नील के लिए सब कुछ अप्रत्याशित था जिसकी उन्होंने कभी कल्पना भी ना की थी। वह सोच भी नहीं सकते थे कि जॉन का व्यवहार उनके प्रति कभी ऐसा भी हो सकता है। उन्हें ऐसा लग रहा था जैसे सब कुछ खत्म हो गया.....! सब कुछ तो कितना अच्छा चल रहा था... पर वह ?नील के अंतर्मन में ना जाने क्या-क्या घुमड़ रहा था ।
"गलती ही तो की थी जॉन ने!... औरों से भी बड़ी! उसने मेरे आत्म सम्मान को चोट पहुंचाया था ।....मेरे स्वाभिमान को। शायद इसके लिए मैं उसे कभी माफ ना कर सकूं ।...करना पड़ेगा... ।मैं जानता हूं ,उसने और से मुझे ज्यादा दिया ।पर मैंने भी खुद के दिए का हिसाब ना रखा ।हां उसने छला है मुझे !...मेरी आत्मा तक को!... मैं खुश था अपनी खुद की स्थिति से। मुझे नहीं चाहिए था जीवन में कुछ भी ।उसने लालच दिया था मुझे जीवन की रंगीनियों का। क्यों वह मेरे साथ चला इतने दूर तक ?"नील खुद के आत्म दहन में सुलग रहे थे।
" हां जान तुमने मुझे जीवन के प्रति लालची बनाया था...! तुम ने दिखाई थी जीवन में प्रेम की झलक वरना मैं तो इसे कब का विश्रुत कर चुका था। क्या अजीब था हमारे रिश्तो में...? सिर्फ एक दूसरे को संभालना था ।इसमें नैतिकता और अनैतिकता जैसी बात ही ना थी ।पर तुम वह भी ना कर सके। अगर यह रिश्ता तुम्हें अजीब लगा था तो मुझे रोकना चाहिए था? पर तुमने ऐसा नहीं किया? खुद के फायदे के लिए इसे खींचते रहे और अंततः जबकि तुमने सब कुछ पा लिया मैं विचित्र हो गया ?...तुमने बड़ा षड्यंत्र किया मेरे साथ! मैं गलत था जॉन! मैं भी मानता हूं इस तथ्य को।... पर अंततः में टूटा था...! आत्मा तक से! गिरने वाला यह नहीं देखता कि वह सहारे के लिए किस चीज को पकड़ने जा रहा है ।क्या मैं उस समय गलत नहीं था जबकि तुम्हारी अपनी जरूरतें थी?" नील को लगा उनका मस्तिष्क फट जाएगा। उन्होंने आंखें बंद कर ली शायद संसार से अपने आप से छुपाना चाहते थे ।
कुछ पल बाद वे अपना सामान सहेज रहे थे ,खुद की वापसी के लिए।
"क्या हुआ मिस्टर नील? अचानक आप वापस जा रहे हैं?" उनके एक मित्र ने पूछा।
" हां मेरी मानसिक स्थितिया मुझे यहां रुकने की इजाजत नहीं दे रही ।आप समझ सकते हैं कि ऐसी हालत में पेंटिंग बनाना मेरे लिए लगभग असंभव है ।"वह चल पड़े।
घर आकर भी वे शांत ना रह सके ।उन्हें लगता जैसे यह पूरा परिमंडल ही स्याह होता जा रहा है। उनका सब कुछ उनके विचारों के साथ सिमटता जा रहा था ।
"तुम भले ही न समझो पर मैंने तुम्हें जिया है जॉन। तुम तो जानती हो ना जेनी?" नील की कल्पनाओं में एक लड़की की तस्वीर उभरी ।"मैं ऐसा क्यों हूं जेनी...? ऐसा क्यों ?काश वह मुझे समझ पाता !अपने बुरे व्यवहार के बाद भी जॉन जैसे उन में समाया हुआ था।" क्या उसे यह सब ना महसूस होता होगा ?वह तो जानता है मुझे.... मेरे प्रेम को!.... फिर भी..! जॉन तुम कितने स्वार्थी हो ?"नील ने उसे मन ही मन कोसा।
कभी भी वे सोचते जोरों से चिल्लाऊं। फाड़ डालूँ अपने कपड़े ।उसे मार डालूँ... या खुद को। उफ़ जॉन! उन्होंने अपना सिर दीवार पर दे मारा, पूरा माथा झनझना उठा ।ओह ईश्वर !...मैं क्या करूं?.. उन्हें कभी खुद पर तरस आता तो कभी गुस्सा। वे बिस्तर पर गिर पड़े ।सोचा उसकी यादों को झिड़क दें। सामने आलमारी से एक किताब निकाली ...नहीं पढ़ सकता !.....यह बेचैनी कुछ भी नहीं करने देती! सामने पड़ी जॉन की तस्वीर जैसे उनकी भावनाओं का मजाक उड़ाती प्रतीत हुई ।उन्होंने उसे उतारा और जमीन पर दे मारा। छनाक की आवाज के साथ उसके टुकड़े पूरे फर्श पर फैल गए ।".....इतने ही टुकड़ों में मैं जी रहा हूं जॉन !...शायद तुम देख न पाओ... पर महसूस भी नहीं करते ?"वे रो पड़े, उसकी तस्वीर सीने से चिपका ली।"... ऐसा क्यों जॉन ?मैं ने तुम से प्रेम किया क्या यह मेरी कमी है ...?मैं तुम्हारा अपनत्व पाना चाहता हूं क्या यह मेरी गलती है...? मुझे तुम्हारा साथ चाहिए क्या यह मेरी स्वार्थपरता है .....?तस्वीरें बोला नहीं करती पर जॉन भी तो नहीं बोलता !"
