*प्रत्येक शरीर में एक आत्मा निवास करती है जिस प्रकार भगवान शिव के हाथ में सुशोभित त्रिशूल में ती शूल होते हैं उसी प्रकार आत्मा की तुलना भी एक त्रिशूल से की जा सकती है, जिसमें तीन भाग होते हैं- मन, बुद्धि और संस्कार | इनको त्रिदेव भी कहा जा सकता है | मन सृजनकर्ता ब्रह्मा , बुद्धि संहारकारी शिव तथा संस्कार को पालनकर्ता विष्णु कहा जाय तो अतिशयोक्ति नहीं होगी | आत्मारूपी त्रिशूल में मन एवं संस्कार दायें और बायें शूल हैं, जबकि बुद्धि मध्य में स्थित है, जो कि कुछ लम्बा और अन्य दो शूलों अर्थात् मन एवं संस्कार से अधिक महत्वपूर्ण होता है | मन आत्मा की चिंतन शक्ति है जो कि विभिन्न प्रकार के विचार उत्पन्न करती है | अच्छे - बुरे , व्यर्थ , साधारण, इत्यादि | कुछ विचार स्वैच्छिक होते हैं, और कुछ अनियंत्रित, जो कि पिछले जन्मों के कर्मों के हिसाब-किताब के कारण उत्पन्न होते हैं | कुछ विचार शब्दों तथा कर्मों में परिवर्तित हो जाते हैं, जबकि कुछ विचार मात्र विचार ही रह जाते हैं | विचार बीज की तरह होते हैं- शब्दों और कर्मों रूपी वृक्ष से कहीं अधिक शक्तिशाली | जब शरीर-रहित आत्माएं शांतिधाम या परमधाम में होती हैं तो वे विचार-शून्य होती हैं | मन एक समुद्र या झील की भांति है, जो विभिन्न प्रकार की लहरें उत्पन्न करता है- कभी ऊंची, कभी नीची, और कभी कोई लहरें नहीं होती. केवल शांति होती है | इसीलिए मन की तुलना ब्रह्मा (स्थापनाकर्ता) से की जा सकती है | बुद्धि आत्मा की निर्णय शक्ति है | कोई आत्मा सारे दिन या सारी रात में विभिन्न प्रकार के विचार उत्पन्न कर सकती है, किन्तु केवल बुद्धि द्वारा निर्णय लिये जाने पर ही आत्मा उन विचारों को शब्दों या कर्मों में ढ़ालती है | सकारात्मक - नकारात्मक या व्यर्थ विचारों को उत्पन्न करना या केवल विचार-शून्य अवस्था में रहने का निर्णय भी बुद्धि द्वारा ही लिया जाता है |*
*आज इस विषय पर यदि विचार किया जाय तो बुद्धि उस जौहरी की तरह है, जो कि शुद्धता और मूल्य के लिए रत्नों और हीरों को परखता है | बुद्धि की तुलना भगवान शंकर (विनाशकर्ता) से की जा सकती है , जो कि पुरातन संस्कारों, विकारों और पुरातन सृष्टि का विनाश करके नई दुनिया की स्थापना का मार्ग प्रशस्त करते हैं | किये हुए अच्छे बुरे कर्मों का जो मन बुद्धि रूपी आत्मा के ऊपर प्रभाव पड़ता है उसको संस्कार शक्ति कहा जाता है | मेरा "आचार्य अर्जुन तिवारी" का यह मानना है कि यदि बुद्धि अपने शरीर का उपयोग बारंबार परिश्रम करने के लिए करती है, तो आत्मा परिश्रमी व्यक्ति के संस्कार धारण कर लेती है | यदि बुद्धि बारंबार सोने और आराम करने का निर्णय लेती है और परिश्रम एवं कसरत से बचती है, तो आत्मा आलस्य का संस्कार धारण कर लेती है | अतः, यह आत्मा पर निर्भर करता है कि वह अच्छे या बुरे संस्कार धारण करे | आत्मा अपनी संकल्प तथा निर्णय शक्ति (अर्थात् मन तथा बुद्धि) के आधार पर जो भी संस्कार प्राप्त करती है, वो आत्मा में उसी प्रकार जमा हो जाते हैं | ये संस्कार आत्मा के अगले जन्म में भी उसके साथ रहते हैं, और अगले जन्म में भी कुछ हद तक उसके विचारों, वाणी और कर्मों को प्रभावित करते हैं | किसी आत्मा के अंदर पिछले जन्म में हासिल किये गये बुरे संस्कार होने के बावजूद, वह अच्छी संगत, मार्गदर्शन, भोजन, वातावरण, इत्यादि के द्वारा इन संस्कारों को बदल सकती है | आत्मा के संस्कारों की तुलना पालनकर्ता श्री हरि विष्णु से की जा सकती है |*
*इस प्रकार मानव शरीर का यदि सूक्ष्मावलोकन किया जाय तो तीनों प्रमुख देवता इसी शरीर में निवास करते हैं |*