कांटो भरी है राह ज़िन्दगी की या फूलों से सजी है डगर |
अपनी अपनी सोच का असर दिखता अपनी ही राह पर|
लडख़ड़ाते है कदम हिम्मत न सात हो जिंदगी की राहपर |
बचपन जवानी भूढ़ापा आते नहीं है ये पड़ाव सब राहपर|
मिलजायेंगी आख़िरी मंजिल न जाने किसे किस पड़ाव पर |
आशफाक़ खोपेकर