"अंततः मेरी दूरियां बनाने के हर निश्चय के बाद भी वह मेरे सामने खड़ा था। हां मैं उसे भूलने की कोशिश कर रहा था! खत्म कर रहा था खुद की मजबूरियां !अपनी बेबसी !"उसकी यादों को विस्मृत करते नील एक पेंटिंग बनाने में मशगूल थे अचानक एक जानी पहचानी सी स्पर्श ने उन्हें छुआ ।वे चिहुँक उठे। सामने देखा जॉन अपने चिर परिचित अंदाज में, अधरों पर अधखिली मुस्कान लिए खड़ा था ।
"आखिर तुम चाहते क्या हो जॉन ?"नील के चेहरे पर स्पष्ट रूप से बेबसी झलक रही थी।" क्या तुम मुझे मार डालना चाहते हो? मैं तुम्हारे पास जाना चाहता हूं तो मुझसे दूरियां बना लेते हो और जब कि मैंने प्रण कर लिया था तुम्हें भूलने का तो फिर मेरे पास आ गए! कैसा बदला ले रहे हो मुझसे? उनके शब्दों में दारूणता थी।
प्रतिउत्तर में वह सिर्फ मुस्कुरा रहा था।
"क्यों आए हो यहां?" नील ने खुद संयत करते हुए पूछा ।
"वह क्या है ना कि मेरा कोई अपना रहता है यहां!" वह शरारती अंदाज में बोला।
" पर अब तुम उस अपने को खो चुके हो जॉन! अब वह तुमसे बहुत दूर चला गया है!हां जॉन उसे अपनी खुशियां भी तो चाहिए ।वह क्यों पागलों की भांति तुम्हारे पीछे घूमे? उसे क्यों सिर्फ तुम्हारी खुशियों की ही परवाह हो? उसका भी जीवन है, उसे अपनी खुशियां भी तो मिलनी चाहिए ?"वह निरुद्वेग सुनता जा रहा था।
" सॉरी ....!"वह कान पकड़ते हुए बोला ।
"नहीं जॉन, अब मैं बेवकूफ नहीं बनने वाला। अब मैं भी थोड़ा स्वार्थी होना चाहता हूं ।खुद अपने लिए जीना चाहता हूं। इतना क्या कम है जॉन की इस भौतिकता से इतर अपनी सारी खुशियां तुममें समेट दी! पर तुमने क्या किया? मैंने हर पल, हर समय, तुम्हें महसूस किया। पर तुम जैसे सिर्फ अपना मतलब साधते रहे ।कभी स्वयं को मेरे यहां रख कर देखो छाती फट जाएगी तुम्हारी ।"
"सर प्लीज!" वह गिड़गिड़ाया।
" उफ! हे ईश्वर! मैं क्या करूं?" नील ने उसे सीने से चिपका लिया।" तुम बुरे हो जॉन ,बहुत बुरे !तुम मुझे जिंदा नहीं रहने देना चाहते!" नील उससे लिपट कर रो पड़े।" ऐसा क्यों करते हो जॉन?.... ऐसा क्यों ?नींद के शब्द डूबते जा रहे थे।
" सॉरी सर !मुझे माफ कर दीजिए ।वह बुदबुदाते हुए नील में समाहित होता चला गया।
जीवन फिर से निर्द्वंद्व चलने लगा था। समय बीतने के साथ नील जॉन पर और भी आसक्त होते जा रहे थे ।और जॉन भी नील की भावनाओं को अच्छी तरह समझने लगा था। यूं भी बढ़ती उम्र में जॉन को समझदार बनाना शुरू कर दिया था।अब नील जॉन के प्रति आश्वस्त थे ।वे जॉन से जुड़ी किसी घटना को अपनी डायरी के पन्नों पर अंकित करना न भूलते, चाहे वह उनसे पहली बार मिला हो या फिर उनके साथ चर्च गया हो। या फिर वो उनसे रूठता रहा हो। आज भी वह जॉन की यादों को डायरी के पन्नों पर दर्ज कर रहे थे ।
"आज मेरा एक नए जॉन से परिचय हुआ !हां सचमुच वह काफी बदल गया है ।पहले से वह काफी समझदार और सुधरा हुआ ,शायद वक्त ने या यूं कहें मेरे साथ में उसको बदल डाला ।कल शाम में जब से बात कर रहा था तो अकस्मात इस तथ्य की ओर मेरा ध्यान गया ।खुश हूं मैं, सचमुच बहुत खुश! उसकी बातों में अब एक जिम्मेदारी का अहसास था ।अब मैं उस पर और भी विश्वास कर सकता हूं। अब वह मेरी महत्वतकांक्षाओ को पूर्ण कर सकता है। हां अब वह पा लेगा अपना लक्ष्य ।सचमुच वह मेरा विकल्प बन सकता है। जिन तथ्यों को में सुनाया करता था अब वह खुद ही सच्चाइयों से मुझे अवगत कराने लगा है। अब तो वह मेरे व्यक्तित्व की कमियों को भी दूर करने लगा है ।
जैसे ही नील लिखने के बाद उठे सामने एलिस दिखाई पड़ी।
" अरे एलिस !कहां थी इतने दिन ?दुबि तुम अपनी पेंटिंग के विषय में बात भी करने नहीं आई ?"
