*भारतीय परंपरा में आदिकाल से एक शब्द प्रचलन में रहा है साधना | हमारे महापुरूषों ने अपने जीवन काल में अनेकों प्रकार की साधनायें की हैं | अनेकों प्रकार की साधनाएं हमारे भारतीय सनातन के धर्म ग्रंथों में वर्णित है | यंत्र साधना , मंत्र साधना आदि इनका उदाहरण कही जा सकती हैं | यह साधना आखिर क्या है ? किसी उद्देश्य के प्रति स्वयं के चित्त को एकाग्र करना ही साधना कहा गया है | किसी भी साधना को करने के पहले आवश्यक है स्वयं के मन को साधना पड़ता है क्योंकि जब तक कोई साधक अपने मन को नहीं साधेगा तब तक कोई भी साधना फलीभूत नहीं हो सकती | वृक्ष का मूल मन को कहा गया है , मन ही मनुष्य का चालक है | मनुष्य अपने शरीर के वाह्य अंगों से तो परिचित होता है किंतु अपने स्वयं के मन से उतना परिचित नहीं हो पाता | वस्तुत: मनुष्य का व्यक्तित्व मनुष्य का मन होता है , शरीर तो उसका थोड़ा सा अंश है | शरीर मन को प्रभावित करता है और मन शरीर को प्रभावित करता है | परंतु मुख्यत: मनुष्य के जीवन के अधिकांश व्यवहार मन के कारण ही होते हैं | अच्छा - बुरा , सुख-दुख मन में ही अनुभव होता है , मन के बाहर कुछ नहीं | कोई साधना करने के लिए सर्वप्रथम अपने मन का साधन करना पड़ेगा | बड़े-बड़े महापुरुषों ने तपस्या करके अनेकों वरदान प्राप्त किए हैं तो उन्होंने सर्वप्रथम अपने मन को साधा है | जिस दिन मनुष्य अपने मन को साध लेता है उस दिन के बाद उसके जीवन में कोई भी साधना कर लेना असंभव नहीं रह जाता | हमारे भारतीय वांग्मय में कठिन से कठिन साधनाओं का वर्णन है परंतु सबसे कठिन है स्वयं के मन को साध लेना क्योंकि मन की चंचलता सर्वविदित है | प्रायः लोग संसार को समझने का , उसको जानने का नित्य प्रयास करते हैं परंतु अपने मन को नहीं जान पाते हैं या जानने का प्रयास नहीं करते | वैसे तो अपने मन को समझ पाना बहुत कठिन है किन्तु जो एक बार अपने मन को समझ गया उसके लिए सब कुछ आसान हो जाता है | जो साधक - साधिकायें अपने मन को समझने का निरंतर प्रयास करते हैं एक दिन उनके जीवन में ऐसी क्षमता आ जाती है कि उनके भाव प्रकट होने के पहले की उन पर रोक लगा देते हैं | जब मनुष्य के अंदर मन में प्रकट हुए भाव को पकड़ने की क्षमता आ जाती है तब यह समझ लेना चाहिए इनकी साधना प्रारंभ हो गई है |*
*आज समाज में अनेकों साधक अनेक प्रकार की साधनाओं के विषय जानने को उत्सुक रहते हैं | कोई मंत्र विद्या जानना चाहता है तो कोई तंत्र विद्या जानना चाहता है और उसकी साधना करना चाहता है परंतु अपने मन की चंचलता को जानने का प्रयास नहीं किया जाता है | प्राय: देखा जाता है कि मनुष्य हाथ में माला लेकर के जप करने तो बैठता है परंतु उसका मन सांसारिकता में लगा रहता है | मेरा "आचार्य अर्जुन तिवारी" का मानना जब तक मन को नहीं साधा जाता है तब तक कोई भी जब कोई भी अन्य साधना सफल नहीं हो सकती | आज समाज में जिस प्रकार की घटनाएं घट रही उसका मूल कारण मनुष्य के मन का भटकाव ही है | मनुष्य अपने मन को नियंत्रित करने में असफल हो रहा है | अनेक प्रकार की साधना करने का दम भरने वाला मनुष्य अपने मन को नहीं साध पा रहा है | यदि मन को साध लिया जाय तो कोई भी साधना कर पाना निश्चित हो जाता है | किसी ने कहा है :- "एकहि साधे सब सधे , सब साधे सब जाय " जिस प्रकार वृक्ष को हरा भरा रखने के लिए पत्तों और डालियों में पानी ना दे कर के उसकी जड़ में पानी देना होता है उसी प्रकार कोई भी साधना करने के पहले मन रूपी की जड़ को संस्कारों से सींचकर के उसको नियंत्रित करना पड़ेगा , मन को साधना पड़ेगा | परंतु आज यही सब नहीं हो पा रहा है इसी कारण समाज में त्राहि त्राहि मची हुई है |*
*यदि साधना करने का कोई भी विचार मन में उत्पन्न होता है तो मनुष्य को सर्वप्रथम नित्य अपने मन को साधने का प्रयास करना चाहिए क्योंकि मन की साधना किए बिना कोई भी साधना फलीभूत नहीं हो सकती |*