नील शहर से दूर ,इन दिनों पेंटिंग के एक कार्यशाला में आए हुए थे जहां विश्व के तमाम प्रतिष्ठित चित्रकार जुटे हुए थे। उन्हें यहां आए काफी समय बीत चुका था और जॉन से मिले हुए भी। यूं तो अक्सर वे व्यस्त रहते पर हल्का सा खालीपन भी उन्हें जॉन की याद दिला जाता। उन्हें लग रहा था कई साल हो गए उससे मिले।
शाम का समय था। नील कॉफी लिए यूं ही विचार मग्न बैठे थे। न जाने क्या सोच रहे थे। बारिश अभी अभी अपनी बूंदे समाप्त कर लौटी थी। वह उदास से मौसम की प्रतिक्रिया में उलझे से अपने विचारों के साथ, पर शाम जैसे खुशनुमा बन कर आई। क्या कहूं ....!कैसे कहूं.....! वही बाल सुलभता....! वही शरारत ....!वही मुस्कान....! नील तो जैसे खिल उठे।.... क्या कोई इतना भी प्यारा होता है....! हां.... सामने जॉन खड़ा था! उनकी खुशियों का पारावार न रहा! उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि सामने वह खड़ा है! सहसा डर से गए वे।..... जब यह सब मुझसे दूर हो जाएगा तब कैसे रह पाऊंगा मैं?.... पर वह.... खैर जैसे भी हो यह पागल झेल लेगा सब। यू भी कुछ चीजों का अपना सबब होता है ।कोई लाख जान छुड़ाए वे तो आनी ही है ।फिलहाल वे आज के इस पल में हमेशा के लिए डूब जाना चाहते थे। बस उसका सामिप्य बना रहे। वह प्यारा सा ,मेरे पास ,मेरे साथ, मेरे जीवन के सफर में ,यूं ही बस ,मेरे लिए ही सब......!"
" सर "अचानक जॉन की आवाज ने उन्हें अपने सोचो के दायरे से बाहर निकाला।" कहां खो गए आप ?"उसने पूछा।
" जॉन तुममें!... तुम्हारी यादों में !...कुछ ही दिनों में न जाने बिन तुम्हारे क्या हालत हो गई मेरी!..... पर अचानक तुम?" उन्होंने पूछा।
" बस आपकी याद आई और मैं चला आया, अच्छा किया न सर?" वह बाल सुलभता से बोला तो नील खिलखिला उठे।
" अंदर आओ मैं तुम्हें पेंटिंग्स दिखाता हूं ।"नील ने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा। जॉन उनके साथ चल पड़ा ।
"मैं बहुत खुश हूं जॉन कि तुम अपने लक्ष्य पर मजबूती से चल रहे हो। मैंने तुम्हारे मनोवैज्ञानिक परीक्षणों के विषय में अखबार में भी पढ़ा। कह नहीं सकता कितनी शांति मिली मुझे!" अपनी तारीफों के साथ वह झेंपता जा रहा था।
" कितना अजीब लगता है ना जॉन एक 10 साल का बच्चा गाडिय़ों के पुर्जों को खोलते- खोलते आज लोगों के दिमाग को पढ़ने लगा! इन 10 सालों में काफी फासला तय कर लिया तुमने!"
" हां सर ,पर आपका सहयोग ना होता तो ......"
".......नहीं जॉन ,इसमें तुम्हारी खुद की प्रतिभा थी। मैंने तो सिर्फ रास्ता दिखाया, अंततः चलना तो तुम्हें ही था।"
" फिर भी सर ,अगर आप ने मुझे थामा ना होता तो?
