नील की उपलब्धियों में आज और भी विस्तार होने वाला था। आज के तमाम प्रतिष्ठित समाचार पत्रों में उनके चित्रों के चर्चे थे ।उनके चित्रों का नया रंग लोगों को पसंद आ रहा था ।उनके बनाए हुए नए चित्रों की प्रदर्शनी अपेक्षाकृत ज्यादा सफल रही ।जो आलोचक उन्हें एक ही ढर्रे पर चलने वाला बता रहे थे उनके लिए एक करारा जवाब था। ज्यादातर आलोचक उन्हें" वॉन गॉग" का उत्तराधिकारी मानते थे ।जो समाज के पिछड़ो, मजदूरों की तकलीफ़ो, उनके दुखों के प्रति अत्यंत सहानुभूति अपने चित्रों में दर्शाता था ।यह वह वक्त था जब प्रभाव वादी चित्रकारों की चारों तरफ धूम थी। पर नील इस वाद की प्रक्रिया से इतर खुद की भावनाओं के चित्रण में लगे रहते। पर अचानक अपने चित्रों के इस परिवर्तन उनको चर्चा का विषय बना दिया था ।इसी संदर्भ में आज उनकी प्रेस कॉन्फ्रेंस थी ।वे नियत समय पर उनके पास पहुंच चुके थे ।प्रेस वालों ने उनका जोरदार स्वागत किया और बाद में शुरू हुआ प्रश्न उत्तर का दौर।
'मिस्टर नील, हम सबसे पहले आपके इस प्रदर्शनी के सफल होने के लिए बधाई देते हैं।' पत्रकारों के समूह में से कई लोगों की आवाज आई।
नील ने उन्हें धन्यवाद दिया।
'अब मैं आपके इनमें चित्रों के विषय में जानना चाहूंगा सर?' इनमें से एक ने कहा।...' कुछ खास विषय, खास रंग, ज्यादातर यही आपके चित्रोँ में नजर आते रहे, पर अचानक यह परिवर्तन....?'
'इसको आप मेरे जीवन के परिवर्तन से जोड़ कर देख सकते हैं ।आरंभ में लक्ष्यविहीन -सा ,अभाव में सिमटा ,जीवन के हर पल को जीने के लिए उससे भीषण संघर्ष करता , यही सब कुछ था जीवन में ।फिर रास्ते बदले, मंजिल मिलने लगी, जीवन थोड़ा-थोड़ा सुखद होने लगा ,इन्हीं का रूपांतरण मेरे कैनवासो में था। फिर भी इस जीवन से कुछ अलग पाने की आस अब भी थी। कुछ अंजाना ....कुछ अपना -सा जो मेरे लिए चिरंतन हो।'
'क्या आपने वह पा लिया?' दूसरे ने पूछा।
नील के चेहरे पर एक आधा मिश्रित मुस्कान फैल गई ।'आपको आश्चर्य होगा कि मैं ,हमेशा रंगों से खेलने वाला सबसे ज्यादा रंगहीन जीवन मैंने ही जीया ।पर अब इन रंगों का प्रस्फुटन, मेरे जीवन के नए रंगीनियों के साक्ष्य हैं। नील के चेहरे पर संतोष के भाव थे ।सब लोग उनकी बातें शांति से सुन रहे थे।
'सच कहूं तो अपने दुख ,अपने आभाव ,उत्तेजना ओं का चित्रण मेरे लिए अभिशाप बन गया था। पर अब मेरी दृष्टि स्थूल से सूक्ष्म बन गई है। अभी तक में इन तथ्यों की ऊपरी सतह तक ही सीमित था..... बाह्रंय रंग ;रूप में टिका -फसा था ।पर अब मेरी दृष्टि खुल चुकी है .....एक्सरे की राशियों के समान उस सतह के नीचे स्थित उच्चतर सत्य का दर्शन करने लगा हूं। इसलिए प्रतीत सत्य से हटकर ,अपने दारुण पहलुओं का मंथन कर, में उसकी गहराई में जाएं ,इससे उत्प्रेरित हो नया चित्रण करने लगा ।हां यह अलग बात है कि इसके लिए विधाता ने मेरे पास एक प्रेरणा स्रोत भेज दी।'
'आपके लिए कला क्या है ?आप इन्हें किन अर्थों में प्रयोग करते हैं?' उन्होंने पूछा।
'अभिव्यक्ति के अर्थों में ।'नील ने जवाब दिया ,'कला मेरे लिए एक जीवन सहचरी की भांति रही... एक माता.... एक दोस्त के रूप में। जब भी कोई पीड़ात्मक अनुभव असह्य हो जाता, मैं उसे कला के माध्यम से बांट लेता हूं ।यही कारण है कि मेरी पिछली कृतियां मेरे बीते हुए संतप्त जीवन की संतप्त ता को इंगित करती है। कला का मर्म अनुकृति नहीं, बल्कि अनुसूचित करना है ।शुक्राचार्य जैसे भारतीय विद्वानों ने भी नकल करने को कला नहीं माना, अपितु उनके लिए कला दैविक गुण की अभिव्यक्ति है ।और इस अभिव्यक्ति में उन्होंने हृदय के सच्चे स्वरूप को देखकर ,कलाकार के लिए जप, तप, ध्यान के संयम बताए गए हैं। ध्यान से योग की स्थिति में पहुंचने पर ही उसे दिव्य दृष्टि प्राप्त होती है। तभी वह सच्ची कलाकृतियां निरूपित कर पाता है.' नींल ने अपनी बात समाप्त की।
'अभी-अभी आपने किसी प्रेरणास्रोत की बात की थी ,कौन है वह?'
सहसा नील के चेहरे पर मुस्कान तैर गई।.....' है एक प्यारा सा!.... नील ने जवाब दिया ।.....इतना प्यारा है कि स्वयं प्यार को भी उस पर प्यार आ जाये....चंचल इतना की हवा भी शर्मा जाए..... मासूम इतना कि हमेशा बच्चा नजर आए... मोहक सपनो सा अद्भुत.... इन्द्र धनुष-सा रंगीला.... बिल्कुल सूर्य रश्मियों -सा निश्पाप .... ऐसा है मेरा प्रेरणाश्रोत.... एक प्यारा सा बच्चा!'
कुछ देर के लिए सब शांत पड़ गए।
'आपने अभिव्यक्ति के लिए कला ही को क्यों चुना? साहित्य, संगीत को क्यों नहीं?' एक ने चुप्पी तोड़ी।
'जहां तक संगीत की बात है ,यह चित्र कला का ही एक विशुद्ध रूप है ।जिस प्रकार संगीत के स्वर सीधे आत्मा पर गहरा असर डालते हैं, उसी प्रकार चित्र में बने रूपाकार संगीतात्मक राग ही होते हैं ।और रही साहित्य की बात ,इससे भी मैं भी विलग नहीं रहा.... थोड़ा बहुत लिख भी लेता हूं ,पर आत्म संतुष्टि मुझे चित्रों से ही मिलती है ।मेरे खुद के रंगहीन जीवन की संपूर्णता मेरे कैनवास के रंगों में ही मिलती है ।'नील ने कहा।
'धन्यवाद सर ,आपने अपना कीमती समय हमें दिया। हम आपके आभारी हैं।' वे लोग बोले.
नील में भी उनका अभिवादन किया और अपने घर लौट पड़े।