*इस धराधाम पर परमात्मा द्वारा सृजित सभी प्रकार के जड़ - चेतन में सबसे शक्तिशाली मनुष्स ही है | सब पर विजय प्राप्त कर लेने वाला मनुष्य किसी से पराजित होता है तो वह उसका स्वयं का मन है जो उसको ऐसे निर्णय व कार्य करने के लिए विवश कर देता है जो कि वह कभी भी करना पसंद नहीं करता | कभी - कभी तो मन के बहकावे में उत्पन्न उत्तेजना के वशीभूत होकर मनुष्य ऐसे कृत्य भी मनुष्य के द्वारा हो जाते हैं जिसके लिए वह जीवन भर पश्चाताप की अग्नि में झुलसता रहता है | मनुष्य को संचालित करने वाला मन इतना चंचल एवं शक्तिशाली है कि मनुष्य स्वयं इस पर नियंत्रण कर पाने में स्वयं को सक्षम नहीं पाता | ऐसा नहीं है इस मन पर नियंत्रण हो ही नहीं सकता | हमारे महापुरुषों ने , ऋषि - महर्षियों ने इस मन पर नियंत्रण करके एक उदाहरण प्रस्तुत किया है | यह सत्य है कि मन पर नियंत्रण कर पाना कठिन है परंतु असंभव नहीं है | बड़े-बड़े तपस्वियों ने अपनी तपस्या के माध्यम से इस संसार में सब कुछ प्राप्त किया है , और कोई कोई भी तपस्या तब तक नहीं सफल हो सकती है जब तक इस मन को नियंत्रित नहीं किया जाता | पुराणों एवं इतिहास में प्राप्त कथाओं का यदि अवलोकन किया जाय तो यह देखने को मिलता है कि इस चंचल मन को किस प्रकार नियंत्रित करके घनघोर तपस्या हमारे महापुरुषों ने की है और उस तपस्या के माध्यम से जन कल्याणक मार्गदर्शन भी प्रस्तुत किया है , जिनका लाभ आज तक मानव समाज ले रहा है | मन को नियन्त्रित करना इतना सरल भी नहीं है | यह मन बार हार मनुष्य को कुचेष्टाओं की ओर अग्रसर करने के प्रयास में लगा रहता है , यही मनुष्य की परीक्षा की घड़ी होती है | इसी समय यदि अपने मन को मार करके उस विषय से अपना ध्यान हटा लिया जाय तो यह कार्य तो सम्भव हो ही जायेगा साथ ही मनुष्य किसी ऐसे कुकृत्य से स्वयं को बचा भी सकता है जो कि स्वयं एवं समाज के अनुकूल नहीं होते है | मन पर नियंत्रण करने के लिए मनुष्य को सत संगति करने का अधिक से अधिक प्रयास करना चाहिए |*
*आज समाज में मनुष्य के मन की चंचलता ने एक भयावह रूप ले लिया है | , मन अपनी चंचलता की पराकाष्ठा को पार कर रहा है तो उसका एक मुख्य कारण यह है कि आज मनुष्य आधुनिकता के चक्रव्यूह में फंसकर अपनी संस्कृति एवं सभ्यता से दूर होता चला जा रहा है | अधिक से अधिक सोशल मीडिया एवं टी०वी० , दूरदर्शन की फूहड़ता में व्यतीत करने वाला मनुष्य अपने सद्ग्रन्थों का अध्ययन नहीं करना चाहता , मन को नियंत्रित करने वाले सतसंग - कथाओं से दूर होता चला जा रहा है | आज प्राय: लोग कहते हुए सुने जा सकते हैं कि :- क्या करें मन ही नहीं मानता , मन को नियन्त्रित करना बड़ा मुश्किल है | ऐसे सभी लोगों से मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" बताना चाहूँगा कि जिस प्रकार किसी वाहन का चालक बनने के लिए मनुष्य सर्वप्रथम चालक की गद्दी पर बैठकर उस बाहन को चलाना सीखने का प्रयास करता है और एक लम्बे अभ्यास के बाद वह उस वाहन को कुशलता से नियंत्रित करते हुए जिधर से इच्छा होती है उधर से निकाल ले जाता है , उसी प्रकार इस मन को नियंत्रित करने के लिए ध्यान रूपी वाहन की गद्दी पर बैठकर निरन्तर मन को चलाने / नियंत्रित करने की कला को सीखना पड़ेगा | निरन्तर मन को एकाग्र करने का अभ्यास करते हुए एक दिन ऐसा आयेगा कि आप एक कुशल चालक की भाँति इस मन को जिधर से चाहेंगे उधर से ले जाने सफल हो जायेंगे | मन पर नियंत्रण करना यदि सीखना है तो भिखारी के उस बच्चे से सीखिये जो आपके विवुध पकवानों को देखकर भी अपने ऊपर नियंत्रण रखता है और बचे - खुचे जूंठन से अपना पेट भर लेता है | इस संसार में असंभव कुछ भी नहीं है आवश्यकता है उसके अभ्यास की | बिना अभ्यास के यहाँ कुछ भी मिल पाना सम्भव नहीं है | मन आपको अपने वश में करने का प्रयास करे उसके पहले आपको इस मन पर शासन करने का प्रयास प्रारम्भ कर देना चाहिए और यह तभी सम्भव है जब नित्य एकान्त में कुछ क्षण के लिए संसार से स्वयं को अलग करते हुए शून्य में अपना ध्यान लगाने का प्रयास करेंगे | ऐसा यदि नित्य की दिनचर्या में समेमिलित हो गया तो मन को नियंत्रित करना बहुत ही सरल हो सकता है |*
*मन ही मनुष्य को मानव परिवार एवं समाज से जोड़े रखने में मुख्य भूमिका निभाता है | यही मन अनियंत्रित होकर मनुष्य को समाज से अलग - थलग भी कर देता है , अत: मन को अनियंत्रित न होने दें |*