गुजरता है। जहां से प्रेम की जगह हिंसा और नफरत से रूबरू होना पड़ता है। लेकिन वह प्रेम और आनंद की राह नहीं छोड़ता। उपन्यास का पात्र हर रिश्तो को जीना चाहता है ,यह जानते हुए भी कि इस रिश्ते की परिणति उसकी सोच के अनुरूप नहीं होगी। लेकिन इससे भी उसे आत्मिक आनंद की अनुभूति होती है ।उपन्यास पाठकों को कथावस्तु के सहारे चिंतन के ऐसे मोड़ तक ले जाता है जहां उसे औरों के लिए खुद को समर्पित कर देने में आनंद की अनुभूति होती है। उपन्यास रोचक एवं पटनीय है।
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ब्लाइंड (भाग -30)

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