मित्रो प्रस्तुत है एक नवगीतसच ही बोलेंगे-------------------हम अभी तक मौन थे अब भेद खोलेंगेसच कहेंगे सच लिखेंगे सच ही बोलेंगेधर्म आडम्बर हमें कमजोर करते हैंजब छले जाते तभी हम शोर करते हैंबेंचकर घोड़े नहीं अब और सोंयेंगेमान्यताओं का यहॉ पर क्षरण होता है घुटन के वातावरण कावरण होता हैऔर कब तक आश में वि
सजाए मौत का तोहफा हमने पा लिया जिनसे ना जाने क्यों बो अब हमसे कफ़न उधार दिलाने की बात करते हैं हुए दुनिया से बेगाने हम जिनके इक इशारे पर ना जाने क्यों बो अब हमसे ज़माने की बात करते हैं दर्दे दिल मिला उनसे बो हमको प्यारा ही लगता जख्मो पर बो हमसे अब मरहम लगाने की बात करते हैं हमेशा साथ चलने की
८० के दशक में एक फिल्म आई थी.. लव मैरिज। किशोर उम्र में देखी गई इस फिल्म के अत्यंत साधारण होने के बावजूद इस फिल्म का मेरे जीवन में विशेष महत्व था। क्योंकि फिल्म के एक दृश्य में चरित्र अभिनेता चंद्रशेखर दुबे मेरे शहर खड़गपुर का नाम लेते हैं। इस फ्लिम के एक सीन से मेैं कई दिनों तक रोमांचित रहा था।
यह विज्ञापनों का देश था।कुछ विज्ञापन देकर कमाते थे, कुछ लेकर।गली, मोहल्ले, बाजार, स्कूल, पेड़, पौधे, सार्वजनिक सुविधा घर यहां तक कि दूसरों की फेसबुक दीवार और रोटी पर तक लोग विज्ञापन लगाने से नहीं चूकते थे। जो लोग विज्ञापन नहीं लगवाना चाहते थे वे भी अपनी दीवारों पर विज्ञापन देकर लिखते थे कि यहां विज्ञ
हैदर फिल्म याद है , बिलकुल एक तरफ़ा , इसमें डायरेक्टर की स्वतंत्रता से अधिक उसकी उच्छृंखलता नजर आयी थी ! ये बॉलीवुड वाले क्या और क्यों बेचते हैं अब समझना कोई रॉकेट साइंस नहीं है ! खान से लेकर भट्ट कैम्प की मानसिकता जग जाहिर है ! फिल्मों ने हिन्दुस्तान की संस्कृति से लेकर इतिहास को किस हद तक नुक्सान प
प्रिय, तुम भूले, मैं क्या गाऊँ बस तुमको ही, मैं दोहराऊं .सदियाँ बीती, तुम न आए. क्या कोई पत्थर बन जाए. मना -मना कर हार गई मैं, कैसे आखिर तुम्हे मनाऊं ?प्रिय तुम भूले, मैं क्या गाऊँ तप्त धरा औ नीलगगन है.मन में भी तो नित्य अगन है .तुम आओ तो पड़े फुहारें प्रेम-नीर में डूब नहाऊँ.प्रिय तुम भूले, मैं क्या
खूबसूरत दिखना किसको पसंद नहीं होता | और खासकर लड़कियां तो खूबसूरत दिखने में कोई कसर नहीं छोड़ती फिर चाहे बात उनके बालों की हो या नाखूनों की | वो अपनी सजावट का पूरा ध्यान रखती हैं | महिलाएं खूबसूरत दिखने के तरह तरह के नुस्खें अपनाती है जैसे लिपस्टिक लगाना, काजल लगाना, क्रीम लगाना , नेलपॉलिश यूज़ करना औ
हाथों में स्मार्टफोन यानि एक से बढ़कर एक खूबियों वाले महंगे हैंडसेट के बाद आने वाले दिनों में लोग हेडसेट के दीवाने बन जाएंगे। कारण वर्चुअल रियलिटी(वीआर) टेक्नीक का इस्तेमाल कई क्षेत्रों में काफी हद तक बढ़ सकता है और मनोरंजन से लेकर सोशल नेटवर्किंग, चिकित्सा, शिक्षा, गेम्स, फिल्में, विभिन्न जानकारिया
एक कजरी गीत........चित्र अभिव्यक्ति परझूला झूले राधा रानी, संग में कृष्ण कन्हाई ना कदम की डाली, कुंके कोयलिया, बदरी छाई नाझूले गोपी ग्वाल झुलावे, गोकुला की अमराई विहंसे यशुमति नन्द दुवारे, प्रीति परस्पर पाई ना॥गोकुल मथुरा वृन्दावन छैया रास रचाई ना छलिया छोड़ गयो बरसाने, द्वारिका सजाई नामुरली मनोहर रा