"सब बताती हूं सर, पर अभी आपसे कोई मिलने आया है। देखना नहीं चाहेंगे ?"
सामने उनकी शिष्या याना खड़ी थी।
नील के चेहरे पर हर्ष मिश्रित भाव आए।"ओह याना! इतने दिन बाद ?तुम तो मुझे भूल ही गई?"
" मैं इसके लिए माफी चाहती हूं सर, पर आपको कोई कैसे भूल सकता है !मेरे कैरियर में सिर्फ आपका योगदान था, यह क्या कोई भूलने वाली बात है ?इस समय में भारत में हूं और खुद को भी मैंने भारतीय लोगों ,भारतीय विषयों से जोड़ लिया। वहां जाने के बाद मुझे लगा जैसे उनको मेरा ही इंतजार था। वहां के लोग, वहां का वातावरण ,वहां की संस्कृति ,हिमालय की सफेदी ,मैदानों की हरितिमा, सब जैसे इसी याना की बांहे पसारे स्वागत में खड़े थे ।यह देखिए सर उन पेंटिंग्स के फोटोग्राफ जो मैंने भारत में बनाए थे।"
नील की आंखों की चमक फोटोग्राफ देखने के साथ बढ़ती ही जा रही थी।
" ओह याना ! आज मैं गर्व के साथ कह सकता हूं कि तुम मेरी शिष्य रही हो! मानवीय भावनाओं की जिस गहराई को तुमने इन चित्रों में आत्मसात किया है उन्हें तो मै सिर्फ छू सका हूं लेकिन तुम ने इन्हें मूर्तिवत खड़ा कर दिया!"
" सर आप मुझे शर्मिंदा कर रहे हैं !"
"नहीं याना ,मैं भी गया था इंडिया। मिला वहां के लोगों से, जाना वहां की संस्कृति को करीब से। गर्व होता मुझे अगर मैं भारतीय होता ।मुझे खुशी है कि मेरी शिष्यों में तुम हो, एक भारतीय।
वह झेंपती जा रही थी।
"एलिस तुम्हारा काम कैसा चल रहा है?" नील ने पूछा।
" ठीक है सर, मैं आपके और जॉन के विषय में जानने आई थी ।"
नील मुस्कुरा उठे।" जॉन मिला नहीं तुम्हें ?अब तो काफी बदलाव आ चुका है उसमें। अब तो वह अपने विचारों से भी काफी बड़ा हो गया है।"
" सर अब मैं जाना चाहूंगी ।"याना ने इजाजत मांगी।
" याना !"नील ने उसे पास बुलाया।
" हां सर!"