" जॉन...." नील ने गुस्से से कहा ।"यहां तुम मेरे एहसान गिनाने आए हो? मेरे पास आओ।" उन्होंने बांहे फैलाते हुए कहा ।
जॉन पास आया पर उसे अब सब कुछ असहज लग रहा था, नील से गले मिलना भी! नील ने भी महसूस किया इस परिवर्तन को ।उम्र के साथ जॉन के व्यवहार में भी तब्दीलियां आ गई थी। विशेषतः नील के प्रति। शायद उसे अब नील रूपी सहारे की जरूरत नहीं रह गई थी। पहली बार उसे नील का सानिध्य बुरा लगा।
नील के चित्रोँ को निहारने के बाद वह अन्य चित्रकारों के पेंटिंग की ओर उन्मुख हुआ। वह प्रत्येक चित्र में अपने मतलब की चीजें ढूंढना चाहता। रेखाओं के अलग-अलग प्रयोग, उनकी भाषा ,चित्रकारों के अलग-अलग मूड, उनके व्यक्तिगत सोच की अभिव्यक्ति। पेंटिंग्स के पात्र, जो कुछ भी उसके प्रयोगों में सहायक हो सके ,जिनसे वह मनोवैज्ञानिक तौर पर नया प्रयोग कर सकें।
वहां से वह नील के साथ उस जगह के लिए घूमने निकला। जंगली हरीतिमा से आच्छादित वह क्षेत्र ,खुद एक लैंडस्केप प्रतीत होता। शहर की भयावह कोलाहल से दूर प्रकृति का सानिध्य जैसे रोम-रोम पुलकित कर देता।
थोड़ी देर बाद वे लोग पहाड़ी रेस्तरां में बैठे कॉफी पी रहे थे।
" प्रकृति के बीच बैठना सचमुच एक अनोखा अनुभव होता है, तुम्हें कैसा लगा जॉन यहां आकर ?"
"मैं क्या कहूं सर, बस ऐसा लगता है जैसे यहां आकर सब कुछ थम सा गया हो !"
".....इतनी खूबसूरत है ही यह जगह!" नील ने उसके शब्दों को पूरा किया।" जानते हो हमारी कार्यशाला को यहां शुरू करने का एक खास मकसद यहां की प्राकृतिक सुषमा ही थी। क्योंकि हमारी कार्यशाला सिर्फ एक कला अभियान नहीं, हमारे हृदय में प्रज्ज्वलित विद्रोह और निराशा के नग्न प्रदर्शन की शुरूआत है। मानव लोभ और उसके सत्ता मोह के विरुद्ध एक जवाब ,इसके माध्यम से हम कलाकारों कवियों का दल विश्व युद्ध के विरोध में आवाज उठाना चाहता है ताकि फिर ऐसा ना हो ।हां जान जहां एक और युद्ध की ज्वाला भड़क रही थी, दूर बंदूके छूट रही थी, तो हम घरों में बैठे उसके विरोध में तस्वीरें बना रहे थे। गाना गा रहे थे, और जो भी कर सकते थे कर रहे थे। हम यहां उस कला की तलाश कर रहे थे जो इस पागलपन के युग में मानव के जख्मों को भर सके ।यह कार्यशाला सत्ता लोलुप लोगों के लिए एक क्षोभ है ,खिन्न लोगों का रोष !हमारा उद्देश्य है इस क्षिप्त- विक्षिप्त अवस्था से हटाकर लोगों को बाहर ले जाना। हम इस दूषित वातावरण से लोगों को बचाना चाहते हैं, जो कि युद्ध और स्वार्थ अंधता के कारण इतना ग्रसित हो चुका है। सचमुच पूर्णतः मुक्त करना चाहते हैं सबको।" नील के चेहरे पर एक रोष व्याप्त था।
जॉन के लिए यह सब कुछ नया नहीं था ,उसने देखा की नील इतने साल बाद भी सामाजिक जागरूकता ,विश्व कल्याण के लिए उत्तरोत्तर मुखर ही होते रहे जैसा कि उन्होंने कहा था।
" ओह मैं भी यह क्या लेकर बैठ गया! देखो ना तुम कुछ समय छुट्टी लेकर मुझसे मिलने आए और मैं सामाजिक समस्याओं को लेकर बैठ गया! कैसे थे जॉन वहां पर ?"उन्होंने धीरे से पूछा।
वह अनुत्तरित था।
" मैं जानता हूं ....लेकिन मैं तुम्हें रोज खोता हूं !हर पल... हां जान... इतने साल बीतने के बाद भी बहुत कुछ नहीं बदला!... तुम्हारे प्रति मेरा प्रेम भी !लेकिन ना जाने आज ऐसा क्या महसूस हुआ .......!"