वह उठे ,अचानक चीख पड़े फर्श पर पड़ा शीशे का एक टुकड़ा उनके पैर में धस चुका था ।उन्होंने उसे निकालने की कोशिश नहीं की। पूरे फर्श पर लालिमा फैलती जा रही थी। चक्कर आने लगा। वे बिस्तर पर जाकर बैठ गए। दिमाग जैसे किसी अंधेरे में डूबने लगा। बेहोशी पूरे वजूद में समाती जा रही थी ।
"जॉन तुम आ गए ?...आ गए? नील के चेहरे पर चमक सी आ गई ।"मेरे साथ ऐसा क्यों करते हो ?"उनके शब्दों में दारूणता थी। वह एकटक नील को देखे जा रहा था।" तुमने देखी मेरी हालत?... क्या मैं ऐसा था ?क्यों तुम मुझसे दूर जाकर मुझे प्राण विहीन बना देते हो?... तुम्हें मुझ पर तरस नहीं आता?" जॉन बिना किसी प्रतिक्रिया के उठा और जाने लगा। नील चीख उठे," नहीं जॉन... सुनो... रुको..." वह नहीं रुका ।नील चीखते रहें ।चेतना जब वापस आई तो देखा फर्श का खून सूख चुका था। पैर जैसे सुन्न हो गया था ।असहनीय पीड़ा के कारण वे उठ भी नहीं पा रहे थे ।उन्होंने पैर से शीशे के टुकड़े को निकालने की कोशिश की पर दर्द के मारे तड़प उठे। किसी तरह घिसटते हुये फोन के पास पहुंचे ,डॉक्टर का नंबर डायल किया और वहीं गिर पड़े एक तड़प और बेचैनी के साथ।
" हेलो मिस्टर नील अब कैसा महसूस कर रहे हैं आप?" नील ने आंखें खोली वे अस्पताल में थे ।
"आपको पता है, कितना सारा खून बह गया था आपका! आपकी जान भी जा सकती थी!... थैंक्स गॉड कि आपके ग्रुप का खून हमारे अस्पताल में था ।"
सर अभी भी दर्द से फटा जा रहा था जेहन में अभी भी उन्माद सा बाकी था ।
"कैसे हुआ सब?" डॉक्टर ने पूछा ।
"वह क्या है कि मैं तस्वीर उठाने के चक्कर में फिसल गया, क्या अब मैं घर जा सकता हूं?" उन्होंने डॉक्टर से पूछा।
" बेशक, हां कुछ दवाइयां फिलहाल आपको कई दिनों तक खानी पड़ेगी।"
" जी" नील ने स्वीकृति में सिर हिलाई।
" क्या हुआ? ऐसा लग रहा है जैसे आप कहीं खोए से हैं!" डॉक्टर ने नील की आंखों में झांकते हुए कहा ।"बिल्कुल अपने चित्रों के मॉडलों की तरह। खोई खोई आंखें ,चेहरे पर एक अजीब सा सूनापन !"
