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ब्लाइंड( भाग- 3)

9 नवम्बर 2021

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यह जॉन के साथ नया नहीं था। पिता उसके थे नहीं, मा न जाने कहां चली गई थी। उसे पालने वाला था उसका चाचा रॉबिन। शराब ने उसे कुछ भी सोचने लायक नहीं छोड़ा था!... यह भी नहीं कि जिस जॉन को वह इतना मारता- पीटता है वह छोटा बच्चा है, जो उसके लिए पैसे भी कमाता है।
नील उसे खाने के लिए पूछा, उसने स्वीकृति में सिर हिलाया। भूख नील को भी लग आई थी, थोड़ी ही देर में वह एक रेस्तरां में थे ।खाने और बातों से जान के चेहरे पर कुछ संतुष्टि के भाव थे। उसने आइसक्रीम के लिए कहा.... आइसक्रीम खाते हैं वह नील की तरफ देखे जा रहा था।
'क्यों?... अब क्या हुआ? उन्होंने पूछा।
'सर आप कितने अच्छे हैं! वह बोला।
'तो'
'अगर आप ना होते तो......
......अच्छा अपनी बकवास बंद करो। नील का यह बनावटी गुस्सा था। वह मुस्कुरा उठा।
,यही तो मैं तुमसे चाहता हूं जॉन... तुम्हारी मुस्कुराहट ....तुम्हारी हंसी ....तुम्हारा बचपना तुम्हारा ....नटखटपन। जिसका मुझे हमेशा से अभाव रहा है।
'सर आप कुछ सोच रहे हैं?
'नहीं ...नहीं तो... बस यूं ही ।नील ने मुस्कानें की चेष्टा की।
थोड़ी ही देर बाद नील जॉन के साथ चल पड़े ।बगल की सीट पर बैठा जॉन कभी नील को निहारता, तो कभी खिड़की के बाहर राह चलते लोगों को देखकर कुछ सोचता प्रतीत होता। शायद उन लोगों की वह नील से तुलना कर रहा था।
'सर.. सर... अचानक वह बोल उठा।
'क्या हुआ जॉन? नील ने पूछा।
'कुछ नहीं! वह चुप हो गया। उसका घर आ चुका था।
'सर मैं जाऊं ?उसने कार का दरवाजा खोलते हुए पूछा, उदासी फिर से उसके चेहरे पर  घिर आई थी।
नील ने उसका माथा चूमते हुए उसका गाल थपथप या... जाओ... पर ऐसे नहीं।.. चलो हंस दो।
उसके होंठ के दोनों किनारे मुस्कुराने के अंदाज में फैलते चले गए।
नील ने अपने गाड़ी की स्पीड बढ़ा दी। हां मानस पटल पर अब भी जॉन हावी था। उम्र का बारहवां तेरहवां साल ।एकदम अंजाना सा था पर, वह आज एकदम से करीब !सोचा भी ना था एक दिन वह मेरी कमजोरी बन जाएगा! कुछ ही दिन पहले की तो बात है ,......नील की गाड़ी खराब थी उसे बनवाने गैराज में ले गए । एक लड़का अपने हम उम्र  लड़कों के साथ गाड़ियों के पुर्जे खोलने में व्यस्त था। नील का ध्यान बरबस उसकी तरफ चला गया ।उसने कपड़े और चेहरे पर ग्रीस के दाग लगें हुए थे। उसने नील को देखते ही एक कुशल मैकेनिक की भांति कार का निरीक्षण करते हुए कहा....सर बताइए क्या ठीक करना है?
नील उसे एकटक देखे जा रहे थे ।गहरी नीली आंखें ,गोरा- चिट्टा सा। चेहरे पर स्वाभाविक मुस्कान की वजह से चेहरे तक बिखर आये बाल, मासूम सा चेहरा, किसी का भी ध्यान खींचने के लिए काफी था।
'सर!'
अचानक उसके दोबारा बोलने से नील की तंद्रा टूटी।
'तुम्हारा नाम क्या है? वह पूछ बैठे।
'जॉन, उसने उत्तर दिया।
नील ने उसे काम समझाया और वापस चल पड़े।साथ में जॉन की छवि भी थी। जॉन के अंदर एक विचित्र से उष्मा थी जिसने उन्हें उद्वेलित कर दिया ,इसलिए वे उसको अपने भीतर से निकाल ना सके। नील ने रात में सोते समय भी उस उष्मा को महसूस किया। सुबह होने के बाद सबसे पहला काम था जॉन के पास जाना। तुरंत पहुंच भी गए, पता चला वह अभी आया नहीं ।इंतजार ने नील की बेचैनी बढ़ा दी !कुछ क्षण बीते होगें... उसके एक साथी ने बताया वह आ रहा है।
नील ने देखा अपने चिर परिचित मुस्कान के साथ दोनों हाथ हिलाता, मस्ती भरी चाल में, चला आ रहा है ।वह नील का अभिवादन करना नहीं भूला।
'सर देखिए आपकी गाड़ी तैयार है ।उसके शब्दों में एक उत्साह भरा हुआ था।
नील ने उसे पैसे दिए और गाड़ी का निरीक्षण करने लगे, वह पैसे अपने मालिक को देकर आ चुका था।
'सब ठीक है ना सर? नील के गाड़ी स्टार्ट करने पर वह बोला।
'हां'।
जॉन?'
'हां सर।'
"तुम यह काम क्यों करते हो !.....तुम्हारी पढ़ाई?
नील के इस प्रश्न पर वह खामोश था
'बोलो'... नील ने दोबारा पूछा।
'वह खुद नहीं जानता '.....जॉन का संक्षिप्त सा उत्तर था ।उन शब्दों को बोलते जॉन की आंखों की विवशता स्पष्ट परिलक्षित हो रही थी।
नील वापस लौट पड़े मन में एक निश्चय भी था।
शाम हो चुकी थी।  थोड़े जरूरी काम निपटा नील लॉन में आकर बैठे, चेहरे पर कुछ सोचने के भाव थे।
जॉन... उसकी मुस्कुराहट... उसका अंदाज ....उसकी दयनीय स्थिति.... अचानक वे झल्ला उठते। एक अनजाने के लिए ऐसा क्यों !पर हृदय नहीं मानता.... उन्होंने फोन उठाया, उंगलियां एक जाने पहचाने नंबर पर थिरकने लगी।
'हेलो ...मिस्टर रोनाल्डो?'
'यस ...मैं बोल रहा हूं ।'प्रतिउत्तर मिला।
'आप कौन?'
'मुझे एक ट्यूटर चाहिए, जो शाम को मेरे घर आ सके।'
रोनाल्डो एक निजी स्कूल के प्रबंधक थे।जरूरत पड़ने पर लोगों के घर अपने शिक्षक ट्यूशन के लिए भी भेजते।नील की एक चिंता खत्म हो गई थी ।रात का खाना उन्होंने होटल से मंगवाया। सोने चले तो आंखों में कुछ अविस्मृत सा आया। पेंसिल लेकर शुरू हो गए, उंगलियां पेपर पर तैरती जा रहे थी। चित्र जब पूर्ण हुआ तो एक जाना पहचाना चेहरा सामने नजर आया। पेपर पर जान अपनी मासूमियत लिए मुस्कुरा रहा था ।उन्होंने उसे सामने मेज पर रख दिया और नजरे उस पर गड़ा दी।न जाने कब आंख लगी उन्हें पता भी न चला।
सुबह नील का सबसे पहला काम था जॉन की पढ़ाई के लिए तैयार कराना ।वे गैराज पर पहुंचे तो देखा वह भी चला आ रहा है ।जॉन की निगाहों में आशंका थी ....उसने पूछा, क्या गाड़ी फिर से खराब हो गई?
नील को उसके  सोच पर हंसी आ गई।
'अरे नहीं जॉन... नील ने बताया कि उनकी इच्छा है कि वह इन कार्यों को छोड़ पढ़ाई पर ध्यान दें।
जॉन आश्चर्य से नील को देख रहा था।
'क्या हुआ? नील ने पूछा।
सर आप मेरे लिए.... जॉन के मुंह से बोल नहीं फूट रहे थे। उसने मना करना चाहा।
'पर क्यों?.. जॉन पढ़ना तुम्हें पसंद नहीं है? नील ने अपनी आंखें उस पर टिकाये रखी थी।
'है सर ...पर आप!'
.....मुझे कुछ नहीं सुनना, बस तुम मेरे पास आ रहे हो। नील नहीं उसके बात काटते हुये कहा।
आगे जॉन ने कुछ नहीं कहा ।बस स्वीकृत में सिर हिला दिया।
नील वापस जा रहे थे। जॉन की आंखे दूर तक गाड़ी का पीछा करती रही। नील के प्रति उसकी आंखों में एक विशेष सम्मान उभर आया था।

