*पराम्बा जगदंबा जगत जननी भगवती मां दुर्गा का दूसरा स्वरूप है ब्रह्मचारिणी | जिसका अर्थ होता है तपश्चारिणी अर्थात तपस्या करने वाली | महामाया ब्रह्मचारिणी नें घोर तपस्या करके भगवान शिव को अपने पति के रुप में प्राप्त किया और भगवान शिव के वामभाग में विराजित होकर के पतिव्रताओं में अग्रगण्य बनीं | इसी प्रकार एक नारी का जीवन तपस्या में ही बीत जाता है, जन्म से लेकर मरण तक नारी तपश्चारिणी ही होती है | जब वह कन्या स्वरूप में होती है तभी से वह परिवार की जिम्मेदारियां संभालने का प्रयास करने लगती है | छोटे भाइयों को संभालना और माता के साथ रसोई में हाथ बंटाना, पिता के खान पान का ध्यान रखना ! यह सब एक नारी किशोरावस्था में ही सीखना प्रारंभ कर देती है | विवाहोपरांत अपनी सभी इच्छाओं का दमन करके एक नई जगह पर स्वयं को स्थापित करने से बढ़कर कोई दूसरी तपस्या नहीं हो सकती , जहां के लोग उसके लिए बिल्कुल अनजान हैं अपने लोगों को छोड़कर के एक नारी त्याग एवं तपस्या का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करती है | जब वह माँ बनती है तो उसकी तपस्या देखने लायक होती है | अपने शिशु का ध्यान रखने में वह स्वयं की नींद, भूख, प्यास तक का त्याग करके एक तपस्विनी की तरह ही अपने शिशु का एकाग्रता से पालन करती है | यही है ब्रह्मचारिणी का वास्तविक अर्थ जो कि प्रत्येक नारी में परिलक्षित होता है |* *नवरात्र सिर्फ पूजा और अनुष्ठान का पर्व ही नहीं है, बल्कि नारी सशक्तीकरण का उत्सव मनाने का अवसर भी है। मां दुर्गा और उनके नौ रूपों की अपार शक्ति नारी सशक्तीकरण का प्रतीक है। आज की नारी में जहां मां दुर्गा का ममतामयी रूप सजा है वहीं कुछ कर गुजरने का जोश भी निहित है। सृजन और संहार के दोनों रूपों को अपनाकर सशक्त हुई है आज की यह नारी। यह सांस्कृतिक पर्व है जो दुर्गा जी की शक्ति को सम्बंधित करता है नारी सशक्तीकरण से | आदिशक्ति हैं मां दुर्गा। इनके तीन गुण हैं सृजन, पालन और संहार। कभी वह सृजन करती हैं तो कभी मां के रूप में पालन करती हैं और कभी अपने भीतर की शक्ति को जागृत कर महिषासुर जैसे दानवों का संहार करती हैं। आज की नारी देवी दुर्गा के इन्हीं रूपों को साक्षात तौर पर निभा रही है। वह सृजन करती है, मां की हर जिम्मेदारी निभाती है और जब कुछ करने की ठान लेती है तो करके ही मानती है। आज की इस नारी की शक्ति असीम है और अपनी इस काबिलियत को इसने पहचान भी लिया है। आज नारी का निर्बल नहीं सबल पक्ष देखने को मिलता है। वह सहनशील है, मजबूत है, किसी के दबाव में नहीं है। अंतरिक्ष से लेकर
राजनीति तक सारे क्षेत्रों में अपनी काबिलियत साबित कर रही है। कहा भी गया है- यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता... यानी जहां स्त्री का आदर-सम्मान होता है, उनकी अपेक्षाओं की पूर्ति होती है, उस स्थान, समाज, तथा परिवार पर देवतागण प्रसन्न रहते हैं। ठीक इसी प्रकार आज की कर्मठ नारी भी जहां बसती है वहां देवता का वास होता है।* *नारी सशक्तीकरण के इसी रूप को दुर्गा पूजा के रूप में मनाने की परम्परा आज हम सब मनाने को कटिबद्ध हैं |*