मां पर निछावर तु ने दुनिया को वार दी।. जन्नत उठाकर उसके कदमों में दाल दी।.
फिकी लगे सब ये दुनिया की नियामत मां के बगैर।.
अपना न कोई जहां मे लगते है सारे गैर मां के बगैर ।.
साये मे उसके सुकुने दिल था क्यु तु ने मेरी जन्नत उठा दी।
क्या थी खता जो ऐसी सजा दी क्यु तु ने मेरी दुनिया लुटा दी।.
मां पर निछावर तु ने दुनिया को वार दी।. जन्नत उठाकर उसके कदमों में दाल दी।.
लिपटा के रखती है आंचल से जब दुनिया से रहते हम बेखबर।.
रबने बनायी मां को अपने मासुम औलादो की रहबर।.
मां की दुआओं ने मेरी हर मुश्किल को टाल दी।
दर्जा बुलंद किया मां का क्यु न उसे लंबी सी उम्र दी।.
मां पर निछावर तु ने दुनिया को वार दी।. जन्नत उठाकर उसके कदमों में दाल दी।.
*आशफाक खोपेकर*