Jyoti

Jyoti

👌

31 दिसम्बर 2021

31 दिसम्बर 2021

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रचनाएँ
ब्लाइंड
5.0
प्रस्तुत उपन्यास" ब्लाइंड: आनंद की खोज एक पीरियड ड्रामा है जो वर्ल्ड वार के समय घटित हुआ था। जिसके विरोध में साहित्यकारों, चित्रकारों, संगीतकारों ने मिलकर एक आंदोलन शुरू किया था जिसे दादावाद नाम दिया गया था। इसका नायक एक बाइसेक्सुअल चरित्र है जिसे बचपन में ही यौन शोषण की प्रक्रिया से गुजरना पड़ा... परिणामतः वह सामान्य नहीं रह सका और जीवन पर यह दर्द उस हावी रहा। एक ही परिवेश और पृष्ठभूमि में पलने बढ़ने वाला मनुष्य चिंतन के धरातल पर अलग-अलग सोच का प्रतिनिधित्व क्यों करता है! प्रेम ..हिंसा ...लगाव और नफरत जैसी भावनाएं किस तरह उसके मन मस्तिष्क में पनपती और आकार लेती हैं ।कैसे वह इनको जीता और व्यक्त करता है। जीवन के लिए आनंद बेहद जरूरी है। लेकिन हर मनुष्य के भीतर आनंद की परिभाषा अलग-अलग है। इस उपन्यास का पात्र आनंद की खोज में ऐसे कई भावों की टकराहट से गुजरता है। जहां से प्रेम की जगह हिंसा और नफरत से रूबरू होना पड़ता है। लेकिन वह प्रेम और आनंद की राह नहीं छोड़ता। उपन्यास का पात्र हर रिश्तो को जीना चाहता है ,यह जानते हुए भी कि इस रिश्ते की परिणति उसकी सोच के अनुरूप नहीं होगी। लेकिन इससे भी उसे आत्मिक आनंद की अनुभूति होती है ।उपन्यास पाठकों को कथावस्तु के सहारे चिंतन के ऐसे मोड़ तक ले जाता है जहां उसे औरों के लिए खुद को समर्पित कर देने में आनंद की अनुभूति होती है। उपन्यास रोचक एवं पटनीय है।
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