*इस धरा धाम पर जन्म लेने के बाद मनुष्य अनेक प्रकार के भोग भोगता हुआ पूर्ण आनंद की प्राप्ति करना चाहता है | मनुष्य को पूर्ण आनंद तभी प्राप्त हो सकता है जब उसका तन एवं मन दोनों ही स्वस्थ हों | मनुष्य इस धरा धाम पर आने के बाद अनेक प्रकार के रोगों से ग्रसित हो जाता है तब वह उसकी चिकित्सा किसी चिकित्सक से करा कर के स्वस्थ होने का प्रयास करता है | मनुष्य का शरीर तो स्वस्थ हो जाता है परंतु मन में अनेक प्रकार के रोग उसको घेरे रहते हैं और वह रोगी मन लेकर के आनंद से वंचित रह जाता है | जिस प्रकार अनेक प्रकार के पदार्थों के रहते हुए भी व्यक्ति का शरीर यदि स्वस्थ नहीं है तो उनका भोग नहीं कर सकता क्योंकि पूर्ण स्वस्थता के अभाव में वह किए हुए भोजन को पचा नहीं पाता क्योंकि जब तक शरीर स्वस्थ नहीं होगा तब तक किसी प्रकार की भी खाद्य सामग्री मनुष्य खाने के बाद कितना भी प्रयास करें परंतु पचती नहीं | उसी प्रकार यदि मनुष्य मन का रोगी हो गया है तो वह पूर्ण आनंद की प्राप्ति नहीं कर सकता | मन के रोगों की व्याख्या करते हुए गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज ने अपने मानस में बताया है कि जिस प्रकार शरीर में अनेक प्रकार की बीमारियां लग जाती हैं ठीक उसी प्रकार मनुष्य के मन में काम , क्रोध , लोभ , मोह , अहंकार , मद , मत्सर इत्यादि गंभीर बीमारियां जब उसको जकड़ लेती है तब वह पूर्ण आनंद से वंचित रह जाता है | जिस प्रकार असाध्य से असाध्य रोग की चिकित्सा चिकित्सक कर देते हैं उसी प्रकार इन मानस रोगों की चिकित्सा का एक साधन है सत्संग करना , क्योंकि मानस रोग सत्संग के माध्यम से ही दूर किए जा सकते हैं अन्यथा मनुष्य भयानक रोग से ग्रसित होकर दिव्य मानव जीवन पा करके भी उसका पूर्ण आनंद नहीं उठा पाता और इन्हीं बीमारियों के भंवर में जूझता हुआ जीवन समाप्त कर देता है | मानस के उत्तरकांड में कागभुसुंडि जी ने पक्षीराज गरुड़ को मानसिक रोगों की व्याख्या करते हुए उसका निदान भी बताया है | इन मानस रोगों को दूर करने के लिए प्रत्येक मनुष्य को मानस के उत्तरकांड का अध्ययन करके इन से छुटकारा पाने का प्रयास अवश्य करना चाहिए | किसी भी कथा या पौराणिक चरित्र के विषय में सुनकर पूर्ण आनंद तभी प्राप्त हो सकता है जब मनुष्य का मन पूर्ण स्वस्थ हो क्योंकि सगुण साकार के क्रियाकलापों की आध्यात्मिकता को समझने के लिए व्यक्ति के मन का स्वस्थ होना नितांत आवश्यक है अन्यथा उसे सब कुछ भ्रम एवं कोरी कल्पना लगेगी और मनुष्य उसका लाभ नहीं उठा पाएगा |*
*आज जिधर देखो उधर ही अनेकों प्रकार के रोगी दिखाई पड़ते हैं स्थिति यह है कि किसी भी चिकित्सालय में नये रोगी के लिए शैय्या का मिलना कठिन हो जाता है ` जिस प्रकार शरीर के रोगों की संख्या बढ़ी है नित्य नए नहीं रोग प्रकट हो रही है उसी प्रकार मनुष्य के मन के रोग भी भयानक एवं असाध्य हुए हैं | यदि दृष्टि उठाकर देखी जाय तो आज कोई भी मन से निरोगी नहीं दिखाई पड़ता क्योंकि मन से निरोगी होने का पहला सूत्र है वैराग्य | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" आज की स्थिति देखते हुए यह कह सकता हूं आज बैराग्य एक दिवास्वप्न बनकर रह गया है | मन को निरोगी करने के लिए किसी सांसारिक चिकित्सक की अपेक्षा सद्गुरु रूपी वैद्य के पास जाना होगा और उसके वचनों उपदेशों का विश्वास पूर्वक पालन करना होगा | जब मनुष्य के मन में वैराग्य का बल बढ़ जाय और उत्तम बुद्धि रूपी भूख नित्य बढ़ती रहे , विषयों की आशा रूपी दुर्बलता मिट जाए तब इस मन को निरोगी मानना चाहिए और यह तभी संभव है जब मनुष्य सद्गुरु रूपी वैद्य के पास पहुंचकर सत्संग रूपी दीर्घकालिक चिकित्सा करते हुए निर्मल ज्ञानरूपी जल में स्नान कर लेता है | परंतु आज ऐसा करता हुआ कोई भी नहीं दिख रहा है | ऊपर से तो सभी स्वस्थ एवं सकारात्मक दिखाई पड़ते परंतु उनकी मानसिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं दिखाई पड़ती जितने वे स्वयं दिखाई पड़ते हैं | जब तक मनुष्य का मन निरोगी नहीं होगा तब तक वह अनेक भोग साधनों के होते हुए भी पूर्ण आनंद की प्राप्ति नहीं कर सकता इसलिए प्रत्येक मनुष्य को शरीर के साथ-साथ मन को भी निरोगी रखने का प्रयास करते रहना चाहिए क्योंकि कहा जाता है कि स्वस्थ मन ही मनुष्य की सफलता का प्रथम सोपान है | जब तक मनुष्य का मन स्वस्थ नहीं होगा तब तक मनुष्य सब कुछ करते हुए कुछ भी प्राप्त नहीं कर सकता | मन को स्वस्थ करने का सबसे सरल साधन , सबसे निशुल्क स्वास्थ्य साधन सत्संग ही है | सत्संग करके मनुष्य अपने मन को स्वस्थ कर सकता है परंतु आज मनुष्य इतना व्यस्त हो गया है उसके पास सत्संग करने का समय ही नहीं बचा है | यही कारण है कि आज मनुष्य शारीरिक रोगों के साथ-साथ मानसिक रोगों से भी जकड़ा हुआ है , इससे निकलने का कोई भी मार्ग मनुष्य को दिखाई नहीं पड़ रहा है | मार्ग ना दिखाई पड़ने का एक कारण यह भी है कि आज मनुष्य अपने सद्गुरु के प्रति श्रद्धावान नहीं रह गया है , गुरु के वचन पर उसको विश्वास नहीं रह गया है | जब तक चिकित्सक की चिकित्सा एवं उसके द्वारा बताए गए परहेज को रोगी नहीं मानता तब तक उसका रोग नहीं ठीक होता ठीक उसी प्रकार जब तक सद्गुरु के ऊपर विश्वास करके उसके द्वारा बताए गए यम - नियम का पालन नहीं किया जाएगा तब तक मन को निरोगी नहीं किया जा सकता |*
*एक सुंदर एवं सफल जीवन जीने के लिए जिस प्रकार शरीर का स्वस्थ होना आवश्यक है उसी प्रकार मनुष्य के मन का भी निरोगी होना परम आवश्यक है इसलिए प्रत्येक मनुष्य को तन के साथ-साथ मन को भी स्वस्थ रखने का प्रयास करना चाहिए |*