"नहीं डॉक्टर !"उन्होंने बहाना किया ।"थोड़ा दर्द के कारण ....दर्द ...हां यही तो मैं जीता आया हूं !..अब तक। कभी यह दर्द अपने चित्रों के माध्यम से लोगों को बांटता हूं तो कभी खुद में आत्मसात कर लेता हूं ।एक हमदर्द भी मैंने ढूंढ लिया था ,....पर अब!.... तुम सबसे बड़े बेदर्द निकले जॉन!" मेरे वजूद के संवेदनशील तारों को तुमने काफी गहराई तक छेड़ दिया.... एक असहनीय पीड़ा के लिए!... जिसके दर्द के शिकन को चेहरे पर भी नहीं ला सकता।... हां नहीं ला सकता... क्योंकि इससे मेरी सामाजिक प्रतिष्ठा आड़े आती है। पर सहना तो है ...सहना ही होगा ....जब तक तुम चाहो।.... इस बेनाम रिश्ते की परिभाषा समाज नहीं समझ पाएगा.... नहीं समझ सकता कोई मेरी तड़प!उफ़..." नील अजीब से द्वंद्व में उलझते जा रहे थे ।
"मिस्टर नील कहां खो गए आप ?"
"हां खो ही तो गया हूं मैं....!" नील के अंतर से आवाज आई।".... क्या खोना सिर्फ मेरे हिस्से में है डॉक्टर ...?मेरे चित्रों के मूक पात्रों के मूक संवेदनाओं की तरह ....?"
"मिस्टर नील, मैं आपसे कुछ पुछ रहा हूं ?"
"ओह सॉरी डॉक्टर ...!कुछ कहा आपने ?"
"कुछ नहीं, आप काफी परेशान लग रहे हैं! आराम कीजिए। आप कहे तो मैं किसी को साथ भेज दूं ?"
"नहीं मैं चला जाऊंगा ।"
कुछ ही पल बाद वे कार से घर की तरफ जा रहे थे। चलने से पैरों में खून रिस आया था, चेहरे पर दर्द की शिकन नजर आ रही थी। एक ऐसा दर्द जिसे नील खुद आत्मसात करना चाहते थे।
" हां मैं खुद जिम्मेदार था इस दर्द का! किस आत्म- संताप में जी रहा था मैं..... और किसके लिए? क्या जीवन की सार्वभौमिकता खत्म हो गई है मेरे लिए ?...क्यों औरों से विलग हूं मैं?... क्यों दूसरों के लिए सुखद उद्देश्य के बावजूद दुख मेरे अस्तित्व बनते जा रहे हैं ?...समाज मुझे मेरे पेंटिंग्स के लिए जानता है ।उसे मेरे चित्रों के दुख उसकी दारुणता दिखाई देती है। उसके पात्र, उसके जीवन के साक्ष्य, वे आकृतियां, उनमें करुणा लाती हैं ।पर मैं ....?क्यों नहीं समाज मुझ में झांकना चाहता ?क्या मैं उन्हें नजर नहीं आता?.... वह क्यों नहीं सोचते कि मेरा खुद का आत्मदहन हीं चित्रों की खिड़कियों के माध्यम से झांकता है ।....हां मैंने मुखौटा लगा रखा है!... नहीं दिखाना चाहता हूं खुद को ।यूं भी समाज से मेरी कोई अपेक्षा नहीं .....पर जॉन?उसने तो महसूस किया है मुझे ।वह तो जानता है मेरी संवेदनाओं को? क्या मेरी विकलता वह नहीं जानता ?जीवन के इस भटकाव के अनंत छोरों का एक छोर वह था। मैं उसे महसूस करके ही तो उस रास्ते पर चला था ।नहीं जानता था यह एक मृग- मरीचिका है!.... मैं सफल हूं, मेरा जीवन रंगों से सराबोर है। पर इन रंगों की कालिमा सब को रंगीनिया देकर भी मैं नहीं मिटा सका। जीवन में सब कुछ सुखद नहीं होता..... पर इतना भयावह भी तो नहीं होता!" दर्द जैसी आंखों से बाहर झांकना चाहता था।"... पर नहीं ....नही रो सकता मैं ।..मुझे मेरे दर्द को जीने में भी समाजिकता आड़े आती है। समाज को मैं खुशियां देता हूं ,मुझे खुश रहना ही होगा ।हमेशा खुश।"नील को जॉन के मिलन के प्रथम दिन की मुस्कुराहट याद आई, दर्द अंदर विलुप्त हुआ और आंखों में चमक आ गई। शीशे में उन्होंने अपना चेहरा देखा ,"हां यह है गुस्ताव नील, एक प्रसिद्ध चित्रकार ....एक संतप्त इंसान नहीं।"
उन्होंने गाड़ी रोकी, सामने उनका घर था।वे लंगड़ाते हुए अंदर घुसे, देखा तो बिस्तर के एक कोने पर जॉन की तस्वीर पड़ी थी। ना चाहते हुए भी फूट-फूटकर रो पड़े।