अजब देश की व्यवस्था,
गजब देश का हाल।
जिनके शासनकाल में,
घोटालों का अंबार,
उनके ही गठबंधन की,
चुनते सब सरकार।
क्या रखे योग्यता?
जो इठलाये पद ग्रहण करे,
हिंदी भी ना बोल सके,
वो शिक्षित करने की बात करे?
वतन पटरी पर दौड़ रही,
सारहीन रेल,
भैंसे चढे़ं,गद्दी पर,
सब मलें पांव में तेल।
वो पढ़ पढ़ आंखें फोडे़ं,
आर्थिक तंगी झेल,
चयनित हों पर दूसरे,
चले रिश्वत का खेल।
कैसी ये असमानता?
जिसमें लंगडे़,सब स्वीकार,
सच कहो क्या है नहीं,
ये विद्या की हार?
वो कुर्बान हों सीमा पर,
रोये मां कहां गये लाल,
वो आपस में ही भिड़ रहे,
करें वतन हलाल।
जो निर्धन बेचारे वो,
उनके मालिक राम,
चिकित्सक कितने निर्दयी,
हुये नमकहराम।
मानवता बंद कालकोठरी,
अमर्यादा सीमा पार,
पहले जेब भरो तब,
लाश ले जाओ द्वार?
शुरू जब चुनाव तब,
ऐडी़ चोटी का जोर,
प्रत्यक्ष दें चरित्र परिचय,
सुनो अपशब्दों का शोर।
गुंडागर्दी ,दबंगई ,
बनी सभ्यता की पहचान,
जो जितना नीचे गिरे,
वो उतना ही महान।
खिले पुष्प कमल का,
सब नोंचें,जा़र जा़र,
क्या मजाल जो खडी़ करे?
बुलंदियों की दीवार।
सत्यानाश देह प्रदर्शन,
ये मनोरंजन का संसार,
दूभर हुआ देखना,
बैठ सहित परिवार।
इस हेतु वर्दी मिली?
न्याय मांगती जो बेहाल,
उसे बेइज्जत कर,
लटकाओ पेड़ की डाल?
कहाँ, किधर धर्मनिर्पेक्षता,
चलता बस उनका राज,
जो सर्वाधिक संख्या में,
फैले पूरे समाज।
अपने जन पीडि़त जब,
तब सिली रही जुबान,
अब फैल रही असहिष्णुता?
लौटा रहे सम्मान?
दुखी जन गुजरा एक,
बडा़ भला इंसान(अशोक सिंहल जी)
क्यों दी श्रृद्धांजलि?
इस पर भी घमासान?
जीभ बनी पिशाचिनी,
उदर कब्रिस्तान,
कैसा ये स्वाद जो?
मरें मासूम बेजुबान।
कितनी गहन सहनशीलता,
हो पतन कगार,
फिर भी सारी व्यवस्था,
सिरे से स्वीकार?
सुधरो ,वास्तव में
यदि हो भारत के लाल,
देश के अस्तित्व पर,
मत खडे़ करो सवाल।
प्रभा मिश्रा 'नूतन'