यह साल पूरी तरह से सुपरहीरोज के नाम ही रहा , डीसी मार्वल के दो बड़े बहुप्रतीक्षित प्रोजेक्ट्स इसी साल रिलीज हुए जिनमे डीसी और मार्वल यूनिवर्स के प्रमुख सुपरहीरोज के टकराव को केन्द्रित किया गया lडीसी की बैटमैन वर्सेज सुपरमैन से जैसी उम्मीद थी वैसी नहीं निकली किन्तु सिविल वॉर उम्मीदों पर बिलकुल खरी उतर
बुझी शम्मा जलाने से क्या होगाकबर पर दीप जलाने से क्या होगालौटकर न आएगी मुमताज ऐ शाहजहांतेरा ताजमहल बनवाने से क्या होगा
आई पतंगों की बेलाहैचहुं ओर पतंगों कारेला हैमौसम नई ख्वाहिशों का हैमाँ-बाप ने करदी ढीली जेबें निकले शौकीन ले बहुरंगीपतंगेंचाइनीज हो या डोरबरेली आई-बो----ओ सुनता रोजबोर हो या संध्या का दौरउड़ा रहे सब मचाकरशोरकेजरीवाल, राहुल याहों मोदीनहीं दिखती इनमें फूटपरस्ती मोहल्ला-मोहल्ला बस्ती-बस्तीउड़ाते इन्हें
दीपक की लौ तले पढ़ने काबारात में पंगत में बैठने कादाँतों से नाखुन चबाने काबागों से अमरुद खाने काबेरियों से बेर तोड़कर लाने कापत्थर मार-मार आम गिराने काबारिश में जामुन तोड़ने जाने का दौर की कुछ और थास्कूल से फूटकरखेतों में घूमने कारिश्तेदार आने परस्कूल नहीं जाने कारेलिंग वाले खंबे परचढ़ जाने
जुम्मनशेख अलगू चौधरी में गाढ़ी मित्रता थी। साझे में खेती होती थी। कुछ लेन-देन में भीसाझा था। एक को दूसरे पर अटल विश्वास था। जुम्मन जब हज करने गये थे, तब अपना घर अलगू को सौंप गये थे, और अलगू जब कभी बाहर जाते, तो जुम्मन पर अपना घर छोड़ देते थे। उनमें न खाना-पाना काव्यवहार था, न धर्म का नाता; केवल विचा
कुछ गीत न केवल देखने वरन सुनने में भी मजेदार होते हैं जो आप को गुदगुदा करगुनगुनाने और सराहने पर मजबूर कर जाते हैं | ऐसे ही गीतों में से एक है सन 1968 में रिलीज़ सुनील दत्त, सायरा बानो,महमूद और किशोर कुमार अभिनीत बेहद सफल एवं मजेदार फिल्म “पड़ोसन” का मजेदार गीत “एकचतुर नार”| मन्ना दा, किशोर कुमार और म
खेलों में आगे आने का यदि कोई अचूक मंत्र है तो वह है ''कैच देम यंगÓÓ जिसका मतलब है छोटी उम्र में ही खेलों में रुचि रखने वाले, स्वस्थ, मजबूत शरीर च इच्छाशक्ति वाले बच्चों को चुनना । स्कूल स्तर से ही उन्हें अच्छे से अच्छा प्रशिक्षण देना, उन्हें सुविधाएं मुहैया कराना, उन्हें अच्छा कैरियर विकल्प व सुरक्ष
मैं एक धर्म गुरु हूंमुझ से बढ़ा धर्म गुरु न हुआ न होगामैं एक भक्त हूंमुझ से बढ़ा भक्त न कोई हुआ न होगामैं एक स्वतंत्रता सेनानी हूंमुझ से बढ़ा स्वतंत्रता सेनानी न हुआ न होगामैं एक क्रांतिकारी हूंमुझ से बढ़ा क्रांतिकारी न हुआ न होगामैं एक इतिहासकार हूंमुझ से बढ़ा इतिहासकार न हुआ न होगामैं एक साहित्यका
जब भी कोई नई चीज बाजार में आती है तो सभी का मन ललचाता है कि वह उसे मिल जाए। रेडियो भी जब बाजार में आया तो नए-नए कार्यक्रम सुनकर लोग उसे अपने घर लेकर आना चाहते थे। एक व्यकित ने एक डिब्बेनुमा वस्तु से गाने बजते देखे, पैसे जेब में थे ही और झट से उसे खरीद लिया। जगह-जगह उसे अपने साथ लेकर जा रहा था। जब खे