जॉन... जॉन ....वापस आओ।' नील चिल्लाए।
जॉन चुपचाप खड़ा रहा।... निश्चल ...निस्पंद- सा! नील उसके करीब पहुंचे, जॉन ने अपनी आंखें मीच ली।
'जॉन.. क्या हुआ?' नील ने उसके हाथों को नीचे किया, देखा तो उसकी आंखें भर आई थी।
"जॉन'....
वह नील के सीने से चिपक गया।
'क्या हुआ ?'...उसकी भावुकता नील को भी समेट चुके थी।
'कुछ नहीं सर।' ....शायद उसे शब्द नहीं मिल रहे थे।
'मैं जानता हूं यह सिर्फ भावनाओं की अतिरेकता है। मेरे उसे पढ़ाने के फैसले ने उसके बाल मन पर गहरा प्रभाव डाला था। जहां उसे प्यार के दो बोल नहीं मिलते थे, वह इतना स्नेह सहन नहीं कर पा रहा था!...' नील सोच रहे थे। संभवत वे जॉन के लिए श्रद्धा के पात्र हो गए थे।
जॉन का नील के बंगले पर पहला दिन था ।वे जॉन को अंदर ले गए। वह एक एक वस्तु को बाल सुलभ जिज्ञासा से निहारता जा रहा था। सहसा कोई चीज उसे पसंद आती तो वहीं रुक जाता। दीवार पर टंगे एक पेंटिंग के पास में खड़ा हो गया ,चित्र के पार्श्व में मरियम की आकृति थी।.. उसके अग्रभाग में सांसारिकता में उलझे भौतिकता की अंधी दौड़ लगाते लोगों को दिखाया गया था। बगल में एक रुग्ण शिशु पूरे दृश्य को निहारा था।... यह पेंटिंग नील की अपनी जीवन गाथा लगी।
'क्या देख रहे हो ?'नील ने पूछा।
'मरियम ......और खुद को भी! क्यों छोड़ गई मेरी मां मुझे ऐसे लोगों के बीच? खुद तो ब्रह्मांड में विलीन हो गई पर मुझे..... क्या मैं असहाय..... खुद को.... ऐसे लोगों के बीच समेट पाऊंगा?.. . बताइए सर?"
'मैं हूं ना जॉन।' नील उसे खुद में समेटते हुए बोले।
'सर ,अंकल इंतजार कर रहे होंगे !मैं जाऊं?' उसने पूछा।
"जाना जरूरी है....? यहीं रुक जाते तो....?
'वे नाराज होंगे सर... मैंने उन्हें कुछ बताया भी तो नहीं।'
'चले जाना, पर कुछ खा तो लो।' नील ने उसे खाने के लिए बैठाया । भूख उन्हें भी लग आई थी।
'नहीं सर ।'जॉन ने मना करना चाहा।
'मान जाओ वर्ना...... नील ने रुठते हुए कहा, और खाना निकालना शुरू किया।
खाना देखते ही जॉन उस पर टूट पड़ा. सुबह से उसने शायद कुछ खाया भी नहीं था।
थोड़ी देर बाद नील जॉन को छोड़ने उसके घर जा रहे थे। पहुंचने पर एक गंजा सा व्यक्ति इंतजार करते मिला कद सामान्य से कम,... आंखें भूरी... गाल थोड़े पिचके हुए ...फटी हुई टी-शर्ट और गंदला सा पै़ट पहने हुए था ।उसके मुंह से सस्ती शराब की महक आ रही थी ।वह जान को डांटना चाहता था पर नील की मौजूदगी उसे ऐसा नहीं करने दे रही थी।
'सर यह मेरे अंकल है।' जॉन ने उस गंजे की तरफ इशारा किया। उस व्यक्ति में अभिवादन के लिए हाथ उठाया।
'तुम्हारा नाम?' नील ने पूछा।
'रॉबिंसन'
'सर आप अंदर आना चाहेंगे ?'जॉन ने संकुचित भाव से कहा, उसे संदेह था कि वे उसकी झोपड़ी में आना चाहेंगे।
नील ने उसकी इच्छाओं का सम्मान किया ।...घर क्या था... दीवारों ने छत को थामे खुद की इज्जत को बचाए रखा था। कमरे के थोड़े हिस्से को रसोई घर की शक्ल दे दी गई थी। वहीं पर दो चार बर्तन बेतरतीब पड़े हुए थे ।पास में एक स्टोव पड़ा हुआ था। बगल में एक चार पाई थी जिस पर बिस्तर जैसा कुछ पड़ा हुआ था।
'मुझे नहीं लगता व्यक्ति उस पर सुकून के साथ सो सकता है।'.... नील ने सोचा।.... वहां का पूरा माहौल घुटन भरा था, नील बाहर निकल आए।
'जॉन मैं चलूं ?'नील ने पूछा।
'जी '....उसने दोनों हाथ प्रार्थना के अंदाज में उठा लिया।
'क्या हुआ जॉन....?'