उसने देखा नील की आंखों में एक उदासी थी।
" ऐसा क्यों जॉन !"
"सर हमें चलना चाहिए।" उसमें घड़ी की तरफ देखते हुए कहा।" मैं काफी थका हूं, सोना चाहता हूं ।"
जॉन नील के कमरे में बैठा कुछ सोच रहा था ।नील कुर्सी पर बैठे कागज पर रेखाओं से कुछ बातें कर रहे थे. लकीरों को खींचते हुए। जॉन ने देखा कागज पर एक प्रकार की जटिलता उभरती जा रही थी। नील की दिमागी उलझनें उस पेपर पर साकार रूप ले रही थी। वह बोझिल पलकों से उन्हें निहारता अंततः सोने की कोशिश करने लगा।
नील उसके सिरहाने बैठ गए। उसके सिर पर हाथ रखने के लिए जैसे ही बढ़ाया वह झुंझलाता हुआ उठ बैठा।
" सर प्लीज ....अब मैं बच्चा नहीं ..!"
नील को उसके व्यवहार से झटका सा लगा!
" पर जॉन!"
" नहीं सर ...,अब बहुत हुआ... आपको क्या लगता है आप की इन हरकतों से मुझे आनंद आता है ?...बर्दाश्त करता हूं मैं आपको!" वह चिल्लाते हुए बोला।
नील अवाक थे।
" तो इतने दिनों तक यह सब कुछ......? क्या सब दिखावा था?"
" हां.... आपको क्या लगता है?... यह प्रेम था!.... समर्पण था!"
" पर जॉन....!"
" नहीं सर, अब मैं इस अनैतिकता को बर्दाश्त नहीं कर सकता। बहुत झेला मैंने, अब किसी आत्मा उलझन में नहीं पड़ना चाहता। मुझे भी मानसिक शांति चाहिए। आपके व्यवहार के कारण तो मैं स्वयं की नजरों में गिर ही चुका हूं।"
नील स्तब्ध खड़े थे!
" तुमने पहले क्यों नहीं मना किया?" उन्होंने शांत स्वर में कहा।
" क्या बोलता मैं?. . कैसे बोल पाता?... जानता था समय के साथ सब कुछ बदल जाएगा, पर आप हमेशा मेरा शोषण करते रहे ,भावनात्मक स्तर पर और शारीरिक भी !...अपने आनंद की एक तुच्छ वस्तु समझ ली !"
नील को लगा उनके कान फट जाएंगे !
"नहीं जॉन.....! मैंने तो ऐसा कभी नहीं सोचा!"
" मुझे सफाई नहीं सुनना ... बस मुझे छोड़िए "उसने साफ शब्दों में कहा।
" तुम जानते हो क्या कह रहे हो!"
" हां ....आप एक गंदे इंसान है जिसने अपने चारों तरफ से एक कृत्रिम आभामंडल फैला रखा है, जिससे उसकी गलतियां लोगों को दिखाई ना दे! .. हां मिस्टर नील यह एक कड़वा सच है कि आपने एक छद्म वेश बना रखा है लोगों से सहानुभूति पाने का! आप अपने बेचारगी का सौदा करते हैं अपने आनंद के लिए.... जैसा कि आपने मेरे साथ किया!" वह गुस्से से कांप रहा था।
" जॉन....!" वे चिल्ला पड़े। ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने उनके कानों में पिघला हुआ शीशा डाल दिया हो। कराहकर वे गिर पड़े। जॉन बड़बड़ाता हुआ बाहर निकल गया, शायद कभी ना आने के लिए।