" कुछ नहीं!" नील चाह कर भी कुछ व्यक्त ना कर सके।
वह आश्चर्य से नील को देख रही थी। उसके लिए यह सब नया नहीं था ।वह पहले भी नील के प्रति अपनी भावनाओं को समझती थी, पर नील के सामने उन्हें व्यक्त नहीं कर पाई। आज वही भावनाएं उसने नील में अपने प्रति देखी। उनकी आंखों में एक अभाव के साथ कुछ पाने की उत्कट आकांक्षा लिए ।बढ़ती उम्र का यह एक आस्था युक्त प्रेम था ,जहां भावनाएं सर्वोपरि थी और दैहिक इच्छाएं काफी दूर।हाँ नील को एक विश्राम चाहिए था, जहां सब कुछ शांत हो।उनकी इच्छाएं, उनकी आकांक्षाएं, उनकी भावनाएं भी। याना चाह कर भी कुछ ना कर पाई, वरन एक व्यग्रता लिए वापस लौट गई।
नील भी व्यग्र थे। शायद आज तक वे समझ नहीं पाए उन्हें जीवन से चाहिए क्या ?उन्हें लगता है वह सब कुछ पाकर भी कुछ नहीं पा सके! इच्छाएं तो बचपन से अतृप्त रही पर यह अतृप्ता जीवन में इस ढंग से समाती जाएगी उन्हें इसका भान न था। पर जो भी हो, जीवन की अतृप्तता कभी खत्म होगी....? नील के लिए प्रश्न अनुत्तरित ।एलिस गौर से नील को पढ़ने की कोशिश कर रही थी पर उसके लिए भी सब कुछ अबूझ था!स्वयं नील भी। एलिस को लगा अब चलना चाहिए ,वह उनके तंद्रा को भंग नहीं करना चाहती थी ।उन्हें सोचते छोड़ वह भी वापस लौट गई।
कुछ ही पल बाद घड़ी की सुइयों ने रात होने की सूचना दी तो नील की चेतना वापस लौटी। उन्हें एक पेंटिंग पूरी करनी थी उसमें लग गए,पर वैचारिक रूप से अभी भी खुद को शांत नहीं कर पाए थे। अंततः पेंटिंग अधूरी छोड़ वे बिस्तर पर जाकर पसर गये।
नील के असर या फिर एलिस के प्रभाव ने जॉन को भी चित्रों की तरफ आकर्षित किया । अब वह भी नील से पेंटिंग सीखने लगा था। नील एक आत्मदीक्षित कलाकार थे ।जब वे जॉन को पेंटिंग सिखाते तो उन्हें लगता वे खुद का जीवन दोबारा जी रहे हो और जान भी थोड़ी-थोड़ी शरारतों के साथ नील की प्रक्रिया में सहायता देता ।नील के प्रयासों का प्रतिफल था कि चित्रों में उदासीन जॉन थोड़े ही समय में अच्छा चित्रकार साबित होने लगा। पर पेंटिंग उसकी अभिरुचियों तक ही सीमित रही। लोगों की मानसिकता पढ़ना उसे ज्यादा सुहाता। नील के व्यक्तित्व को जानने के बाद उसे इंसानी भावनाओं से लगाव हो गया था ।इसकी शुरुआत भी नील के चित्रों से ही हुई थी। उनके चित्रों के पात्र जॉन को कुछ सोचने के लिए उद्वेलित करते। वह उनकी मानसिकता पढ़ता तथा उनके विषय में नील से पूछता रहता। इंसान की सोच, उसकी भावनाएं, उसके जीवन, उसकी रचनाओं को किस प्रकार प्रभावित करते हैं इसकी जिज्ञासा उसे हमेशा बनी रहती। उसकी परिस्थितियां कैसे उसकी सोच को बदल देती है ,एक ही हाड़-मांस से बना मानव अलग अलग क्यों सोचताहै? प्रेम, हिंसा, लगाव, नफरत जैसी भावनाएं इस छोटे से मस्तिष्क में कैसे पनपती हैं? यह सब कुछ उसे रहस्यमय लगता।
नील ने जब उसका रुझान इन सब चीजों की ओर देखा तो उसे मनोचिकित्सक बनने के लिए प्रेरित किया जिससे कि वह लोगों की भावनाओं, उनके विचारों को पढ़ सकें। वह विलक्षण प्रतिभा का तो था ही, नील के प्रयासों ने उसको और भी बल दिया ।शीघ्र ही उसका प्रवेश मनोविज्ञान के अच्छे संस्थान में हो गया ।लोगों के विचारों को समझने के लिए उसने स्वयं की एक शैली विकसित की। उसने भावनाओं को समझने का एक अलग संसार बनाया, इसमें सब कुछ उसका निजी था। जल्दी ही संस्थान के शिक्षकों ने उसकी प्रतिभा को समझना शुरू कर दिया। उस समय उसकी उम्र मात्र 20 वर्ष थी ।लोगों की मानसिकता समझने के लिए मशीनी उपकरणों के अलावा जो चीज उसके पास थी वह मरीजों के साथ उसका व्यक्तिगत लगाव और इसकी परिभाषा उसने नील से सीखी थी। सफलता की सीढ़ियां चढ़ता जॉन इस समय नील की संतुष्टि का सबसे बड़ा कारण था ।उन्हें अब अपना जीवन सार्थक लगने लगा किन्तु जॉन की सफलताओं ने उसकी महत्वाकांक्षाओं को बढ़ाना शुरू कर दिया। उसे अपनी विशेषता का अहसास होने लगा जिसने उसमें अहम की भावना को भरना शुरू कर दिया।