'कुछ नहीं सर, आप सचमुच बहुत अच्छे हैं!'
'जॉन !'....नील ने बनावटी गुस्से से कहा तो वह खिलखिला उठा।
नील ने गाड़ी स्टार्ट की और वापस चल पड़े।
'हां सचमुच में आज बहुत खुश था ...!जीवन में मैंने काफी उपलब्धियां प्राप्त की थी लेकिन जो संतुष्टि जॉन के लिए हुई थी वह एक स्वर्गीय अनुभव था! मेरा उसके घर ,जाना मैंने महसूस किया उसके लिए अति आनंदित करने वाला था!... मैंने कितनी पार्टियां देखी, कितनी सभाओ गया ।....जहां मेरा भव्य स्वागत किया गया ,पर जो सहजता उसके आडंबर रहित स्वागत में थी इससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका।' ....यह सोचते सोचते नील का चेहरा एक अद्भुत शांति से परिपूर्ण होता जा रहा था ।आत्म विभोर जॉन का चेहरा एक चलचित्र की भांति नील की आंखों के आगे तैर जाता। उन्होंने आंखें बंद की जैसे उसमें जॉन के अस्तित्व को समेट लेना चाहते हो। घर पहुंचने तक रात काफी हो चुकी थी ।कुछ जरूरी काम निपटाने के बाद वे बेड पर थे। सामने थी जॉन की पेंटिंग और उसका मुस्कुराता हुआ चेहरा।
'मैंने बचपन से ही बहुत कुछ महसूस किया ,पर रिश्तों की गरिमा उसकी उष्मा कभी न जाना ।...पर यह रिश्ता सचमुच अजीब था!... महज संयोग ही तो था उसका मिलना!. सोच भी नहीं सकता था इतना आकर्षण होगा !....इतना प्रेम होगा!..... गर्व कर सकता हूं मैं खुद पर ,अपने खुद के आत्मीय सुखों के लिए। नील उससे विलग नहीं होना चाहते थे। जॉन की यादें लिए वे एक सुखद नींद में निर्लिप्त होते जा रहे थे।
'तूने इतनी देर क्यों लगा दिया आज?... तुझे पता है शाम को मुझे भूख जल्दी लग आती है, और तेरे साथ वह कौन था?' रॉबिंसन ने प्रश्नों की झड़ी लगा दी।
"गुस्ताव नील" सुना होगा आपने उनके विषय में?' जॉन ने बताया।
'कौन?.... वह बड़ा चित्रकार!... तेरी उनसे जान पहचान कैसे हो गई?'
''वे हमारी दुकान पर आए थे, गाड़ी ठीक कराने और आपको पता है उन्होंने अपने बंगले पर मेरी पढ़ाई की भी व्यवस्था करा दी! जॉन के शब्दों में श्रद्धा मिश्रित उत्साह था।
रॉबिंसन आश्चर्य से जॉन को देखे जा रहा है।
'जब तू पढ़ने लगेगा तो तेरे काम का क्या होगा?.... तुझे पैसे भी तो कम मिलेंगे?' वे प्रश्नवाचक दृष्टि से उसे घूर रहे थे।
'कुछ भी हो पर मैं दोबारा पढ़ना नहीं छोड़ सकता !'जॉन में संक्षिप्त से उत्तर दिया और बर्तन धोने लगा।
रॉबिंसन में सिगरेट सुलगाई और सोचनीय मुद्रा में छत निहारने लगा।
'खाना '....जॉन ने रॉबिंसन के आगे थाली रखते हुए कहा। गर्म रोटीयो ने रॉबिंसन की भूख बढ़ा दी थी वह सिर नीचे के खाने लगा।
'क्या हुआ अंकल ?आपको तो खुश होना चाहिए, पर आप तो उदास दिख रहे हैं!'
'नहीं ....नहीं तो ...जैसे उसकी चोरी पकड़ी गई हो ।वह हकलाते हुए बोला ।...तेरी आमदनी अगर कम हो गई तो मेरा क्या होगा ?रॉबिंसन भुनभुनाया।
'कुछ कहा आपने ?'बर्तन उठाता जॉन बोला।
'वह मैं तुझे बताना चाहता था कि इस समय पैसे कितने तंगी है। ऐसे में तेरा काम से जल्दी छूटना?'
जॉन ने कुछ भी प्रतिउत्तर नहीं दिया। निश्चय में और भी अधिकता आ गई थी ।पूरे दिन का थका हुआ थोड़ी देर के बाद खर्राटे ले रहा था, पास में ही रॉबिंसन भी लुढ़क गया।